मेरी एक टांग नकली है, लेकिन मैं हमेशा से ही नकली टांगों के साथ नहीं रहा हूं. शुरुआत में मैं भी बाकियों की तरह ही हट्टा-कट्टा और चार पैरों वाला हुआ करता था. दिखने में साफ़-सुंदर, चमत्कार और पैर बिल्कुल मजबूत. किसी की निगाहें मुझपे लगी तो टिकी रह जाए, मेरे बारे में बिना पूछे कोई जाता ही नहीं था, क्योंकि मैं घर की सुंदरता में चार चांद लगा देता था.
मैं घर भी बड़े नाजों के साथ आया था, कभी मुझे कंधे पर बिठाकर लाया जाता, तो कभी सर पर सवार कर लेते. कभी-कभी तो गोद में भी ले लेते थे, एक हाथों से भी मुझे उठाकर रास्ते में प्रदर्शित करते हुए लाया गया है. मगर मुझे इससे कोई गुरेज नहीं, लेकिन अब सोचता हूं तो लगता है शायद उसी नुमाइश की नजर लग गई है. मैं इस घर में 1987 में आया था, तब इनका घर बना भी नहीं था. घर वालों ने मुझे बाहर के कमरे में रख दिया और मैं भी चुपचाप बैठा गया, करता भी तो क्या, चला भी तो नहीं जाता मुझसे. शुरुआत में मुझ पर फूलदान सजाकर रखते थे, फिर घर में टीवी आया तो मैं उसे अपने सर पर सजाने लगा. कुछ साल बीते तो टीवी दीवारों पर चला गया और मुझपर चढ़कर बच्चे खेलने लगे. मुझे बच्चों को हंसता-खेलता देख मजा आता था, इसलिए मैं मजबूती के साथ अपने चारों टांग की जोर लगाकर खड़ा रहता था. हालांकि डर भी लगता था, छोटे बच्चे हैं कहीं गिर ना जाए. मुझपे चढ़ते- उतरते हुए वह गिर भी जाते थे, उनके गिरने पर मार मुझे ही पड़ती थी. मां कहती- उसने तुम्हें गिराया, यह लो मैंने इसे ऐसे मार दिया. मैं बच्चों की नादानी पर अंदर ही अंदर हंसता, मगर बाहर की खूबसूरती से चोट को झाड़ लेता.
मां ने सबका समय बांध दिया
मेरी आंखों के सामने तीनों बच्चे बड़े हुए. तीनों में से एक की नौकरी लगी, तो बाकी दो बाहर पढ़ने चले गए थे. इसी बीच कोरोना ने दस्तक दी तो तीनों भागकर घर आग गए. मुझे तीनों को देखकर बड़ी खुशी हुई, लेकिन मुझे क्या पता था कि मेरे लिए तीनों लड़ेंगे. मुझसे इतना प्यार था तीनों को की सब मेरे साथ रहना चाहते थे. नौकरी वाले ने मेरी मांग मां के सामने रख दी, उसने कहा कि यह बहुत मजबूत है मैं इस पर रखकर अपना काम करूंगा. बाकी दोनों भी जिद्द करने लगे कि हमें भी पढ़ाई करनी है, हमें इसकी ज्यादा जरूरत है. खूब लड़ाई के बाद मां ने सबका समय बांध दिया. दिन में 9 से 5 मैं नौकरी वाले के साथ रहता. नौकरी वाला मुझ पर खूब सामान लाद देता. बड़े लैपटॉप, कीबोर्ड, माउस, तार, बोतल, चश्मा, फोन, कागज सब मुझपर बिखरे रहते थे. मेरी सुंदरता इन सारी चीजों से छुप जाती थी. मैं इनसब में सांस भी नहीं ले पाता था. उसके काम खत्म होने के तुरंत बाद मैं 5 घंटे एक लाडले के साथ रहता, तो बाकी पूरी रात के लिए तीसरा लाडला मुझे उठाकर ले जाता था. तीसरा लाडला मुझ पर टेबल लैंप, कॉपी, किताब, पेन, पेंसिल रखकर पूरी रात पढता और सुबह मुझे चमका कर अपने भाई के हवाले कर देता. हर दिन की मेरी यही दिनचर्या हो गई थी. कभी-कभी तो लगता था कि मैं अगर दो हाथ, दो पैरों वाला होता तो खुद ही सबके हिसाब से तैयार होकर बैठा रहता.
पूरे लॉकडाउन में मुझ पर कई काम हुए और इससे भी मन नहीं भरा तब उन्होंने मुझ पर सब्जियां रखनी शुरू कर दी. हालांकि अब मेरी भी उम्र हो चुकी थी, मगर सुंदर तो मैं था. मगर आखिर कब तक अपनी खूबसूरती का गुमान करता, इसलिए मैंने भी सब्जियों से दोस्ती कर ली. एक दिन बारिश में अनजाने में मैं बहुत भीग गया, मुझे सर्दी-जुकाम हो चुका था, तबीयत खराब की वजह से मैं थोड़ा आराम करना चाहता था. इसलिए मैंने अपने एक पैर को मोड़कर बैठना चाहा, लेकिन तब तक मेरे ऊपर से आलू, टमाटर, प्याज, भिंडी चिल्लाते हुए गिरने लगे. सर भारी रहने के कारण मुझे ध्यान नहीं रहा कि मुझे अब भी दूसरों का भार संभालना है. सबको गिरता देख मैं समझ गया कि फिर मुझे मार पड़ेगी. इसलिए मैंने जल्दी से आंख बंद कर लिया. मैं दोबारा उठना नहीं चाहता था, लेकिन नींद खुली तो देखा पैर में प्लास्टर लगाकर दूसरे बिरादरी की लकड़ी के सहारे मुझे फिर से खड़ा किया गया है. लेकिन इस बार मेरे सर पर बोझ कम था, क्योंकि मेरी एक टांग नकली है.