सरकार ने जलीय कृषि क्षेत्र के विस्तार को बढ़ावा देने के लिए नीली क्रांति कार्यक्रम की शुरुआत की. भारत में नीली क्रांति की शुरुआत 1985 और 1990 के बीच 7वीं पंचवर्षीय योजना के हिस्से के रूप में शुरू किया गया था. जिसका उद्देश्य मछली पालन का विस्तार, प्रबंधन और प्रचार करना था. हीरा लाल चौधरी को नीली क्रांति का जनक माना जाता है.
भारत सरकार के मछली पालन विभाग के आंकड़ों के अनुसार 2014 से लेकर 2020 तक भारत में 13 मत्स्ययन बंदरगाह थे. लेकिन 2020 से 2023 तक ये संख्या बढ़ कर 61 हो गई. मत्स्ययन बंदरगाह और मछली उतराई केंद्र के लिए 8000 करोड़ रूपये और कोल्ड चेन और मार्केट अवसंरचना के लिए 2400 करोड़ रूपये आवंटित हुए हैं.
लेकिन फिर भी मछली पालन करने वाले लोगों को किसी भी तरह का लाभ मिलता नज़र नहीं आ रहा है. अमूमन मछली पालन में लगे लोग ग्रामीण परिवेश से आते हैं. प्रशासनिक लापरवाही और जटिल प्रक्रिया की वजह से अधिकांश ग्रामीण मछली पालन से दूर होते जा रहे हैं.
वित्त वर्ष 2023-24 में मछली पालन विभाग को 2248.77 करोड़ रुपए आवंटित किया गया. वहीं वर्ष 2022-23 में 1624.18 करोड़ रुपए और 2021-22 में 1360 करोड़ रुपए आवंटित किया गया था. वहीं अगर बिहार की बात करें तो 2023-24 में बिहार सरकार ने पशुपालन और मछली पालन को लेकर 525.38 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं.
नीली क्रांति में बिहार कहां?
अगर बिहार सरकार के आंकड़ों पर यकीन करें तो बिहार में पिछले 15 सालों में मछली के उत्पादन में करीब तीन गुनी वृद्धि हुई है. आंकड़ों के अनुसार 2006 में बिहार में 2,7953 लाख टन मछली का उत्पादन होता था जिसमें काफ़ी वृद्धि हुई है और 2020-21 में उत्पादन का यह आंकड़ा 6,8317 लाख टन तक पहुंच चुका है.
सरकारी जानकारी के अनुसार बिहार में हर साल तकरीबन आठ लाख मीट्रिक टन मछली की खपत होती है. जबकि पिछले साल तक 6,8317 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हुआ है. यानि अब भी करीब एक लाख मीट्रिक टन मछली दूसरे राज्यों से बिहार में आती है.
राज्य में नाविक और मछुआरों की कुछ संख्या लगभग 01 करोड़ 75 लाख है. बिहार मत्स्य निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार 2003 में सिर्फ 60 लाख मछुआरे ही मछली पालन से जुड़े थे. इसकी संख्या दिनों-दिन घटती ही गई है. सरकार ने मछली पालन के लिए बजट में तकरीबन 32% का इज़ाफ़ा करते हुए इसे 1561.72 करोड़ रूपए कर दिया है.
रोहतास जिले के चेनारी में अपनी विनय फीश प्रोडक्शन ऑपरेट करने वाली विनय प्रताप सिंह कहते हैं,
अगर अपने दम पर प्रगतिशील किसान कुछ ना करें तो शायद सरकारी स्तर पर कुछ भी संभव नहीं होगा. 2017-18 में मैंने करीब दस बीघे में अपना फ़िश प्रोडक्शन शुरू किया था. तब प्यासी, रोहू, कतला जैसी कई मछलियों की प्रजातियां थी. बेहतर तरीके से मछली पालन के लिए कई बार सरकारी स्तर पर अधिकारियों से मिलने की कोशिश भी किया. लेकिन बदले में केवल आश्वासन ही मिला. यह ऐसा सब्जेक्ट है जिसमें पैसे के साथ जानकारी भी बहुत अहम होती है. अगर सरकार अपने स्तर पर जानकारी ही दे देती तो हम जैसे कई और किसानों की प्रगति के लिए नयी राह खुल जाती.
मात्स्यिकी क्षेत्र में 47 लाख टन मछली का उत्पादन
वर्तमान में मात्स्यिकी क्षेत्र 47 लाख टन मछली का उत्पादन करता है, जिसमें 50 साल पहले 60,000 टन की तुलना में मीठे पानी की जलीय कृषि से 16 लाख टन मछली शामिल हैं. पिछले दशक में, भारत के मछली और मछली उत्पादों का उत्पादन वैश्विक औसत 7.5% की तुलना में 14.8% वार्षिक दर से बढ़ा है.
मछली पालन भारत का सबसे बड़ा कृषि निर्यात है, जो पिछले पांच वर्षों में 6-10% की दर से बढ़ रहा है. इसकी तुलना में, इसी अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र में लगभग 2.5% की दर से वृद्धि हुई. मछली पालन कई भारतीय समुदायों के लिए आय का प्राथमिक स्रोत है, और भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक है, जिसका निर्यात 47,000 करोड़ रुपये से अधिक है.
वर्तमान में, संयुक्त राज्य अमेरिका भारतीय समुद्री खाद्य उत्पादों का सबसे बड़ा बाज़ार है, जो भारतीय समुद्री खाद्य निर्यात का 26.46% है, इसके बाद दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (25.71%), और यूरोपीय संघ के देशों (20.08%) का स्थान है. मछली पालन और जलीय कृषि उत्पादन भारत के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1% और कृषि सकल घरेलू उत्पाद का 5% से अधिक योगदान देता है.
नीली क्रांति मिशन का लाभ
नए तालाबों के निर्माण से मछली पालन को बढ़ावा मिलेगा. नीली क्रांति राज्य के लिए भी कमाई का अच्छा स्रोत होगी. किसानों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो जाएगा. इस योजना के तहत जो किसान पिछड़े वर्ग से संबंध रखते हैं और मछली पालन की ओर अपना कदम बढ़ा रहे हैं, उन्हें इस योजना के तहत तालाब खुदवाने पर 70% तक की सहायता राशि सरकार की तरफ से प्रदान की जाएगी.
जिन किसानों को इस योजना के अंतर्गत चयनित कर लिया जाएगा उन्हें मछली पालन विभाग के द्वारा प्रशिक्षण भी दिया जाएगा. ताकि वह मछली पालने के कांसेप्ट को समझ पाए और अपना बिज़नेस खड़ा कर पायें। इस योजना से न केवल किसानों को बल्कि मछुआरों को भी फ़ायदा होगा.
केंद्र सरकार द्वारा भी 40% अनुदान प्रदान किया जाएगा जबकि 50% राशि राज्य सरकार द्वारा दी जाएगी. यदि कोई व्यक्ति 10 लाख की लागत वाला छोटा फिश फीड मिल तैयार करवाता है तो सरकार द्वारा 9 लाख रूपए की सहायता राशि प्रदान की जाएगी. इस योजना से मछली का उत्पादन बढ़ेगा, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा.
सुजीत जो की सुपौल जिले के सुंदरपुर में मत्स्य पालन करते हैं वो डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बताते हैं कि
हमें किसी भी तरह की सुविधा नहीं मिलती है ना ही हमें कोई जानकारी मिलती है की मछलियों को क्या खिलाना चाहिए और उसका पालन पोषण कैसे करना चाहिए. सरकार द्वारा सारी चीज़ें बस कागज़ तक है ज़मीनी स्तर पर कोई काम नहीं करता.
PM मत्स्य संपदा योजना से किसे फ़ायदा?
प्रधानमंत्री मोदी ने एक रैली के दौरान मछुआरों से वादा करते हुए कहा था कि
हमारी महत्वकांक्षी योजना नीली क्रांति का उद्देश्य मछली पालन क्षेत्र की असीम संभावनाओं का दोहन करना और हमारे कठिन परिश्रमी मछुआरों तथा मछली किसान भाइयों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाना है"
प्रधानमंत्री मछली संपदा योजना केंद्र आयोजित 'नीली क्रांति' योजना की सफलताओं के आधार पर बनाई गई है. जिसका उद्देश मात्स्यिकी क्षेत्र को नई ऊंचाइयों तक ले जाना है. इसके बहु - आयामी हस्तक्षेप और मात्स्यिकी मूल्य श्रृंखला गतिविधियों जैसे उत्पादन और उत्पादकता, गुणवत्ता, प्रौद्योगिक अवसंरचना तथा प्रबंधन के साथ पी. एम. एम. एस. वाई का लक्ष्य मात्स्यिकी क्षेत्र का रूपांतरण करना है. जिसमें मछुआरों, मछली किसानों तथा अन्य हित धारकों की आर्थिक समृद्धि प्रमुख है.
विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों जैसे नीली क्रांति, मात्स्यिकी तथा जल कृषि अवसंरचना विकास निधि और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत मात्स्यिकी क्षेत्र में 30,572 करोड़ रुपए का निवेश हुआ है.
लेकिन इतने बड़े निवेश के बाद भी जब डेमोक्रेटिक चरखा की टीम मछली पालन में लगे किसानों से बात करती है तो उनमें से कोई भी खुश नहीं नज़र आता है. सुजीत डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बताते हैं कि
मछली का चारा इतना महंगा है, मछली के वज़न की प्रति यूनिट इनपुट की लागत पारंपरिक खेती की तुलना में गहन खेती में अधिक है. सफ़ाई जाल के लिए लगातार और श्रमसाध्य कार्य की आवश्यकता होती है. मछली के उत्पादन में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक जटिल है.
कौन-कौन सी सहायता राशि का नियम है?
यदि नए तालाब के निर्माण पर 7 लाख प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खर्च आता है तो सरकार की तरफ से 30 लाख तक की सहायता प्रदान की जाएगी. रियरिंग तालाब बनाने के लिए सरकार की तरफ़ से 6 लाख लागत खर्च तय किया गया है और उस हिसाब से 40 लाख रुपए की सहायता राशि प्रदान की जाएगी. फिश फीड मिल का 1 करोड रुपए का खर्च आता है तो सरकार की तरफ़ से 90 लाख रूपए की सहायता राशि प्रदान की जाएगी. हैचरी निर्माण के लिए 22 लाख की लागत पर 80 लाख रुपए की अनुदान राशि प्रदान की जाएगी.
विभाग का क्या कहना है?
जब हमने पशु एवं मछली पालन के निर्देशक निशात अहमद से बात की तो उन्होंने हमें बताया कि
घर के अंदर बैठे बैठे जानकारी थोड़ी मिलती कहीं तो आना होगा ना उन्हें. दफ़्तर जाना पड़ेगा वहां डिस्ट्रिक्ट लेवल पर ऑफिसर हैं, एक्सटेंशन ऑफिसर हैं, इंजीनियर हैं, किसी से भी बात करें तो उन्हें जानकारी मिल जाएगी.
जजब हमने उनसे मछली के महंगे चारे पर सवाल किया तो उन्होंने बताया
मछली के चारा का एक एक पैसा हम दे रहें हैं. वो अपने तालाब का कागज़ लेकर आएं उसकी जांच होगी की कितने एरिया में है उसके हिसाब से उतना खाना देना है. सब्सिडी भी मिलती उन्हें जनरल हैं तो 50% और अगर एससी एसटी हैं तो उन्हें 70% मिलेगा .