पटना के पब्लिक टॉयलेट में लटके रहते हैं ताले, महिलाओं को सबसे अधिक परेशानी

लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री जी ने देशवासियों को भारत की स्वच्छता का संदेश देते हुए स्वच्छ भारत मिशन योजना की शुरुआत की थी, जिसमें ‘हर-घर शौचालय योजना’ भी शामिल थी. अक्सर प्रधानमंत्री देश की स्वच्छता और स्वच्छ शौचालय व्यवस्था जैसे विषयों पर अपनी बात रखते हैं और भाषणों में भी इसका ज़िक्र करते हैं

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लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री जी ने देशवासियों को भारत की स्वच्छता का संदेश देते हुए स्वच्छ भारत मिशन योजना की शुरुआत की थी, जिसमें ‘हर-घर शौचालय योजना’ भी शामिल थी. अक्सर प्रधानमंत्री देश की स्वच्छता और स्वच्छ शौचालय व्यवस्था जैसे विषयों पर अपनी बात रखते हैं और भाषणों में भी इसका ज़िक्र करते हैं. यह योजना कितनी शाब्दिक है और कितनी वास्तविक इसकी एक झलक आपको बिहार के पटना जंक्शन से सटे हनुमान मंदिर के सामने बंद पड़े शौचालयों से मिल जाएगी.

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पटना का हनुमान मंदिर एक ऐसा स्थान है जहां भारी संख्या में लोग दर्शन के लिए आते-जाते रहते हैं. इतना ही नहीं पटना जंक्शन से सटे होने की वजह से यात्रियों का आवागमन भी यहां नियमित रूप से बना रहता है. यात्रियों की सुविधा के लिए जिन शौचालयों को सक्रिय रखना सरकार की जिम्मेदारी थी उन सभी शौचालयों पर ताले लगे हैं.

शौचालयों में ताले क्यों लगे हैं इसकी जवाबदेही तो सरकार ही सुनिश्चित करेगी. लेकिन इससे वहां के लोगों को, आवागमन करने वाले यात्रियों और आसपास में ठेला दुकान दिए कुछ दुकानदारों को कितनी समस्या झेलनी पड़ती है इसका अनुमान वहां के वातावरण में मौजूद बदबू से लगाया जा सकता है. वहां मौजूद लोग बताते हैं कि पिछले दो-तीन वर्षों से यहां शौचालय में यूं ही ताला लगा है. जब से इस शौचालय का उद्घाटन हुआ है तब से इसकी ऐसी ही दशा है.

रखरखाव के लिए करोड़ों रुपए किए जाते हैं खर्च

स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री शौचालय योजना, हर घर शौचालय योजना, शौचालय निर्माण (शहरी क्षेत्र), शौचालय निर्माण घर का सम्मान जैसी कई योजनाएं भारत सरकार और राज्य सरकार के द्वारा शौचालयों को लेकर शुरू की गई है. बता दें कि स्वच्छ भारत मिशन योजना (2022-23) के तहत सरकार ने 7192 करोड़ रुपये का बजट रखा जिसमें बिहार को इस योजना के तहत 499.50 करोड़ की राशि आवंटित की गई है. लेकिन यह सभी योजनाएं धरातल पर कितनी सक्रिय हैं, इसका हिसाब ना तो राज्य सरकार के पास है और ना ही केंद्र सरकार के पास.

पटना नगर निगम के वित्तीय वर्ष 2022-23 बजट पर भी अगर नज़र डाली जाए तो सामुदायिक शौचालय के लिए 1.50 करोड़ रूपए, मोड्यूलर टॉयलेट के लिए 50 लाख और माड्यूलर टॉयलेट के संचालन के लिए 64 लाख रूपए आवंटित किये गए हैं.

वहीं पिछले साल यानी वित्तीय वर्ष 2021-22 बजट पर नज़र डाली जाए तो मोड्यूलर टॉयलेट के लिए 5 करोड़ रूपए और स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए 1 करोड़ रुपए ख़र्च किये गए हैं.

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बदबू झेलने पर मजबूर हैं लोग:

वहां मौजूद एक दुकानदार नीतीश कुमार ने बताया कि

"यहां वास्तव में शौचालय बनाया गया था लेकिन इसका उपयोग मल त्याग के लिए किया जाने लगा. इस वजह से यहां गंदगी और बढ़ गई. नगर निगम और राज्य सरकार ने तो इसकी देखभाल ही छोड़ दी है. बस कोई वीआईपी गेस्ट आने वाले होते हैं या किसी बड़े नेता का दौरा होता है तो इससे साफ़ कर दिया जाता है. लेकिन फिर इसकी स्थिति ऐसी ही बनी रहती है"

हालांकि यह प्रश्न तो पूछना व्यर्थ है कि शौचालय में किसने गंदगी फैलाई और क्यों फैलाई? लेकिन इसके साफ-सफाई की जिम्मेदारी तो पटना नगर निगम पर ही है. लोगों का यह भी आरोप था कि जब भी कोई वीआईपी जैसे प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या किसी बड़े केंद्रीय मंत्री का दौरा होता है तो इन शौचालयों की सफाई कर दी जाती है लेकिन उसके बाद स्थिति पुनः पूर्व जैसी ही हो जाती है.

वहीं एक स्थानीय दुकानदार अजीत कुमार ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि

"शौचालय एकदम गंदा है. नगर निगम इसकी की देखरेख नहीं करता. सरकारी कर्मचारी और व्यवस्था दोनों काफी सुस्त और घटिया है. बदबू इतनी ज्यादा है कि आसपास के लोगों यहां खड़े भी नहीं रह सकते.”

अब आपको एक और पब्लिक टॉयलेट का हाल दिखाते हैं. हालत तो ऐसी है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पटना के गांधी मैदान के निकट एक सार्वजनिक शौचालय है जिसमें ताला तो नहीं लगा है, लेकिन शौचालय इतना गंदा है कि यदि कोई व्यक्ति उस शौचालय से थोड़ी दूरी पर भी हो तो उसे बदबू से परेशानी हो सकती है. कहने का मतलब शौचालय तो है लेकिन उपयोग करने की स्थिति में नहीं है. तो वहीं पटना के कई क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां 500 मीटर की दूरी में कोई सार्वजनिक शौचालय नहीं है.

पटना का डाकबंगला रोड, एग्जीबिशन रोड, स्टेशन रोड जैसी जगहों पर कई महिला दुकानदार और ख़रीददार आती हैं. सबसे अधिक परेशानी का सामना इन्हें ही करना पड़ता है. डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने जब स्टेशन रोड के पास इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान चला रही अनीता श्री से बात की तो उन्होंने कहा

"शौचालय नहीं होने से सबसे अधिक परेशानी महिलाओं को ही होती है. पुरुष तो कहीं भी खड़े हो जाते हैं लेकिन महिलायें ऐसा नहीं कर सकती हैं. कई बार हमलोगों ने नगर निगम में शिकायत भी की लेकिन उन्होंने कोई काम नहीं किया"

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पटना के एग्जीबिशन रोड पर बने सार्वजनिक शौचालय के नाम पर केवल एक खुला और गंदा शौचालय है, जिससे लोगों में बीमारी फैलने का खतरा काफ़ी ज़्यादा बढ़ जाता है. वहां मौजूद एक व्यक्ति रवि ने बताया कि-

"इस पूरे शौचालय की स्थिति ऐसे ही है. इस पर नगर निगम द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया जाता. बीच-बीच में स्थानीय लोगों द्वारा इसमें कीटनाशक पाउडर का छिड़काव कर दिया जाता है. पटना में इस तरह के और भी कई शौचालय हैं जिसकी दशा ऐसी ही है. लेकिन उन पर भी सरकार और नगर निगम के द्वारा कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता"

हमने जब इस विषय पर पटना नगर निगम आयुक्त से बात करने की कोशिश की तब उन्होंने हमारा फ़ोन नहीं उठाया. उपायुक्त शीला ईरानी से बात हुई लेकिन उन्होंने इस मुद्दे से साफ़ झाड़ते हुए कहा

"इस बात की जानकारी आप इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट से लीजिये"

3 दिन चक्कर काटने के बाद भी इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट ने कोई जानकारी नहीं दी है.

यह हाल केवल पटना के एक क्षेत्र का है. पटना में ऐसे कई क्षेत्र हैं जहां शौचालय की ऐसी ही दशा है. जब तक केंद्र और राज्य सरकारों के द्वारा चालित योजनाओं को वास्तविक रूप से और सक्रिय होकर क्रियान्वित नहीं कराया जाएगा तब-तक इन योजनाओं पर सरकार द्वारा किए गए व्यय का कोई लाभ जनता को नहीं मिल सकता.