बिहार: 54 हज़ार स्कूल में खेल का मैदान नहीं, कैसे खेल में बढ़ेगा राज्य?

राज्य के 54 हज़ार से ज़्यादा स्कूलों में खेल का मैदान नहीं है. जब स्कूल में खेल के मैदान ही मौजूद नहीं होंगे तो बच्चे खेलेंगे कहां?

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पल्लवी कुमारी
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बिहार: 54 हज़ार स्कूल में खेल का मैदान नहीं, कैसे खेल में बढ़ेगा राज्य?

राज्य के 54 हज़ार से ज़्यादा स्कूलों में खेल का मैदान नहीं है. जब स्कूल में खेल के मैदान ही मौजूद नहीं होंगे तो बच्चे खेलेंगे कहां? राज्य के विद्यालयों में खेल परिसर की कमी राज्य सरकार की ‘खेल’ के प्रति उदासीनता को प्रदर्शित करता है. खेल बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास में कितना महत्वपूर्ण है आज यह बताने की आवश्यकता नहीं है. वो ज़माना बहुत पीछे रह गया है जब बच्चों को कहा जाता था- ‘पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे ख़राब’. मतलब अच्छे से पढ़ाई करने वाले बच्चों का ही भविष्य बेहतर बन सकता है और खेलने वाले बच्चे करियर में आगे नहीं बढ़ सकते.

खेल का मैदान

लेकिन बदलते समय के साथ, खेल में करियर के सुनहरे भविष्य को देखने और समझने के बाद माता-पिता ने भी बच्चों को खेलने में प्रोत्साहन देना शुरू कर दिया है. सरकार भी खेलों में करियर की बेहतर संभावना देखते हुए विशेष तौर पर खेल विश्वविद्यालय खोलने की स्वीकृति दे चुकी है.

खेल विश्वविद्यालय की तैयारी लेकिन मैदान ही मौजूद नहीं

लेकिन शायद बिहार सरकार आज भी ‘खेलोगे-कूदोगे तो होगे ख़राब’ वाली कहावत को मानती है. तभी तो राज्य के 54 हज़ार 634 स्कूल के पास खेल का मैदान नहीं है. जबकि राज्य में 93 हज़ार से अधिक स्कूल हैं. जब स्कूल में खेल के मैदान ही मौजूद नहीं होंगे तो बच्चे खेलेंगे कहां? राज्य के विद्यालयों में खेल परिसर की कमी राज्य सरकार की ‘खेल’ के प्रति उदासीनता को प्रदर्शित करता है.

वहीं इंडोर गेम की बात की जाए तो उसकी स्थिति भी कुछ ख़ास अच्छी नहीं है. क्योंकि हज़ारों स्कूल ऐसे हैं जहां इंडोर गेम खेलने के लिए आवश्यक सामग्री ही मौजूद नहीं है. वहीं इंडोर गेम के नाम पर जिन स्कूलों के पास खेल सामग्री है भी तो वह केवल- चेस, कैरम, पज़ल और ब्लॉक तक सीमित है. वह भी बच्चों के बजाए आलमारी में ज़्यादा बंद रहते हैं क्योंकि जगह की कमी है.

राजकीय उच्च विद्यालय कंकड़बाग में 10वीं कक्षा के छात्र देव सोनी बताते हैं

मुझे खेलना बहुत पसंद है. लेकिन स्कूल में खेल का अलग से पीरियड नहीं बनाया गया है. लंच टाइम में थोड़ा बहुत खेल लेते हैं क्योंकि लंच करते-करते ही टाइम ख़त्म हो जाता है. स्कूल में इंडोर गेम के लिए भी कुछ नहीं है. अगर स्कूल में चेस या कैरम होता तो हम लोग थोड़ा खेल लेते.

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इसी स्कूल के छात्र ऋषि कुमार कहते हैं

गली क्रिकेट, कबड्डी के अलावा हमलोग कोई खेल जानते ही नहीं. टीवी, न्यूज़ में खिलाड़ियों के किस्से सुनते है. लेकिन उन खेलों में जाने का रास्ता कौन सा है ये हमलोगों को पता ही नहीं है. अगले साल हमलोग स्कूल से निकल जाएंगे. खेल में करियर बनाना हमारे लिए है ही नहीं.

जिलेवार खेल मैदानों की स्थिति दयनीय

यू-डायस की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के लगभग 33 हज़ार 536 स्कूलों में ही खेल के मैदान हैं. अगर जिलेवार खेल मैदानों की स्थिति को देखा जाए तो पटना जिले की स्थिति बहुत ख़राब है. जिले के 4193 स्कूल में से मात्र 1367 स्कूलों में ही खेल के मैदान हैं.

गया के 3785 स्कूलों में से 1430 स्कूल में ही खेल के मैदान हैं, जबकि भागलपुर जिले में 2262 स्कूल है जिनमें से 656 स्कूलों में ही खेल के मैदान मौजूद हैं. मुजफ्फरपुर में 3691 स्कूल है जिनमें से 1823 स्कूल में ही खेल के मैदान हैं.

गोपालगंज में 2205 स्कूल हैं जिनमें 773 स्कूलों में ही खेल के मैदान हैं. औरंगाबाद जिले में 2476 स्कूल हैं और इनमें से 746 स्कूल में ही खेल के मैदान हैं.

जहानाबाद जिले में 1028 स्कूल हैं, जिनमें से 314 स्कूल में खेल के मैदान हैं. रोहतास जिले में 2738 स्कूल हैं, जिनमें से 1054 स्कूल में खेल के मैदान हैं.

मधुबनी जिले में 3594 स्कूल हैं, जिनमें से 1805 स्कूल में खेल मैदान हैं. सिवान में 2871 स्कूल हैं, जिनमें से 917 स्कूल में ही खेल के मैदान हैं.

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शारीरिक शिक्षक की कमी से बच्चों में मार्गदर्शन नहीं

शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों में खेल की एक कक्षा कराए जाने का निर्देश दिया है. वहीं प्रत्येक मध्य विद्यालय और माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक स्कूलों में खेलकूद के लिए शारीरिक शिक्षक होना अनिवार्य है. लेकिन आज भी कई स्कूलों में शारीरिक शिक्षक की कमी है. वहीं जिन स्कूलों में पीटी टीचर उपलब्ध हैं और खेल का मैदान नहीं है, वहां ऐसे शारीरिक शिक्षक छात्रों को खेलकूद कराने की बजाए अन्य विषय पढ़ाते हैं.

फिजिकल इंस्पेक्टर अंकित स्नेह बताते हैं

बिहार सरकार खेल को बढ़ावा देने के लिए स्कूल में खेल से जुड़ी सामग्री उपलब्ध करवा रही है. वहीं हर साल बच्चे को खेल के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ‘दक्ष और तरंग’ नाम के खेल आयोजन भी करती है. यह खेल कमिश्नरी स्तर के होते हैं. लेकिन यह दुर्भाग्य है की स्कूल में खेल के मैदान नहीं है. अगर स्कूल में ग्राउंड ही नहीं होगा तो बच्चे खेल सामग्री का उपयोग कैसे करेंगे और खेल आयोजनों में भाग लेने के लिए तैयारी कैसे करेंगे.

विद्यालय के लिए जगह की कमी मूल परेशानी

सरकार का कहना है कि वो बिहार को खेल सशक्त (sporting power) राज्य के तौर पर विकसित करेगी. बिहार में खिलाड़ियों को एक बेहतर माहौल और आधारभूत खेल अवसंरचना (Basic Game Infrastructure) देगी. लेकिन सच्चाई यह है कि जब स्कूली स्तर पर ही बच्चों को तकनीकी खेल से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक राज्य का नाम खेल में रौशन नहीं हो सकता है.  

राजकीय उच्च विद्यालय की प्रभारी पूनम जी का कहना है कि

स्कूल में बहुत सारी चीज़ों की कमी है. जिस स्कूल का अपना ख़ुद का भवन ही ना हो उसके लिए खेल के मैदान की मांग करना कहां से उचित होगा. इंडोर गेम के लिए इस बार फंड मिला है. लेकिन सबसे ज़रूरी क्लासरूम, शौचालय, स्टाफ कॉमन रूम की बहुत दिक्कत है. जिन शिक्षकों को स्वच्छ भारत मिशन में लगाया गया था उन्ही के सामने उनके बच्चे खुले में शौच जाते हैं. हमारी मजबूरी है क्योंकि स्कूल में शौचालय नहीं है. लड़कियों को तो दुसरे स्कूल के शौचालय में जाने मिल जाता है लेकिन लड़कों को खुले में जाना पड़ता है.

खेल का मैदान

जगह के साथ समय का भी अभाव

दरअसल राजकीय उच्च विद्यालय, कंकड़बाग जिस परिसर में चलाया जा रहा है वह मूल रूप से रघुनाथ प्रसाद बालिका उच्च विद्यालय का प्रांगण है. शुरूआती दिनों में सुबह 6 से 11 राजकीय उच्च विद्यालय का संचालन किया जाता था जबकि 11 से 4 बजे तक रघुनाथ प्रसाद बालिका का संचालन होता था. ऐसे में दोनों विद्यालय सामंजस्य के साथ संचालित हो जाते थे. इस विद्यालय परिसर में बच्चों के खेलने के लिए एक बड़ा मैदान भी मौजूद था.

लेकिन पिछले 10 सालों में इस परिसर में 5 अन्य स्कूलों के संचालन के लिए भवन बना दिए गए. जिसके कारण खेल का मैदान छोटा हो गया. साथ ही भवन निर्माण में उपयोग हुई सामग्रियों के कारण खेल का मैदान उबड़-खाबड़ हो चुका है.         

पूनम कहती हैं

खेल बच्चों के सर्वांगीन (संपूर्ण) विकास के लिए ज़रूरी है पर हमारे हाथ में कुछ नहीं है. इस परिसर में सात स्कूल चलते हैं. सभी स्कूलों के बच्चे इसी फील्ड में खेलते हैं. स्कूल खत्म होने के बाद बाहरी बच्चे भी यहां आकर खेलते हैं. ऐसे में मैदान को ठीक कराना किसी एक स्कूल के बस में नहीं है.    

स्कूल भवन की कमी राज्य में एक बड़ी समस्या है. राज्य सरकार को सबसे पहले इस मूल परेशानी को दूर करना होगा. तभी स्कूली शिक्षा में बदलाव की कोई उम्मीद की जा सकती है. जहां चार कमरों में नौवीं से लेकर 12वीं तक की कक्षाएं संचालित होगी उस स्कूल में खेल को लेकर सुविधाओं की उम्मीद रखना बेमानी है.