भारतीय समाज में महिलाओं को हमेशा चुनौतियां मिली है. समाज की रूढ़िवादी सोच ने महिलाओं को कदम-कदम पर पीछे धकेलना की कोशिश की है. इनमें मुश्किलें मुस्लिम महिलाओं के लिए ज्यादा बढ़ जाती है. मुस्लिम समाज की महिलाएं कई तरह की बेड़ीयों से जकड़ी हुई है. मगर वह हर दिन खुद को साबित करने की एक नई जद्दोजहद करती हैं. तमाम मुश्किलों से निकलकर महिलाओं ने सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक हर तरह के क्षेत्र में अपने योगदानों से अमिट छाप छोड़ी है.
इन मुस्लिम महिलाओं में रशीद उन निसा का भी नाम शामिल है. रशीद बीबी को देश की पहली महिला उर्दू उपन्यासकार, समाज सुधारक और लेखिका के तौर पर जाना जाता है. उन्हें उनके पहले उपन्यास इस्लाह उन नीसा के लिए खूब सराहा जाता है. बिहार के पटना में साल 1885 में रशीद उन निसा का जन्म हुआ. उनके पिता का नाम शम्सुल उलामा सैयद वहीदुद्दीन खान बहादुर था. जन्म के बाद शुरुआती पढ़ाई रशीद बीबी ने घर से ही की. उस समय काफी कम लड़कियां स्कूल पढ़ने जाती थी. रशीद बीबी एक शिक्षित और संपन्न परिवार से थी, मगर फिर भी साहित्य और ज्ञान तक उनकी पहुंच ज्यादा नहीं थी. उनकी शादी वकील मौलवी मोहम्मद याह्या से हुई. मौलवी मोहम्मद साहित्य में रुचि रखते थे, जिस कारण रशीद बीबी का भी ध्यान साहित्य और शिक्षा की ओर बढ़ता चला गया.
लेखिका रशीद ने करीब 11 साल के लंबे इंतजार के बाद 1881 में अपनी रचना इस्लाह-उन-निसा को प्रकाशित करवाया. इतने सालों तक उनकी रचना बेकार पड़े कागजों के बीच कहीं धूल खाती रही. रशीद बीबी ने अपने उपन्यास लिखने की शुरुआत 1869 में की. दरअसल वह मिरात उल उरूस को पढ़कर काफी प्रभावित हुई थी. इसके बाद उन्होंने अपने उपन्यास को 6 महीने में ही पूरा कर लिया. मगर इसके प्रकाशन के लिए उन्हें एक दशक से ज्यादा इंतजार करना पड़ा. उनके उपन्यास का प्रकाशन भी बेटे बैरिस्टर सुलेमान के कारण हुआ. बैरिस्टर सुलेमान कानून की डिग्री हासिल कर इंग्लैंड से वापस आए और तब जाकर अपने मां के उपन्यास को छपवाया. लेकिन रशीद की किताब में लेखिका के नाम की जगह बैरिस्टर सुलेमान की मां, सैयद सैयद वहीदुद्दीन खान बहादुर की बेटी और इमदाद इमाम की बहन लिखा गया. इससे यह पता लगता है कि उस समय महिलाओं की पहचान समाज में किस तरह पुरुषों के नाम के तले छुपाई जाती रही होगी.
राशिद बीबी के उपन्यास में महिलाओं की शिक्षा, नैतिक उत्थान और समाज की रूढ़िवादी परेशानियों को झेलते हुए आगे बढ़ते रहने का जिक्र मिलता है. यह उपन्यास महिलाओं को बल देने और उनके सामाजिक उत्थान में बदलाव लाने का पक्षधर है.
लेखिका रशीद बीबी महिलाओं को शिक्षा देने की बड़ी पक्षधर थी. इसके तहत उन्होंने बिहार में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला. साल 1929 में लेखिका रशीद उन निसा का निधन हो गया.