बिहार भूमि सर्वेक्षण: कैथी की जानकारी तक नहीं, कैसे होगा सर्वे पूरा?

सरकार ने सीविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किए लोगों को नियुक्ति की है. इनको पता नहीं है कि खाता-खेसरा क्या है? इन्हें ग्राउंड पर सीमांकन करना नहीं आता है. यहां तक कि कैथी भाषा का ज्ञान भी नहीं है.

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टल सकता है जमीन सर्वे

बिहार में नीतीश सरकार द्वारा कराया जा रहा भूमि सर्वेक्षण सरकार के लिए सिर दर्द बनता हुआ नज़र आ रहा है. आम लोगों से लेकर कर्मचारियों और अधिकारियों तक को भूमि सर्वेक्षण में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. कछुए के चाल से चल रहा सर्वेक्षण का काम हर गुज़रते दिन के साथ किसी ना किसी कारण अटक रहा है. पहले कर्मचारियों की कमी और उनमें प्रशिक्षण की कमी.

जुलाई महीने में ही बिहार सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट पर सर्वेक्षण के काम में तेज़ी लाने के लिए 9,888 लोगों को कॉन्ट्रैक्ट पर बहाल किया था. लेकिन इन अमीनों को बिहार की एक प्राचीन लिपि कैथी लिपि पढ़नी और लिखनी नहीं आती है, जिससे अब नई मुश्किल खड़ी हो गई है. दरअसल साल 1980 से पहले राज्य में कैथी लिपि में ही प्रशासनिक और व्यक्तिगत दस्तावेज़ों को लिखा जाता था.

मुगल काल और ब्रिटिश काल में इस लिपि का इस्तेमाल काफ़ी प्रचलन में था. इसके साक्ष्य आज भी मौजूद हैं. उस दौरान भूमि से संबंधित कागज़ात तैयार करने में कैथी लिपि का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता था. कैथी लिपि में ही खातिहान, रसीद, बंदोबस्त संबंधी कागज़ात इत्यादि लिखे जाते थें.

मगर समय के साथ इस ऐतिहासिक लिपि का प्रचलन ख़त्म हो गया. इस लिपि को पढ़ने और लिखने वाले जानकार काफ़ी कम संख्या में रह गये हैं. जिसके कारण भूमि सर्वेक्षण के दौरान अब कर्मचारियों को पुराने दस्तावेज़ों को पढ़ने और समझने में परेशानी हो रही है.

कैथी लिपि पढ़ने की ट्रेनिंग देगा विभाग

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार राजधानी पटना में 5 हज़ार रुपए से अधिक राशि लेकर एक्सपर्ट कैथी दस्तावेज़ों को ट्रांसलेट कर रहे हैं. मगर इनका अनुवाद कितना सही है इसकी जानकारी अमीनो को भी नहीं है. गलत अनुवाद के कारण भूमि विवाद होने की संभावना बढ़ सकती है. जिस कारण भूमि सर्वेक्षण का काम अटकता हुआ नज़र आ रहा है.

इस समस्या को देखते हुए राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के निदेशक भू-अभिलेख एवं परिमाप जय सिंह ने अमीनों और कानूनगो को कैथी लिपि का प्रशिक्षण दिलाने का फ़ैसला लिया है. ट्रेनिंग की शुरुआत बेतिया जिले से होगी, जहां 17 से 19 सितंबर तक बीएचयू के रिसर्च स्कॉलर प्रीतम कुमार और मोहम्मद वाकर अहमद अमीनों और कानूनगो को कैथी लिपि का प्रशिक्षण देंगे.

भूमि सर्वेक्षण के 11 साल बाद जागा विभाग

राज्य में भूमि सर्वेक्षण की शुरुआत साल 2013 में हुई थी. बिहार विशेष सर्वेक्षण बंदोबस्त नियमावली 2012 के तहत राज्य में सर्वेक्षण किया जा रहा है. ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि क्या बीते 11 सालों के दौरान विभाग के सामने कागज़ पढ़ने से संबंधित मुश्किलें नहीं आई थीं? अगर आई तो क्या उसे नजरअंदाज़ कर नई नियुक्तियों में भी इसका ध्यान नहीं रखा गया?

पिछले 13 साल से अमीन का कार्य कर रहे दरभंगा के रहने वाले हीरा झा कहते हैं “जो भी नए अमीन बहाल किये गए हैं, उन्हें नापी करनी नहीं आती है. कैथी पढ़ना तो बहुत दूर की बात है. सरकार ने केवल सर्टिफिकेट के आधार पर उन्हें नियुक्त कर लिया है. उन्हें ना तो लैंड लॉ की जानकारी है और ना ही पब्लिक को कागज़ समझाने की समझ है. ऐसे में अगर अमीन ही कागज़ पढ़ने में सक्षम नहीं हैं तो यह विवाद को और बढ़ाएगा.” 

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई मौकों पर यह कहते सुने गए हैं कि भूमि संबंधित मामलों में होने वाले विवाद को ख़त्म करने के लिए ही यह सर्वेक्षण कराया जा रहा है. लेकिन जब सर्वेक्षण करने वाला ही पूर्ण प्रशिक्षित और तैयार ना हो तो क्या यह विवाद कभी खत्म होगा या नए विवाद को जन्म देगा.

कुशलता पर सवाल या प्रशासनिक लापरवाही?

साल 2019 में कानूनगो, अमीन और बंदोबस्त पदाधिकारी जैसे पदों के लिए 6350 नियुक्तियां निकाली गई. साल 2021 में नियुक्ति प्रक्रिया पूरी हुई. सभी पद कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर भरे गये थे. इसी समय 550 अमीनों की नियुक्ति अंचल में की गयी थी. जिनके पास अमानत और सर्वेयर में टेक्निकल डिग्री थी. लगभग चार साल सेवा लेने के बाद सरकार ने इन कर्मियों को सेवा विस्तार नहीं दिया और कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म कर दिया.

जबकि अधिकारी भूमि सर्वेक्षण के काम में तेज़ी लाने के लिए अतिरिक्त कर्मचारियों की मांग कर रहे थे. जिसके बाद 2023 में 10 हज़ार पदों के लिए नियुक्तियां निकाली गई. जिसकी नियुक्ति इसी वर्ष जुलाई महीने में हुई.

समस्तीपुर के रहने वाले राजीव कुमार की नियुक्ति साल 2021 में अमीन के तौर हुई थी. लेकिन सेवा विस्तार नहीं मिलने के बाद इन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. नव नियुक्त अमीनों की कुशलता पर प्रश्न उठाते हुए राजीव कहते हैं “सबसे पहली बात ये अमीन नहीं हैं. अमीन वो होते हैं जिनके पास अमानत का ज्ञान हो. लेकिन सरकार ने सीविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किए लोगों को नियुक्ति की है. इनको विशेष सर्वेक्षण अमीन का नाम दिया गया. बिहार सरकार जो भी नियुक्तियां करती है उसमें चयनित होकर आने वाले लोगों को बिपार्ड नामक संस्था उनको एक से डेढ़ महीने की ट्रेनिंग देती है वह भी ग्राउंड के बजाए होटल रूम में. इतने कम समय में वो कागज़ातों को पढ़ने में एक्सपर्ट नहीं हो सकते.”

अमानत विषय में डिग्री प्राप्त छात्र यहां सरकार की नीतियों पर भी प्रश्न उठाते हैं. उनका कहना है, पॉलिटेक्निक और आईटीआई कॉलेज से अमानत और सर्वेयर की टेक्निकल डिग्री वाले छात्र को कॉन्ट्रैक्ट पर बहाल किया जाता है. वहीं सामान्य कोर्स के 12वीं पास अभ्यर्थियों को बिना किसी प्रशिक्षण और अनुभव के परमानेंट नौकरी पर बहाल किया किया जाता है.

राजीव कहते हैं “तीन से चार साल का एक्सपीरियंस रखने वाले लोगों को निकालकर दूसरे फील्ड के लोगों की नियुक्ति की गयी है. इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में कुछ छात्रों ने केस भी किया है. जब प्रशिक्षित छात्र को नौकरी देना ही नहीं है तो संस्थानों में प्रशिक्षण बंद कर दीजिए.”

नये विवाद: ज़मीन अदला-बदली के मामले कैसे निपटेंगे?

20 अगस्त से नए प्रखंडों और पंचायतों में सर्वेक्षण के लिए की सूचना दी जा रही है. किसानों या ज़मीन मालिकों को ज़मीन के कागजात ऑनलाइन या ऑफ़लाइन जमा करने को कहा जा रहा है.

एक समय बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में ज़मीन की अदला-बदली एक सामान्य बात थी. लोग अपने गोतिया से ज़मीन की अदला-बदली कर लेते थे. लेकिन ज़मीन की रजिस्ट्री पूर्व के तरह ही रहती थी. कई पीढ़ियां केवल मौखिक या पंचों द्वारा तैयार किए गये कागज़ों के आधार पर ही उस पर अपना अधिकार मानते रहे. भूमि सर्वेक्षण के समय यही लोगों के लिए समस्या का कारण बन गया है.

नालंदा जिले के नूरसराय प्रखंड के ग्राम सरगांव में अगस्त महीने में सर्वे की सूचना दी गई है. इस गांव में लगभग 50 घर है. ग्रामीणों के अनुसार प्रत्येक घर में अदला बदली की गयी ज़मीन है. कई घरों में सर्वे के पहले से ही बदलैन की जमीन को लेकर मुकदमे चल रहे हैं. जबकि कईयों के बीच सर्वे की ख़बर के बाद विवाद शुरू हो गया है.

किसान मुंद्रिका प्रसाद, शिवाजी प्रसाद और शिवचंद्र शर्मा ने करीब 30 साल पहले आपस में ज़मीन की अदला-बदली की थी. तब केवल मौखिक आधार पर गांव के कुछ पंचों के समक्ष यह करार किया गया था. तब से तीनों अपने-अपने खेत पर खेती कर रहे हैं. लेकिन कुछ साल पहले शिवाजी प्रसाद और शिवचंद्र शर्मा के बीच विवाद हो गया.

मुंद्रिका सिंह कहते हैं “दो पक्षों में विवाद हो गया जिसके कारण अब कोई किसी को जमीन रजिस्ट्री करने को तैयार नहीं है. सर्वे से विवाद और बढ़ेगा. क्योंकि नियम के आधार पर जिसके नाम पर ज़मीन की रजिस्ट्री है उसी को ज़मीन का नया कागज़ मिलेगा. लेकिन जो ज़मीन पंच के सामने 30 साल पहले एक दूसरे को मिल गया है वह आज कैसे दूसरे को दे सकते हैं? मामला फिर कोर्ट कचहरी तक जाएगा.”

सरगांव के ही रहने वाले पाशपति सिंह और सुनील सिंह के बीच बदलैन की जमीन का मामला लंबे समय से कोर्ट में हैं. पाशपति सिंह कहते हैं “सर्वे से केवल उसका विवाद ख़त्म होगा जिसके ज़मीन पर दबंगों का कब्ज़ा है या जिस ज़मीन का फ़र्जी कागज़ बनाकर उस पर दावा किया जा रहा है. लेकिन बदलैन वाले विवाद इससे और उलझ जायेंगे.”

दरअसल, बदलैन वाले अधिकांश मामलों में करार टूटने का कारण ज़मीन का मूल्य बढ़ना होता है. अगर पूर्वजों द्वारा बदली गई ज़मीन वर्तमान में फ़ोरलेन या मुख्य सड़क के किनारे आ जाती है और उसका मूल्य बढ़ जाता है. ऐसे में अधिकारिक तौर पर उस ज़मीन के मालिक उस पर अपना दावा करने लगते हैं.

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