न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ने के बाद क्या किसानों की आय बढ़ी?

केंद्र ने खरीफ, रबी और अन्य फसलों के MSP में वृद्धि की है. धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2,183 रुपए प्रति क्विंटल और गेहूं के लिए 2,275 रूपए प्रति क्विंटल तय किया है.

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पल्लवी कुमारी
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फसल की खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं

सरकार किसी भी फसल की खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं

केंद्र ने खरीफ या मानसून सीजन में बोए जाने वाले धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) 2,183 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया है. ये पिछले साल की तुलना में 143 रूपए प्रति क्विंटल अधिक है. इस वर्ष (सितंबर से अक्टूबर) खरीदे जाने वाले फसलों का मूल्य निर्धारित किया है. इसमें 14 खरीफ फसलों, सात किस्म की रबी फसलों और तीन किस्म की अन्य फसलों के लिए एमएसपी को मंजूरी दिया गया.

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खाद्य मंत्री पीयूष गोयल ने सीसीईए बैठक के बाद कहा कि “इस वर्ष खरीफ फसलों के एमएसपी में वृद्धि पिछले वर्षों की तुलना में सबसे अधिक है. ऐसे समय जब खुदरा मुद्रास्फीति घट रही है, एमएसपी में बढ़ोतरी से किसानों को फायदा होगा. कृषि में, हम कृषि लागत और मूल्य आयोग (CSP) की सिफारिशों के आधार पर समय-समय पर एमएसपी तय करते रहे हैं.”

धान समेत दलहन और तिलहन में हुई है 10% तक की वृद्धि

धान के अलावा प्रमुख दालों के लिए नई एमएसपी निर्धारित की गई है. धान को दो प्रकार सामान्य और ग्रेड ‘ए’ के लिए अलग अलग मूल्य निर्धारित किया गया है. इसमें सामन्य किस्म की धान का एमएसपी पिछले वर्ष के 2,040 रुपये से 143रुपए (7%) बढ़ाकर 2,183 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है. वहीं धान की ‘ए’ ग्रेड किस्म का एमएसपी 2,060 रुपये प्रति क्विंटल से 143 रुपये (6.9%) बढ़ाकर 2,203 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है.

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खरीफ फसलों में धान के बाद सबसे ज़्यादा मूल्य वृद्धि दलहन फसलों में की गयी है. दालों में मूंग का एमएसपी सबसे अधिक 803 रूपए (10.35%) बढ़ाकर 8,558 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है जो वर्ष 2022-23 में 7,755 रुपये प्रति क्विंटल था.

तिलहनों में, तिल और मूंगफली के एमएसपी में क्रमशः 10.9% और 9% की वृद्धि की गयी है. तिल की एमएसपी 7,755 रुपए से बढ़ाकर 8,635 रूपए प्रति क्विंटल और मूंगफली की 5,850 रुपए से बढ़ाकर 6,377 रूपए प्रति क्विंटल किया गया है.

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वहीं रबी फसलों में सबसे ज़्यादा वृद्धि गेहूं और मसूर में की गयी है. गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2,125 रुपए से बढ़ाकर 2,275 रूपए प्रति क्विंटल किया गया है. मसूर का मूल्य 6000 रूपए प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 6,425 प्रति क्विंटल किया गया है.

इस वृद्धि से खुश नहीं किसान

हालांकि किसान इस वृद्धि से खुश नहीं है. उनका कहना है कि यह वृद्धि उनके फसल लागत के अनुरूप नहीं है. 

किसान नेता अशोक प्रसाद एमएसपी वृद्धि को नाकाफी बताते हुए कहते हैं “जिस अनुसार से मार्केट में मंहगाई बढ़ी है उसमें यह वृद्धि नाकाफी है. अगर सरकार किसान को मुनाफा देना चाहती तो गेहूं का दाम कम से कम 2500 रुपए प्रति क्विंटल तय करती. पिछले साल गेहूं का दाम 2125 रुपया प्रति क्विंटल होने के कारण सरकार तय लक्ष्य से कम गेहूं खरीद सकी थी. सरकारी रेट से 100-200 रुपए प्रति क्विंटल ज्यादा देकर व्यापारियों ने किसानों से गेहूं खरीद लिया था."

पैक्स में किसानों के धान-गेहूं ना बेचने का कारण बताते हुए अशोक कहते हैं “पहला कारण बहुत बार पैक्स अनाज खरीदती नहीं है. वहीं दूसरा, सरकार अगर 2100 रुपए प्रति क्विंटल रेट तय करती है तो पैक्स किसान को 2000 से 2050 रुपए प्रति क्विंटल दाम देती है. उसमें भी पैसा देने में एक से दो महीने का समय लगाती है. जबकि व्यापारी खेत पर 2200 से 2300 रूपए प्रति क्विंटल नकदी देकर गेहूं खरीद लेता है.”

कितने किसानों को मिलता है MSP का लाभ?

जब MSP पर अनाज बेचने की बात आती है तो पहले हमें यह जानना होगा कि देश में किसानों की संख्या कितनी है? एक अनुमान के अनुसार देश में 10 करोड़ से ज़्यादा किसान परिवार हैं. वहीं नाबार्ड की साल 2021 की एक रिपोर्ट में बताया गया है की देश में रह रहे कुल परिवारों का 50% खेती से जुड़े हैं. कृषि और किसान कल्याण विभाग पर मौजूद डाटा के अनुसार देश में 118.8 मिलियन लोग खेती से जुड़े हैं.

अगर राज्यों की बात की जाए तो उत्तरप्रदेश (62.7%), मध्यप्रदेश (57.9%) और राजस्थान (63.3%) जैसे राज्यों में सबसे ज़्यादा किसान परिवार रहते हैं. वहीं बिहार में रहने वाले कुल परिवारों का 50% खेती-बाड़ी से अपनी जीविका चलाते हैं.

हालांकि देश में किसानों की इतनी बड़ी संख्या होने के बाद भी 8.5 करोड़ किसान के पास किसान क्रेडिट योजना का लाभ हैं. देश में किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत इस वर्ष 8,55,68,254 किसानों को 6 हज़ार रूपए का लाभ दिया गया है.

खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के आंकड़े के अनुसार इस फसल वर्ष 2023-24 में 21.29 लाख किसानों से  गेहूं और 0.69 लाख किसानों से चावल खरीदा गया है. वर्ष 2022-23 में 17.83 लाख किसानों से गेहूं और 125.64 लाख किसानों से चावल खरीदी गयी थी. 

नाबार्ड द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार बिहार में किसानों को एक हेक्टेयर धान की फसल उगाने में 29,791 रूपए ख़र्च करने पड़ते हैं. वहीं गेहूं में 29,056/हेक्टेयर, मक्का  30,253/हेक्टेयर और चने के फसल में 21,810/हेक्टेयर खर्च करने पड़ते हैं. हालांकि यह आंकड़े साल 2015-16 के डाटा पर आधारित हैं.

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सरकार ने गेहूं खरीद का लक्ष्य 102.5 लाख टन घटाया

केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 में देश भर से गेहूं खरीद का लक्ष्य घटाकर 341.50 लाख टन कर दिया है. पिछले साल यानि वर्ष 2022-23 में 444 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन वास्तविक खरीद मात्र 187.92 लाख टन की ही हुई थी.

इस वित्तीय वर्ष सितम्बर महीने के अंत तक 262.02 लाख टन गेंहूं की खरीद हुई है. जिसका लाभ 21.29 लाख किसानों को मिला है. वहीं धान की 7.28 लाख टन और चावल की 4.89 लाख टन खरीद हुई है जिसका लाभ मात्र 69 हजार किसानों को ही मिला है.

राज्यों की बात की जाए तो बिहार से इस वित्त वर्ष 10 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा गया है. जिसमें से अब तक मात्र 0.01 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है. वहीं 2022-23 में भी 10 लाख टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा गया था लेकिन वास्तविक खरीद मात्र 0.04 लाख टन की हुई थी. वित्तीय वर्ष 2021-22 में 7 लाख टन गेहूं खरीद के लक्ष्य में से 4.56 लाख टन गेहूं की खरीद हो सकी थी.

किसान नेता अशोक पंडित कहते हैं “देश में पिछले दो सालों से गेहूं की खरीद नहीं हुई है. पिछले साल बेगूसराय जिले में 3 लाख 23 हजार क्विंटल गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन खरीद हुई लगभग 1 हजार क्विंटल का. नतीजा यह हुआ की सरकार के गोदामों में गेहूं की कमी हो गयी. इसी कारण जन वितरण की दुकानों पर प्रति व्यक्ति मात्र एक किलो गेहूं दिया गया और बहुत जगहों पर वह भी नहीं.” 

निर्धारित लक्ष्य खरीद के आंकड़े भी पूरा नहीं कर पा रही सरकार

इस वर्ष सितंबर अंत तक के आंकड़ों के अनुसार देश में 1355.42 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ है. जिसमें सरकार द्वारा 569.47 लाख टन चावल की ही खरीद हुई है. पिछले वित्तीय वर्ष यानी 2022-23 में देश में 1294.71 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था लेकिन सरकार ने 575.88 लाख टन चावल ही खरीद सकी थी. वहीं कोरोना (2020-21) के दौरान भी किसानों ने 1243.68 लाख टन चावल का उत्पादन किया था. जिसमें से सरकार 601.73 लाख टन चावल खरीदा था.

इन आंकड़ों को देखकर हम सहज अनुमान लगा सकते हैं, कि उत्पादन की तुलना में सरकार किसानों से गेहूं और चावल खरीदने में पीछे हैं. यहां तक कि अनाज खरीद का जो लक्ष्य रखा जाता है उसे भी सरकार पूरा नहीं कर पाती है.

बिहार में रबी और खरीफ मौसम के दौरान साल 2022-23 में 67.25 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था जिसमें से 28.17 लाख टन चावल खरीदा गया था. यह अधिप्राप्ति देशभर में खरीदे गये चावल का 5% था. वहीं 2021-22 में 77.17 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था जिसमें से मात्र 30.09 लाख टन चावल ही खरीदा गया था. वित्त वर्ष 2020-21 में 67.47 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था जिसमें से 28.17 लाख टन चावल खरीदा गया था.

चावल अधिप्राप्ति (खरीद) के आंकड़े को देखा जाए तो सबसे ज्यादा चावल की खरीद पंजाब (21%), छत्तीसगढ़ (10%), हरियाणा (7%) और तेलंगाना (16%) से हुई है. वहीं उत्तरप्रदेश से 8%, आंध्रप्रदेश, मध्यप्रदेश व बिहार से 5%, तमिलनाडु व पश्चिम बंगाल से 4% और उत्तराखंड से 1% चावल की खरीद हुई है. शेष राज्यों से 4% चावल की खरीद हुई है.

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