"हम लोग कूड़ा चुनने का काम करते हैं. लॉकडाउन के दौरान घर से निकलने पर भी पुलिस मारती थी. राशन कार्ड बना हुआ है नहीं और बिना राशन कार्ड के हम लोग को कोई भी राशन मिला ही नहीं. किसी तरह हम लोग अपना वक़्त गुज़ारे हैं."
ननकी मोसमात पटना के कमला नेहरू नगर की महादलित इलाके में रहती हैं. इनके पति का देहांत 3 साल पहले हो गया था. इनके दो छोटे बच्चे हैं. लॉकडाउन के दौरान जब सभी के बाहर निकलने पर भी रोक लगी हुई थी उस दौरान ननकी मोसमात के पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था. बस्तियों में लोग हर दिन कमा कर खाने वाले होते हैं. इनके पास पहले से मौजूद महीने भर का राशन नहीं होता है.
जब ननकी मोसमात को पता चला कि प्रधानमंत्री ने सभी को मुफ़्त राशन देने के लिए कहा है तो वो नज़दीकी डीलर के पास राशन लेने भी पहुंची. लेकिन डीलर ने उन्हें राशन देने से साफ़ मना कर दिया क्योंकि उनके पास राशन कार्ड नहीं था. हालांकि केंद्र सरकार के आदेश के अनुसार राशन कार्ड नहीं रहने पर भी लोगों को मुफ़्त राशन मुहैय्या करवाना था.
हाल में ही जारी हंगर इंडेक्स के अनुसार भारत का स्थान 101 वां
लॉकडाउन के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी ये स्टेटमेंट दिया है कि अगर किसी व्यक्ति के पास प्रमाण पत्र नहीं है तब भी उसे खाना राशन दिया जाए. लेकिन बिहार में मामला उल्ट है. यहां पर प्रमाण पत्र रहने के बाद भी कई लोगों को राशन नहीं दिया जा रहा है.
बिहार में 55% आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे है. पटना की आबादी 2011 के सेन्सस के मुताबिक़ 20 लाख के आसपास है और उनमें से सिर्फ़ 2,89,939 शहरी क्षेत्र में और ग्रामीण क्षेत्र में 7,78,942 लोगों का ही राशन कार्ड (आंकड़ें 2 नवम्बर 2021 तक के हैं) बना है.
राशन कार्ड नहीं बनने की वजह जानने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा ने सबसे पहले 41 नंबर वार्ड की पार्षद कंचन देवी से बातचीत करनी चाही. लेकिन कंचन देवी के पति ने ही बात की और कहा कि जो भी बात करनी है वो ही करेंगे. उन्होंने राशन कार्ड नहीं बनने के बारे में कहा-
राशन कार्ड बनाने के लिए हम लोगों ने 2200 आवेदन दिए थे लेकिन उसमें से 1200 लोगों के कार्ड एक साल में बनें हैं बाकी के कार्ड कब बनेंगे पता नहीं. आपको जो भी पूछना है डीएम से पूछिए.
जब हमलोगों ने डीएम कार्यलय में कॉल किया तो वहां से अनुभाजन अधिकारी का नंबर दिया गया और कहा गया कि वही ये काम करेंगे. लेकिन जब अनुभाजन अधिकारी से बात हुई तो उन्होंने कहा,
मैं किसी का भी राशन कार्ड बनाने का ज़िम्मेदार नहीं हूं आप ADM सप्लाई से बात कीजिये.
ADM सप्लाई से अभी तक कोई संपर्क नहीं हो पाया है क्योंकि वो फ़ोन नहीं उठा रहे हैं और ना ही अपने दफ़्तर में मौजूद हैं.
इस पर प्रखंड विकास पदाधिकारी, पटना सदर ने डेमोक्रेटिक चरखा से बातचीत की और बताया
अभी सारे लोग पंचायत चुनाव में व्यस्त हैं. आपके ज़रिये मामला संज्ञान में आ गया है, हमलोग इसका निपटारा दिसम्बर के महीने में कर देंगे. जिन लोगों का राशन कार्ड नहीं बना है हमलोग उन सभी का राशन कार्ड बनाने का काम करेंगे.
कई समुदाय के आंकड़े भी मौजूद नहीं
राइट तो फ़ूड कैंपेन के बिहार संयोजक रुपेश कुमार ने बिहार सरकार की राशन वितरण सामग्री पर सवाल उठाते हुए कहा
बिहार सरकार की जो पूरी पालिसी है उसमें घुमंतू समुदाय, दलित, आदिवासी समुदाय और ऐसे समुदाय जिनके पास रिसोर्स नहीं हैं वो ख़ुद ही छंट जाते हैं. बिहार सरकार ये भी नहीं बोल सकती है कि उनके पास इन समुदायों के सही आंकड़े भी मौजूद हैं.
सूरदास देख नहीं सकते. वो कमला नेहरू नगर के सबसे आखिर में बनें कूड़े के ढेर के बगल में वो बस्ती के सबसे छोटे कमरे में रहते हैं. जिस समय डेमोक्रेटिक चरखा की टीम उनके पास पहुंची थी उस समय उन्होंने 3 दिनों से कुछ खाया भी नहीं था.
उनके घर में राशन के नाम पर नमक भी मौजूद नहीं थी. राशन कार्ड और वृद्धा पेंशन कार्ड बनाने के लिए कर्मचारियों ने कई दफ़ा उनका नाम लिख कर ले गए लेकिन आजतक उन्हें ना राशन कार्ड मिला और ना ही वृद्धा पेंशन. आस-पास के लोग बताते हैं कि अमूमन मोहल्ले के लोग ही उनके पास खाने के लिए कुछ ले जाते हैं लेकिन लॉकडाउन के बाद से सभी के घर में सीमित राशन ही मौजूद है इस वजह से उन्हें अब कोई खाना नहीं देता है.
केंद्र का राशन गरीबों तक नहीं पहुंच रहा
प्रधानमंत्री ग़रीब अन्न योजना के तहत भी जो अनाज केंद्र सरकार द्वारा बांटा जा रहा है वो भी लोगों तक पहुंच नहीं रहा है. बिहार राज्य के आंकड़ों के अनुसार गृहस्थ और अंत्योदय राशन कार्ड को मिला कर बिहार में कुल 1,80,78,465 (एक करोड़ अस्सी लाख) परिवार के पास राशन कार्ड है.
प्रधानमंत्री ग़रीब अन्न योजना के तहत बिहार राज्य को मई के महीने में 3,48,466 मेट्रिक टन गेंहू दिया गया और FCI के ओर से 6,274 मेट्रिक टन गेंहू दिया गया यानी कुल 3,54,740 मेट्रिक टन गेंहू बिहार को मिला लेकिन बंटा सिर्फ़ 1,55,752.03 यानी 1/3 हिस्सा. जिस समय बिहार में लोगों को सबसे अधिक राशन की ज़रूरत थी उस समय बिहार में लोगों को राशन मिल ही नहीं रहा था.
चावल की स्थिति भी कमोबेश वही है. प्रधानमंत्री अन्न योजना के तहत 5,22,698 मेट्रिक टन चावल बिहार को मिला लेकिन बंटा सिर्फ़ 2,33,469.20 मेट्रिक टन. अगर पूरे राशन का हिसाब करें तो केंद्र सरकार की ओर से राज्य को दिया गया 8,78,038 और बांटा गया सिर्फ़ 3,89,221.23
रुपेश कुमार सरकार द्वारा अनाज को लेकर पालिसी के बारे में बताते हैं,
सरकार के पास बफर स्टॉक में इतना राशन है कि वो पूरे देश को 3 साल तक खाना खिला सकते हैं लेकिन फिर भी भारत में लोग भूख से तड़पते हैं. हमलोगों ने दूसरी लहर की शुरुआत में ही सरकार को PDS (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) को लेकर कई सुझाव दिए थे. हमने 5 किलो अनाज, 1.5 किलो दाल, तेल, नमक के साथ-साथ विटामिन ए-बी-सी- तीनों की गोलियां जन वितरण प्रणाली में रखने की मांग की थी.
सरकार के लिए काम करते हैं फिर भी भूखे
मुहर्रम अंसारी पटना नगर निगम में काम करते हैं. 15 सालों से काम करने के बाद भी आज तक इन्हें स्थायी तौर पर बहाल नहीं किया गया है. इस वजह से लॉकडाउन के दौरान जब वो अपने घर से नहीं निकल पाए तो उतने दिन उनके पास ना ही पैसे थे और ना ही खाने के लिए कुछ भी मौजूद था. लॉकडाउन के बाद भी स्थिति सुधरी नहीं है. हाल में नगर निगम की हड़ताल के कारण, 10 दिन से ऊपर, जितने भी अस्थायी सफ़ाईकर्मी थे उनके पास राशन के लिए पैसे मौजूद ही नहीं थे और राशन कार्ड नहीं होने के कारण वो सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ ले ही नहीं सके.
पटना के बस्तियों में लोगों राशन और स्वास्थ्य पर काम करने वाली संस्था ‘कोशिश’ से जुड़े प्रभाकर बताते हैं
राशन कार्ड बनाने की जो पूरी प्रक्रिया रही उसमें कई तरह की कमियां थी. एक तो लोगों के काफ़ी कम राशन कार्ड बनाये ही गए, मान कर चलिए कि अगर 1000 लोगों के राशन कार्ड बनने थे तो उसमें से सिर्फ़ 150 लोगों के ही कार्ड बन पाए. उसमें भी 150 लोगों के कार्ड में भी कई तरह की गलतियां थी. अगर उनके परिवार में 8 सदस्य हैं तो कार्ड में सिर्फ़ 2 सदस्य का नाम जुड़ा हुआ है. साथ ही राशन कार्ड में सभी के नाम भी गलती थी, जिसके वजह से जब डीलर ने राशन कार्ड और आधार कार्ड का मिलान किया तो दोनों में अलग-अलग नाम के कारण राशन ही नहीं दिया.
बबीता देवी के साथ भी यही समस्या थी. उनके घर में 6 सदस्य हैं लेकिन उनके कार्ड में सिर्फ़ 2 लोगों के नाम जुड़े हुए हैं. इस वजह से उन्हें जो राशन 8 यूनिट के लिए मिलना चाहिए था उन्हें सिर्फ़ 2 यूनिट के लिए मिलता है. ये 2 यूनिट राशन 7-8 दिनों में ख़त्म हो जाता है. अब बाकी दिनों के राशन के लिए बबीता देवी किराने की दुकान के उधार पर निर्भर रहती हैं.
ना सरकार अर्जी सुनती है ना प्रशासन
बिहार में भूख की कहानी लंबी है लेकिन फिर भी सरकार की नज़र इस भूख पर नहीं जाती. इसकी एक बड़ी वजह है कि ये सभी दलित-आदिवासी-अल्पसंख्यक समुदाय के लोग हैं. सरकारी अधिकारी ना इनकी अर्ज़ी सुनते हैं और ना ही वार्ड पार्षद. अधिकांश लोगों को ये भी नहीं पता कि राशन कार्ड बनवाने के लिए उन्हें क्या करना चाहिए या किससे मिलना चाहिए.
डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने समुदाय के कई लोगों को साथ में लेकर प्रखंड विकास पदाधिकारी के संज्ञान में पूरे मामले को दिया है और प्रखंड विकास पदाधिकारी ने ये आश्वासन दिया है कि अगले महीने तक इन सभी लोगों के कार्ड बना दिए जायेंगे.
भूख की दास्तां की ये पहली किस्त है. दूसरी किस्त में हम लोग जानेंगे कि कैसे मिड-डे मील और आंगनबाड़ी में मिलने वाले पोषाहार के बाद भी बच्चों की ये भूख क्यों नहीं ख़त्म होती है.