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नीति आयोग के एसडीजी इंडेक्स 2022-23 में बिहार को 100 में से 57 अंक मिले हैं, जो कि बहुत कम है। इससे राज्य की गरीबी और विकास में पिछड़ापन झलकता है।
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जयशंकर शर्मा की कहानी यह दर्शाती है कि रोजगार की तलाश में लोग गांव छोड़कर शहरों में जाते हैं, लेकिन वहां भी स्थायी रोजगार की कमी के कारण उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
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भारत में गरीबी रेखा के मानदंड आज की महंगाई और जीवन स्तर के हिसाब से बहुत कम हैं, जो सामाजिक वास्तविकताओं से मेल नहीं खाते।
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कोरोना महामारी के दौरान भारत में गरीबी में बड़ी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन सरकार इन आंकड़ों को नहीं मानती।
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सरकार का दावा है कि पिछले नौ वर्षों में 248 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आ चुके हैं, लेकिन नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार जैसे राज्यों में योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।
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गरीबी उन्मूलन में बिहार को 39 अंक मिले हैं जबकि शिक्षा और भूख मुक्ति में भी बेहद कम अंक प्राप्त हुए हैं, जो राज्य की विकास में कमी को दर्शाते हैं।
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मनीष कुमार का मामला यह दिखाता है कि सरकार की कल्याणकारी योजनाएं, जैसे मुफ्त राशन योजना, भी प्रभावी नहीं हो रही हैं और लोगों को बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
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सरकार ने कई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम शुरू किए हैं, लेकिन इनका प्रभाव सीमित है और वंचित समुदायों के लिए अभी भी भोजन, आवास, शिक्षा, और स्वास्थ्य की चुनौतियां बनी हुई हैं।
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राज्य और केंद्र सरकार को योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए मिलकर काम करने की जरूरत है ताकि गरीबी उन्मूलन के प्रयास सफल हो सके।
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