बीते बृहस्पतिवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि दिव्यांगों के खीलने से हम सभी खीलेंगे। कोर्ट ने कहा कि हर दिव्यांग व्यक्ति को यूपीएससी द्वारा आयोजित प्रतिष्ठित सिविल सेवा परीक्षा समेत कई अन्य परीक्षाओं में राइटर पाने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा ऐसे लोगों को राइटर की सुविधा देना नियम के भीतर ही आता है। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विकलांग व्यक्ति समाज में ख़ुशी से और सम्मान पूर्वक जी सके।

केंद्र सरकार को 3 महीने के भीतर नियम बनाने को कहा गया
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने केंद्र सरकार को 3 महीने के भीतर दिशा निर्देश बनाने एवं जारी करने को कहा। कोर्ट ने कहा कि दिव्यांग छात्रों के लिए परीक्षाओं में राइटर के साथ बैठने के लिए व्यवस्था किया जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह फैसला दिव्यांग व्यक्तियों के जीवन पर आधारित है इसीलिए उन से परामर्श लेना भी आवश्यक है जिसे केंद्र सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए इतना ही नहीं किसी भी सार्थक बदलाव में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने सुविधा के संबंधित दुरुपयोग के केंद्र सरकार के तर्क को खारिज किया
आपको बता दें केंद्र सरकार ने कहा था कि ऐसी सुविधाएं तो दे दी जाती है लेकिन इसका अक्सर ही दुरुपयोग किया जाता है लेकिन शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार के इस तर्क को पूर्ण रूप से ख़ारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा जब योग्य दिव्यांग अपनी राह में आने वाली बाधाओं के कारण अपनी पूरी क्षमताओं का एहसास नहीं कर पाता है तो यह नुकसान और किसी का नहीं बल्कि हमारे समाज का है।
कोर्ट द्वारा कहा गया कि हमारा फ़र्ज़ बनता है हम उनकी मदद करें। शीर्ष अदालत ने एक और बात कही कि उनकी विफ़लता हमारी विफ़लता है। आपको बता दें कोर्ट का यह फैसला एम.बी.बी.एस विकास कुमार की याचिका पर आया है।
डिसग्राफिया से ग्रसित इस छात्र को यूपीएससी की परीक्षा में राइटर देने से इनकार कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था लेकिन वहां से उन्हें कोई राहत नहीं मिल सकी जिसके बाद अब जाकर सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला उनके हक में आया है।
भारत में दिव्यांग छात्रों की क्या स्थिति है?
विज़न 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 12 मिलियन नेत्रहीन छात्र हैं जो पूरे विश्व का एक तिहाई आंकड़ा है। भारत में लगभग 15,000 नेत्रहीन विद्यालय हैं जो ज़रूरत से काफ़ी कम हैं। बिहार नेत्रहीन परिषद् के महासचिव राजीव कुमार से जब डेमोक्रेटिक चरखा ने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि बिहार में 3 नेत्रहीन विद्यालय हैं। तीनों की स्थिति काफ़ी ख़राब है। एक स्कूल की स्थिति तो ये है कि वहां सिर्फ़ एक ही व्यक्ति मौजूद है यानी वही प्रिंसिपल और वही चपरासी है।
आखिर भारत में दिव्यांग छात्रों की स्थिति दयनीय क्यों है?
इसका जवाब देते हुए राजीव कुमार बताते हैं कि दरअसल दिव्यांग सरकार को बतौर वोट बैंक नहीं दिखते इसी वजह से ये स्थिति बनी हुई है। उन्होंने बताया कि आज तक सरकार नेत्रहीन स्कूल के लिए फंड का सही आवंटन नहीं करती और अगर फंड आ जाए तो उसका इस्तेमाल नहीं होता।
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