बिहार की लगभग 80 फीसदी आबादी खेती पर निर्भर करती है. किसान बढ़ती मंहगाई और मौसमी प्रकोप झेलते हुए इस पारंपरिक रोजगार और जीवन यापन के साधन से जुड़े हुए हैं. राज्य और केंद्र सरकार बीते कुछ वर्षों में किसानों की सहायता के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही है. जिसमें फसल बीमा से लेकर उसपर अनुदान तक की योजनाएं है. बिहार सरकार की कृषि इनपुट योजना बाढ़ से प्रभावित हुए फसलों पर अनुदान देने के लिए चलाया जा रहा है. इस वर्ष अक्टूबर माह से अनुदान के लिए आवेदन शुरू किया गया था जिसके लिए 3,52,217 किसानों ने आवेदन दिया.
बाढ़ के कारण 33 प्रतिशत फसल बर्बाद होने पर कृषि इनपुट अनुदान योजना के तहत वर्षा जनित असिंचित फसल क्षेत्र के लिए 8500 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा दिया जाना है. सिंचित क्षेत्र के लिए 17000 रुपए प्रति हेक्टेयर और बहुवर्षीय फसल के लिए 22,500 रूपए के दर से मुआवजा दिया जाना है. यह अनुदान एक किसान को अधिकतम दो हेक्टेयर भूमि के लिए दिया जाता है.
लेकिन राज्य के 24 हजार बाढ़ प्रभावित किसानों का आवेदन कृषि समन्वयकों के पास लंबित पड़ा हुआ है. इसके कारण किसानों को कृषि इनपुट अनुदान नहीं मिल पा रहा है. कृषि समन्वयकों द्वारा भौतिक सत्यापन नहीं किए जाने के कारण किसानों का आवेदन लंबित है. किसानों ने इस संबंध में मुख्यालय स्तर पर आवेदन किया है.
कृषि विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार राज्य के 19 जिलों में लगभग 2,24,597 हेक्टेयर रकबा बाढ़ से प्रभावित हुआ है.
आवेदन लंबित
आंकड़ों के अनुसार 3,52,217 किसानों ने कृषि इनपुट अनुदान के लिए आवेदन किया है. इसमें अब तक एडीएम स्तर से 2,25,007 किसानों को ही कृषि इनपुट अनुदान दिया गया है. इन आवेदनों में जिला कृषि पदाधिकारी स्तर पर 2982 आवेदन लंबित है. भोजपुर में सबसे अधिक 6,077 आवेदन लंबित है. पटना जिले में 4125, समस्तीपुर में 4161 और दरभंगा में 3194 आवेदन लंबित है.
जबकि 30 अक्टूबर को ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक लाख किसानों के खाते में कृषि इनपुट अनुदान की राशि ट्रांसफर कर दी थी. लेकिन अबतक सभी किसानों को इसका लाभ नहीं मिल सका है.
लखीसराय जिले के बड़हिया प्रखंड के अंतर्गत आने वाले लक्ष्मीपुर और डुमरी पंचायत के किसानों को इस वर्ष बाढ़ राहत राशि नहीं मिल रही है. गांव के किसान बताते है कि बीते महीने अनुश्रवण समिति कि बैठक में सभी पंचायत के मुखिया,प्रमुख और सर्किल ऑफिसर शामिल हुए थे. बैठक में पंचायत प्रतिनिधियों ने सर्कल ऑफिसर से उनके द्वारा तैयार की गई सूचि में शामिल लोगों को पैसे का भुगतान करने को कहा.
लेकिन सर्कल ऑफिसर ने यह कहते हुए इंकार कर दिया कि उनके पास केवल उन्हीं लोगों के लिए पैसे आए हैं जिनके नाम साल 2021 की बाढ़ लिस्ट में शामिल है. इसके बाद लक्ष्मीपुर और डुमरी पंचायत के मुखिया ने बैठक का बहिष्कार कर दिया.
लखीसराय जिला के बड़हिया ब्लॉक के बहादुरपुर गांव के रहने वाले मनोज कुमार सिंह ने कृषि इनपुट योजना के तहत बाढ़ राहत राशि के लिए आवेदन दिया है. लेकिन अबतक उनके खाते में राशि नहीं आई है.
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए मनोज कहते हैं “सरकार मीडिया में तो बहुत कुछ कहती है लेकिन जमीन पर हकीकत कुछ और ही है. मेरे पिताजी ने आवेदन दिया है लेकिन अबतक राशि नहीं आया है.”
नियम के अनुसार 8500 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से अनुदान राशि दिया जाना है लेकिन किसान बताते हैं कि उन्हें इतना पैसा नहीं मिलता है. मनोज सिंह कहते हैं “इस साल अबतक पैसा नहीं आया है लेकिन इससे पहले हमें 6000 रुपए हेक्टेटर भुगतान हुआ है. इसबार कुछ पहचान के किसानों से सुने है कि 7000 रुपए हेक्टेयर अनुदान मिल रहा है.”
दरियापुर के रहने वाले एक किसान नाम नहीं बताने की शर्त पर कहते हैं “हमारे अगल बगल के पंचयतो में पैसे मिल चुके है. केवल इन्हीं दो पंचायतों में पैसा नहीं मिला है. अब हमें यह नहीं पता कि पैसा वापस चल गया गया या आया ही नहीं. जबकि इस मीटिंग से पहले पुराने लिस्ट का सर्वे करवाया गया था.”
लक्ष्मीपुर पंचायत के दरियापुर गांव के रहने वाले किसान रंजीत कुमार (बदला हुआ नाम) कहते हैं “2021 में बड़ा बाढ़ आया था. उसी समय सभी पंचायत के किसानों का नाम जोड़ा गया था. लेकिन उसके बाद गांव में किसान परिवारों की संख्या बढ़ गई है. योजनाओं का लाभ उन्हें भी चाहिए. मेरे पिताजी का नाम उस लिस्ट में है. लेकिन अब बंटवारे के बाद हम दो भाई अलग हो चुके है लेकिन हम दोनों भाईयों का नाम उसमें नहीं हैं.”
मनोज सिंह बताते हैं "साल 2021 में बाढ़ राहत के लिए लिस्ट बनी थी. इसमें जिनका नाम है उन्हीं को इसबार भी अनुदान देने को कहा गया है. खानापूर्ति के लिए नये किसानों से भी आवेदन लिया जाता है लेकिन अंतिम पायदान पर पहुंचकर उनका आवेदन निरस्त कर दिया जाता है.”
हमने संबंध में सर्किल ऑफिसर से बात करने का प्रयास किया लेकिन उनसे हमारी बात नहीं हो सकी है.
कृषि इनपुट अनुदान की राशि समय पर किसानों को मिल सके इसके लिए सभी जिलों के जिला कृषि पदाधिकारी और कृषि समन्वयकों जल्द से जल्द आवेदन समीक्षा का आदेश दिया गया है. वहीं इस मुद्दे पर बीते मंगलवार को कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने समीक्षा बैठक की थी. बैठक के बाद आदेश जारी किया गया था कि एक सप्ताह में सभी किसानों को इनपुट अनुदान दे दिया जाए.
हालांकि एक सप्ताह बीतने के बाद भी किसानों को यह राशि नहीं मिली है.
फसलों पर कीटों का प्रकोप
किसानों के अनुसार बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में कीट-रोगों का प्रकोप बढ़ गया है. मोकामा टाल के ऊपरी भाग में दलहनी फसलों में कजरा कीट (कटवर्म) लग रहे हैं. यह कीड़ा अंकुरित हो रहे बीज को क्षतिग्रस्त करता है. साथ ही नवांकुरित पौधे को जमीन की सतह से काटकर गिरा देता है, जिससे पूरी फसल बर्बाद हो जाती है. अभी इसका प्रकोप मोकामा के टाल क्षेत्र में देखने को मिल रहा है. अगर समय रहते इसपर नियंत्रण नहीं किया गया तो दलहनी फसलों का उत्पादन प्रभावित होगा. क्योंकि प्रभावित खेतों में दोबारा बुवाई करना संभव नहीं है.
बड़हिया प्रखंड के इंदुपुर गांव के रहने वाले बिकास कुमार ने आठ कट्ठा खेत में मसूर और चना की फसल लगाई है. उनका सभी खेत बड़हिया टाल में आता है. टाल क्षेत्र में पानी निकलने के बाद कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है. कीटों के प्रकोप से पौधों के खराब होने की आशंका है. उन्होंने अपने स्तर से कीटनाशक का छिड़काव किया है लेकिन यह फसल के लिए नाकाफ़ी है.
वे कहते हैं “सरकार के तरफ से फसल बचाने के लिए कोई सहायता नहीं दी गयी है. मैंने अपने पैसे से खेत में कीटनाशक छिड़काव किया है. लेकिन एकबार के छिड़काव से कुछ नहीं होगा. अगर विभाग छिड़काव करवाता तो हमलोग को थोड़ी सहूलियत हो जाती.”
दरअसल, टाल क्षेत्र में खेतों से बाढ़ का पानी निकलने के बाद पहले से लगी हुई फसलों पर भी कीटों के संक्रमण का खतरा बना रहता है. इसमें मुख्य रूप से कजरा कीट, जाला कीट, भूरा मधुआ, शीथ ब्लाइट यानी गलका रोग, बैक्टेरियल लीफ ब्लाइट और मिली बग जैसे कीट रोग लगते हैं.
विभागीय स्तर पर इन रोगों से फसलों के बचाव के लिए कीटनाशी दवाओं की पर्याप्त मात्रा किसानों को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है. इसके अलावे इन खेतों में ड्रोन के जरिए कीटनाशकों का छिड़काव भी किया जाना है लेकिन विभाग द्वारा अब तक छिड़काव नहीं किया गया है.
हमने पटना जिले के कृषि पदाधिकारी से इस संबंध में जानकारी के लिए संपर्क किया लेकिन उन्होंने इसपर किसी तरह की जानकारी देने से मना कर दिया. उन्होंने कहा "इसकी जानकारी प्लांट प्रोटेक्शन के जॉइंट डायरेक्टर डॉ प्रमोद दे सकते हैं."
हमने उनसे भी संपर्क करने का पर्यास किया लेकिन उनसे हमारी बात नहीं हो सकी है.