मुकेश ( बदला हुआ नाम ) जिनके भाई की ज़हरीली शराब पीने से मौत हुई है. जब डेमोक्रेटिक चरखा ने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि “मेरे भाई काम करके घर आए , खाना खाया फिर टहलने बाहर निकल गए. जब वो वापस घर आए तो आकर सो गए, अचानक उनकी तबियत बिगड़ गई, उन्हें सांस लेने में तकलीफ़ हुई. जब हमें पता चला की उन्होंने शराब पिया है हमने तुरंत उनसे उल्टी करवाने की कोशिश की और थोड़ी उल्टी हुई भी. उसके तुरंत बाद हमने उन्हें डॉक्टर के पास भी ले गए लेकिन रास्ते में ही उनकी सांस बंद हो गई.”
साल 2016 में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराब पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया था. बिहार में शराबबंदी को 8 साल हो गए हैं. लेकिन बिहार में शराब पीने और बिकने के मामले में कोई कमी नहीं आई है. बिहार में शराबबंदी कानून लागू होने के बाद 8 साल में 12 लाख 79 हज़ार लोग गिरफ़्तार हुए हैं.
अब तक इस कानून के तहत 8 लाख 43 हज़ार से ज़्यादा FIR दर्ज की की गई हैं. इतना ही नहीं शराबबंदी वाले राज्य में 8 साल में 3 करोड़ की 46 लाख लीटर शराब भी बरामद हुई है. जबकि ज़हरीली शराब से 266 लोगों की मौत की बात सामने आई, लेकिन जांच में 156 की पुष्टि हुई है. ये आंकड़े मद्य निषेध विभाग के हैं.
बिहार में ज़हरीली शराब से कहां और कितनी मौत?
सारण में ज़हरीली शराब पीने से सबसे अधिक 75 मौत हुई है. उसके बाद पूर्वी चंपारण 55, गोपालगंज 33, नालंदा 12, नवादा 11, औरंगाबाद 8, गया 6 मौतें हुई हैं. ये आंकड़े अप्रैल 2024 तक के हैं.
बिहार में शराब के अवैध कारोबार को रोकने के लिए पुलिस और एक्साइज़ डिपार्टमेंट को ज़िम्मेदारी सौंपी गई है. सरकारी आंकड़ों की बात करें तो एक अप्रैल 2016 से जून 2023 तक बिहार में शराबबंदी कानून के तहत 5 लाख से ज़्यादा केस दर्ज़ किए गए हैं. एक्साइज़ (आबकारी) विभाग ने जून 2023 की 15 की तारीख़ को बताया कि हर रोज़ औसतन 800 लोगों को शराबबंदी कानून तोड़ने के कारण गिरफ़्तार किया जाता है. 2021 से लेकर 2023 तक में आबकारी विभाग ने करीब 1400 लोगों को एक से ज़्यादा बार शराब पीने के ज़ुर्म में गिरफ़्तार किया है.
शराबबंदी कानून में चार बार बदलाव सबसे पहले राज्य सरकार ने साल 2022 में इस कानून में दो बदलाव किए थे. इसमें शराबबंदी कानून के तहत पहली बार पकड़े जाने पर मामले की सुनवाई का अधिकार एक्जिक्यूटीव मैजिस्ट्रेट को दिया गया था. इससे पहले मामले को सीधा ट्रायल कोर्ट भेजा जाता था. इसी समय शराबबंदी क़ानून के तहत सज़ा को भी दस साल से घटाकर पांच साल कर दिया गया था.
अप्रैल 2022 में राज्य के शराबबंदी कानून में एक बड़ा बदलाव कर पहली बार शराब पीकर पकड़े जाने पर 2 हज़ार से 5 हज़ार तक ज़ुर्माना देकर सज़ा से बचने का प्रावधान जोड़ा गया था. पहले इसके लिए सीधा जेल जाना होता था. यह बदलाव साल 2021 के अंत में सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी के बाद किया गया था. कोर्ट ने कहा था कि बिहार में शराबबंदी कानून दूरदर्शी योजना बनाकर लागू नहीं की गई और इससे अदालतों पर दबाव बढ़ा है.
राज्य के शराबबंदी कानून में एक बड़ा बदलाव अप्रैल 2023 में किया गया था. गया में रास्ते में चलते हुए एक इंसान से मुलाकात हुई जिन्होंने शराब का सेवन कर रखा था. जब हमने उनसे पूछा कि बिहार में तो शराब बंद है फिर आपको शराब कैसे मिल गया. उसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि “पहले तो आप मेरा वीडियो मत बनाए तब ही मैं कुछ बताऊंगा”.
उसके बाद उन्होंने बताया कि “बिहार में शराब हर जगह मिल रही है. आप कहीं भी जाओ उधर मिल जायेगा यहां तक की होम डिलीवरी भी हो जायेगी. हम मज़दूर हैं काम करके आते हैं तो थकान दूर करने के लिए पीना ज़रूरी हो जाता है. 2016 से पहले तक सब ठीक था. सरकार ने जिस तरह से शराब पर रोक लगाई वो बिलकुल भी ठीक नहीं था.”
किस तरह बिहार का भोगौलिक स्तिथि शराबबंदी पर डालता है असर
ऐसे कठोर नियमों के बावजूद भी राज्य में शराबखोरी की घटना में कोई कमी नहीं आ रही है. बिहार की भोगौलिक स्थिति ही वो कारण है जो बिहार की स्थिति को काफ़ी दयनीय बना रही है. राज्य अपनी सीमा को नेपाल, पश्चिम बंगाल, झारखंड और उत्तरप्रदेश से बांटता है. इनमें से कोई भी राज्य शराबबंदी की हिमायती नहीं है. और ये देखते हुए कि पश्चिम बंगाल और झारखंड के आबकारी राजस्व में दर्ज रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी, खुद इस बात के साक्ष्य हैं कि इन पड़ोसी राज्यों से शराब की आवाजाही बिहार में बदस्तूर जारी है.
राजस्व के एक बहुत बड़ा स्रोत नजरंदाज़
देशभर में, बिहार जो आर्थिक रूप से सबसे पिछड़े राज्य के रूप में जाना जाता हैं, उसने इस शराबबंदी को लागू करके राजस्व के एक बहुत बड़े स्रोत को नजरंदाज़ कर दिया. जबकि इस प्रतिबंध से किसी भी प्रकार की कोई सकारात्मक नतीजे नहीं आये हैं. वरना इस निर्णय ने राज्य को बदहाली की राह पर जाने को मजबूर कर दिया है.
2015-16 के वर्ष के लिए, राज्य का आबकारी धन 4,000 करोड़ रूपये तक होना अनुमानित किया गया था. प्रतिबंध लगाए जाने के सात वर्षों के उपरांत, आबकारी की कमाई में आम बढ़ोत्तरी दिए जाने के बावजूद राज्य को लगभग 40,000 करोड़ रुपयों का नुकसान हो चुका है.
सरकारी आंकड़े में है गड़बड़ी
एनसीआरबी (NCRB) के रिपोर्ट के अनुसार साल 2015 से 2021 तक बिहार में ज़हरीली शराब पीने से मात्र 23 लोगों की मौत हुई है. एनसीआरबी ये आंकड़े स्थानीय पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़ों के आधार पर तैयार करती है. ऐसे में वो मामले जो थाने के बाहर निपटा दिए जाते हैं वो पुलिस रिकॉर्ड में कहीं दर्ज ही नहीं होते हैं.
एनसीआरबी की रिपोर्ट में साल 2016 में सिर्फ 9 मौत बताई गई, जबकि अगस्त 2016 में अकेले गोपालगंज के खजूरबानी में 19 लोगों की मौत ज़हरीली शराब से हुई थी. इसकी पुष्टि कोर्ट में भी हो गई थी. मुकेश आगे बताते हैं कि “सरकार ने शराबबंदी तो लाई, लेकिन शराबबंदी विफल साबित हुई. आज बिहार में हर जगह शराब मिल रहा है ऊपर से ज़हरीली शराब ज़्यादा मिल रहा है जिसका सेवन करके लोग मौत को दावत दे रहें हैं. सरकार को या तो शराबबंदी हटा देनी चाहिए या फिर से शुरू कर देना चाहिए क्योंकि इस बंदी से सिर्फ़ लोगों की जान जा रही है.”
जब हमने इस पर मद्यनिषेध विभाग से बात करने की कोशिश तो उनसे बात नहीं हो पाई. लेकिन ये साफ़ ज़ाहिर होता है कि सरकार इस पर अपनी ज़िम्मेदारी नहीं लेती है. बिहार में ऐसे कई मामले आए हैं जहां शराब पीकर गाड़ी चलाने से दुर्घटना में लोगों की मृत्यु हुई है. गया से औरंगाबाद जाने वाले गोह रोड में कई बार दुर्घटना हुई हैं. जब हमने दुर्घटना की अंदरूनी जांच की तो हमें एक स्थानीय युवक मिले. जब हमने उनसे पूछा कि उनकी दुर्घटना कैसे हुई थी तो उन्होंने बताया कि “मैं स्कूल से वापस घर आ रहा था उसी वक्त एक कार ने आकर मुझे धक्का मार दिया जब हमने देखा तो उन्होंने शराब पी रखा था. यहां तक की जब पुलिस आई और मैंने बताया तो उन्होंने उसपर कोई एक्शन नहीं लिया”
क्या हो सकता है शराबबंदी का भविष्य
बिहार में शराबबंदी के भविष्य को लेकर लगातार चर्चा होती रहती है. साल 2025 में बिहार में चुनाव होने हैं. प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने चुनाव जीतने के 10 मिनट के अन्दर शराबबंदी ख़त्म करने की बात कही है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने भी शराबबंदी ख़त्म करने की बात कई बार कही है. बिहार में शराबबंदी का मुद्दा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा साबित हो सकता है.