राज्य की शिक्षा व्यवस्था: जन जागरण शक्ति संगठन ने 2023 के शुरुआत में उत्तर बिहार के दो जिले कटिहार और अररिया में 81 सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में ‘बच्चे कहां हैं’ सर्वे किया. सर्वे में बिहार के सीमांचल के स्कूलों की सच्चाई परेशान करने वाली है. ये रिपोर्ट जन जागरण शक्ति संगठन की ओर से परन अमितावा और कनिका शर्मा द्वारा तैयार की गयी है. इस रिपोर्ट को प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ और सामाजिक कार्यकर्ता आशीष रंजन के मार्गदर्शन में तैयार की गयी है.
बच्चों की अनुपस्थिति सबसे चिंताजनक
सर्वे के अनुसार
- बिहार में विद्यार्थियों की उपस्थिति काफ़ी कम है. सर्वे के समय केवल 23% बच्चे उपस्थित थें.
- स्कूल में निराशाजनक बुनियादी ढांचे हैं. 90% प्राथमिक स्कूल में चारदीवारी, खेल का मैदान या लाइब्रेरी मौजूद नहीं है.
- सर्वेक्षण में चयनित 9% स्कूल में भवन नहीं है.
- 20% स्कूल में मिड डे मील का बजट अपर्याप्त है.
- रजिस्टर पर उपस्थिति के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है. लेकिन ये आंकड़ें भी काफ़ी कम है. प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय में ये आंकड़ें क्रमशः 40% और 44% हैं.
कई स्कूल में भवन भी मौजूद नहीं
कटिहार और अररिया के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में 38 स्कूल ऐसे हैं जिनमें शौचालय उपलब्ध नहीं है. अररिया के सिकटी प्रखंड में ऋषिदेव टोला, प्लास्मानी ऋषि देवजाति के लोगों की एक छोटी सी बस्ती है. यहां कोई सड़क नहीं है, केवल अनियमित रूप से बने रेतीले रास्ते हैं.
स्कूल में एक क्लास है, जो पुआल और बांस से बनी एक अस्थायी झोपड़ी है. पतली छतवाली इस नाज़ुक संरचना में कई दरारे हैं. कोई बेंच, टेबल या ब्लैकबोर्ड नहीं वाला यह आदिम स्कूल 'भवन' यहां नामांकित लगभग 150 छात्रों की प्राथमिक शिक्षा के लिए ज़िम्मेदार है.
सर्वे के दौरान, वहां कोई छात्र मौजूद नहीं था, हालांकि शिक्षक और कुछ स्थानीय लोगों ने जोर देकर कहा कि उपस्थिति आमतौर पर अधिक होती है. स्कूल के बुनियादी ढांचे में एक स्थायी खाना पकाने का शेड और दो शौचालय हैं, जो दोनों बंद थे.
जबकि खाना पकाने का शेड अच्छी स्थिति में लग रहा था, शौचालय जिसके बारे में हमें बताया गया था कि वह नए स्थापित किए गए थे - रखरखाव की सख्त जरूरत थी. रसोइया ने हमें बता या कि दोपहर का भोजन प्रतिदिन बनाया जाता है.
छात्र आमतौर पर दोपहर के भोजन के बाद चले जाते हैं. परिसर में बिजली या पानी की कोई आपूर्ति नहीं है. स्कूल परिसर में एक गाय चर रही थी. चारदीवारी के अभाव के कारण स्कूल के क्षेत्र को गांव के बाकी हिस्से से अलग करना मुश्किल था. बुनियादी ढांचा बड़े पैमाने पर अनुपस्थित है, किसी भी प्राथमिक विद्यालय में पानी, बिजली और चालू अवस्था में शौचालय नहीं हैं.
केवल 22% उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पानी, बिजली और चालू अवस्था में शौचालय है.
बजट होने के बाद भी राज्य की शिक्षा व्यवस्था की स्थिति ख़राब
बिहार सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में शिक्षा के क्षेत्र में खर्च करने के लिए 40 हज़ार करोड़ से अधिक रखा गया है. यूडाइस 2020-21 की रिपोर्ट, राज्य में 2019-20 में सरकारी स्कूलों की संख्या 72,610 थी, जो 2020-21 में बढ़ कर 75,555 हो गई है.
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद ने जुलाई में जिलों से स्कूलों में शौचालयों की कुल संख्या, काम कर रहे और ख़राब या बंद पड़े शौचालयों, बच्चों के इस्तेमाल के लायक शौचालयों की रिपोर्ट मांगी थी. राज्य के अलग- अलग जिलों से परिषद को रिपोर्ट भेजी गयी, जिसके निरीक्षण में ये खुलासा हुआ है की राज्य के 11 हज़ार 717 स्कूलों में शौचालय है, मगर चालू नहीं है.
राज्य के अलग- अलग जिलों के स्कूलों ने बंद शौचालयों की भी लिस्ट परिषद को भेज दी थी. राज्य में जुलाई में कक्षा 1 से 8 वीं तक के 11 हज़ार 717 प्राथमिक सरकारी स्कूलों के औचक निरीक्षण में 30 हज़ार 379 शौचालय बंद मिला है. राजधानी पटना में 280 स्कूलों के 746 शौचालय काम नहीं कर रहे हैं. वहीं भोजपुर में 1066, रोहतास में 2000, कटिहार में 2280 और सबसे ज़्यादा औरंगाबाद में 1544 स्कूलों में 3486 शौचालय चालू नहीं हैं.
पूरे बिहार में स्कूल की स्थिति एक जैसी
स्थिति बिहार के सीमांचल के इलाकों की ही ख़राब नहीं है. बल्कि मगध के इलाके यानी पटना, भोजपुर और बक्सर के इलाके की भी यही है. डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने इन इलाकों के अलग-अलग स्कूल का जायज़ा लिया.
सृष्टि जीत ने अपनी पढ़ाई भोजपुर जिले के डॉक्टर नेमीचंद शास्त्री स्कूल से की. उन्होंने अपनी पढ़ाई के दौरान शौचालय बंद होने की वजह से मुश्किलों का सामना किया. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए सृष्टि बताती हैं
मेरे स्कूल में 6 शौचालय थे. जिनमें से दो हमेशा बंद रहते थे. सारे शौचालय अक्सर साफ़ रहता था. अगर गंदा भी होता था तो हमें उसे ही इस्तेमाल करना होता था क्योंकि हमें स्कूल से बाहर जाना मना था.
सृष्टि जीत आगे बताती हैं
कई ऐसे स्कूल हैं जिन में सालों से शौचालय बंद है तो कईयों में शौचालय के दरवाज़े पर कुंडी नहीं है. कई स्कूलों में दरवाज़ा नहीं लगा. दस हज़ार से ज़्यादा शौचालय गंदगी की वजह से बंद है. इसमें ऐसे भी शौचालय है जिनमें स्कूल के समय पर ताला लगा रहता है.
राज्य के स्कूल में 17 हज़ार शौचालय की कमी
यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इनफार्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के सरकारी स्कूलों के शौचालयों की स्थिति सबसे बदतर है. राज्य के तकरीबन 8,000 सरकारी स्कूल में गर्ल्स टॉयलेट्स और 9,000 में लड़कों के टॉयलेट नहीं है.
एक शौचालय को इस्तेमाल के लायक बनाने में तकरीबन ₹62,000 की लागत परिषद की ओर से बताई गई है. पूरे राज्य में इन शौचालयों के निर्माण में करीब 18834.98 लाख खर्च होंगे.
सागर कुमार रघुनाथपुर स्कूल, पटना के कक्षा 7 में पढ़ाई करता है. सागर का कहना है
शौचालय रोज साफ़ नहीं होता है. लंच में घर आ कर शौचालय चले जाते है, क्लास चलते समय अगर शौचालय जाना होता है तो बर्दाश्त कर लेते है नहीं तो बगल के स्कूल में चले जाते हैं.
बिहार देश के विकासशील राज्यों में से एक है. जहां 6 से 14 साल के बच्चों की जनसंख्या 28,956,159 है. बिहार सरकार भी बच्चों को प्राथमिक और उच्च विद्यालयों से जोड़ने के लिए कई योजनायें और सुविधाएं देती हैं. मिड डे मील, पोशाक और साइकिल योजना, साइंस और कंप्यूटर लैब, स्कूलों में लड़कियों के लिए मुफ्त सेनेटरी पैड इत्यादि.
सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को नहीं पढ़ाना चाहते अभिभावक
प्रीति लता शेम्फोर्ड फ्यूचरिस्टिक स्कूल, पटना में शिक्षिका हैं. एक समय में ख़ुद सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली प्रीति लता अब ना अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना नहीं चाहती हैं. इसकी वजह बताते हुए प्रीति लता कहती हैं
हमारे समय में सरकारी स्कूलों में न तो मिड डे मील था न ही हमारे लिए कोई योजना चलायी जाती थी. मगर पढ़ाई बहुत अच्छी होती थी. मैंने अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल से इसलिए पढ़ाया क्योंकि सरकारी स्कूलों में टीचर्स सही से नहीं पढ़ाते. ऐसा नहीं है कि वो पढ़े लिखे नहीं होते. मगर वो लापरवाही करते हैं. सरकारी स्कूल में आज कल बस वही गार्जियन अपने बच्चों का एडमिशन कराते हैं जो बच्चों की पढ़ाई कराने में असमर्थ हैं. वहां की पढ़ाई और व्यवस्था सही नहीं होती. बच्चों को बस डिग्री का एक सर्टिफिकेट मिल जाता है उसके साथ ही कुछ योजनाओं का लाभ.
यू डाइस के 2014-15 से लेकर 2016-17 के आकड़े देखें तो बिहार राज्य में सबसे ज़्यादा 201 बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे हैं. साल 2014-15 में माध्यमिक स्तर पर कुल बच्चों का 25.33%, साल 2015-16 में 25.90% और 2016-17 में 39.73% बच्चों ने स्कूल छोड़ा है. हालांकि साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में ड्राप आउट की संख्या कम होकर 21.4% पर पहुंची है. लड़कियों के माध्यमिक क्लास में ड्राप आउट की संख्या अभी भी चिंताजनक है. साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार 22.7% लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं.
शिक्षा विभाग का कहना है
शिक्षा वह स्तंभ है जिस पर देश का भाग्य निर्भर करता है. यह वह प्रकाश है जिसके माध्यम से सभी सपने और कल्पना अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं.
लेकिन हकीकत में शिक्षा विभाग के कथनी और करनी में काफ़ी फ़र्क है.