भारत की आजादी की लड़ाई में देशभक्त मुस्लिम महिला कुलसुम सयानी का भी नाम आता है. गांधीवादी विचारों वाली कुलसुम सयानी ने रूढ़िवादी जंजीरों को तोड़कर समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद की. वह स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ शिक्षित समाज की बड़ी पक्षधर थी. उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कई मुस्लिम परिवारों को जोड़ने का काम किया था.
21 अक्टूबर 1900 को गुजरात में कुलसुम सयानी का जन्म हुआ. उन्होंने काफी अच्छी पढ़ाई की थी. 1917 में कुलसुम सयानी अपने पिता और पति के साथ महात्मा गांधी से मिली और देश की आजादी की लड़ाई में प्रमुखता से काम करने लगी. सयानी ताउम्र गांधी के रास्ते पर ही चलती रहीं. सयानी का ज्यादा काम मुंबई और उसके उप नगरों में रहा. हालांकि मुस्लिम लीग के नेताओं ने उनके गतिविधियों का समर्थन नहीं किया. लीग का मानना था कि सयानी गरीब समुदायों को कांग्रेस में शामिल होने के लिए लुभा रही हैं.
सयानी ने कांग्रेस के जागरूकता कार्यक्रम जन जागरण में भी हिस्सा लिया और कई सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाई. लोगों को शिक्षित करना, भारत मुक्ति आंदोलन में महिलाओं को जोड़ना, लोक कल्याण और भारत पाकिस्तान संबंधों के अलावा कई अन्य विषयों पर भी सयानी ने काम किया. उन्होंने अपने काम को लेकर लिखा भी है. हिंदी भाषा के काम में प्रौध शिक्षा में मेरे अनुभव’, ‘भारत-पाक मैत्री मेरे प्रयत्न’, ‘भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भूमिका’, ‘भारत में प्रौद्योगिक शिक्षा’ सयानी की रचनाएं हैं.
शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सयानी ने हेल्पर नामक पाक्षिक उर्दू प्रकाशन शुरू किया.
वह आजादी की लड़ाई के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन लाने की भी वकालत करती रही. सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए वह अशिक्षितों को शिक्षित करने लगी और चरखा वर्ग की सदस्य बनी. उन्होंने समाज की कई कुरीतियों के खिलाफ बदलाव लाने के लिए काम किया.
सयानी ने डॉक्टर जॉन मोहम्मद, एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी से शादी की. शादी के बाद दोनों पति-पत्नी स्वतंत्रता संग्राम के कई कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से हिस्सा लेते रहें. सयानी ने विदेशों तक यात्रा की और कई सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया.
कुलसुम सयानी के दो बेटे थे, अमीन सयानी और हामिद सयानी. हामिद सयानी अभिनेता, रेडियो व्यक्तित्व और जादूगर थे. छोटे बेटे अमीन सयानी भी रेडियो व्यक्तित्व थे और समारोह के संचालक भी थे. रेडियो पर उनके प्रोग्राम अपनी आवाज और बिनाकी गीतमाला काफी प्रसिद्ध है.
स्वतंत्रता आंदोलन, सामाजिक बदलाव और शिक्षा के क्षेत्र में सयानी के अतुलनीय योगदान के लिए 1959 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया था. 1969 में राष्ट्रपति ने सयानी को नेहरू साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित किया. 27 मई 1987 को 86 वर्ष की आयु में कुलसुम सयानी का निधन हो गया.