1 जुलाई 2015 को देश के प्रधानमंत्री द्वारा डिजिटल इंडिया की शुरुआत हुई. जिसका उद्देश्य देश के सभी लोगों को डिजिटल सेवा से जोड़ना और तकनीक से सशक्त करना था. बिहार में भी अब सारी योजनाओं का रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन हो रहा है. यहां तक कि जनता दरबार का रजिस्ट्रेशन भी ऑनलाइन ही होता है.
पटना के खोजा इमली के कन्हैया नगर में रहने वाले 50 वर्षीय निरंजन को मोतियाबिंद है. गरीबी से जूझ रहे निरंजन अपने इलाज के लिए आयुष्मान कार्ड बनवाना चाहते हैं. लेकिन डिजिटलाइज़ेशन के कारण उनका आयुष्मान कार्ड नहीं बन पा रहा. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए निरंजन बताते हैं कि
आधार कार्ड पर मेरा नाम निरंजन साव है, वहीं राशन कार्ड पर गलती से नाम हिम्मत मेहता हो गया है. जिसके कारण मेरा आयुष्मान कार्ड नहीं बन पा रहा है.
निरंजन आगे बताते हैं,
मुझे आयुष्मान कार्ड बनाने के लिए आय और जाति प्रमाणपत्र बनवाना होगा जिसकी प्रक्रिया ऑनलाइन है. उसके बाद राशन कार्ड में नाम सुधरवाना होगा जिसकी सारी प्रक्रिया ऑनलाइन होती है और हमें फोन तक चलाना नहीं आता है. मुझे जानकारी भी नहीं की कैसे फॉर्म भराएगा. इन सारी वजहों से मेरे आंख का इलाज नहीं हो पा रहा है.
क्या सभी लोग ऑनलाइन प्रक्रिया अपना पाने में सक्षम हैं?
2021 में आंगनवाड़ी ने सेविकाओं को एंड्रॉयड फ़ोन देने का फ़ैसला लिया. भारत सरकार ने आठ राज्यों में स्मार्ट फोन के माध्यम से आंगनवाड़ी संचालित करने की योजना को लागू किया है जिसमें बिहार भी शामिल है. इस योजना के माध्यम से अब आंगनवाड़ी रजिस्टर से नहीं मोबाइल एप से चल रहा है.
पटना के अशोक राजपथ के एक आंगनबाड़ी सेविका बताती हैं
आंगनबाड़ी का ज्यादातर काम ऑनलाइन और मोबाइल के माध्यम से करना पड़ता है. ग्रोथ मॉनिटरिंग से लेकर हाज़री तक फोन पर बनाना पड़ता है. हमें मोबाइल इस्तेमाल करना ठीक से नहीं आता जिसके वजह से हमें बहुत परेशानी होती है और हमें ठीक से प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता.
बिहार में कितने लोगों के पास है स्मार्ट फोन?
2011 के जनगणना के अनुसार बिहार की आबादी 10.41 करोड़ है. पूर्व केंद्रीय इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने 2020 में बताया कि बिहार में इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले की संख्या 2014-15 में 80 लाख थी जो की अब बढ़ कर 3.39 करोड़ हो चुकी है.
हालांकि भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण के एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार की पूरी आबादी में से मात्र 30.35% ही लोग के पास इंटरनेट कनेक्शन है.
बिहार के कैमूर जिले के रामपुर प्रखंड के भीतरी बांध गांव में मोबाइल नेटवर्क काम नहीं करता जिसका नतीजा ये हो रहा है की वहां के किसानों को सरकारी योजनाओं से अपरिचित रह जा रहें हैं.
अखिलेश्वर् एक दिहाड़ी मज़दूर हैं जो मेहनत करके अपने घर में दो वक़्त की रोटी का इंतज़ाम कर पाते हैं. डिजिटलाइजेशन से परेशान अखिलेश्वर जो की मार्सलामी के मंगल अखाड़ा में रहते हैं वो बताते हैं कि
सरकार द्वारा लाई गई सारी योजनाएं का रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन हो गया है. हम जहां रहते हैं वहां 90% लोग अशिक्षित हैं, हमें फोन इस्तेमाल करना नहीं आता. जिसकी वजह से हमें वृद्धा पेंशन और कई सारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है.
बिहार में 20% महिलाएं ही करती हैं इंटरनेट का इस्तेमाल
सेंटर फॉर कैटेलाईजिंग चेंज (Centre for Catalyzing Change) द्वारा हाल ही में जारी रिपोर्ट में ‘बिहार में महिलाओं की इन्टरनेट’ पहुंच में न्यूनतम भागीदारी को लेकर चिंता जताई गई है. इस रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कैसे महिलाएं इंटरनेट और मोबाइल के पहुंच से आज भी कोसो दूर हैं.
रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 17% महिलाएं और 39.4% पुरुष इंटरनेट का उपयोग करते हैं. वहीं NFHS के अनुसार देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 24.6% महिलाएं और 48.7% पुरूष ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के रिपोर्ट के अनुसार बिहार में सबसे कम यानी 20.6% महिलाएं ही इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं और सिक्किम में सबसे ज़्यादा 76.7% महिलाएं इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं.
बिहार के बेगूसराय की रहने वाली रानी कुमारी ने इस साल ग्रेजुएशन पास किया है. रानी कुमारी बिहार के दलित समुदाय 'मांझी' समुदाय से आती हैं. उनके पूरे घर की आय 8 हज़ार से 10 हज़ार रूपए प्रति माह है. ऐसे में रानी कुमारी के लिए स्मार्टफ़ोन रखना नामुमकिन है. रानी कुमारी को कन्या उत्थान योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन देना था. लेकिन आवेदन ऑनलाइन होने की वजह से आज वो इस योजना से वंचित हैं. दुखी होकर रानी कुमारी कहती हैं
योजना का लाभ लेने के लिए हमको ऑनलाइन अप्लाई करना होगा. अब हमारे पास कोई सुविधा ही नहीं है तो हम योजना का लाभ कैसे लें?
बिहार में स्मार्ट फोन से ज्यादा कीपैड वाले फोन
2015 में आई प्रोविजनल सोशियो इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसस डाटा (provisional socio-economic and caste census data) के अनुसार बिहार के ग्रामीण इलाकों में 82.16% लोगों के पास फोन मौजूद है. लेकिन बिहार अभी भी दिल्ली , उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से पीछे है. हालांकि बिहार के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों के पास कीपैड वाले मोबाइल फोन होते हैं जो बस कॉल प्राप्त करने या कॉल करने के काम आते हैं.
बिहार के कई गांव अभी भी ऐसे हैं जहां पर इन्टरनेट तो दूर की बात है, अभी तक मोबाइल नेटवर्क भी नहीं पहुंचा है. बिहार के सीमांत जिलों में से एक कैमूर में एक गांव है बरवान कलां. इस गांव में आज भी लोगों को एक फ़ोन कॉल करने के लिए कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.
कई स्टडी ने टेक्नोलॉजी की वजह से योजनाओं से वंचित रहने की बात कही
ज़हीब दिल्ली में पत्रकार थें. फ़िलहाल ज़हीब समर फाउंडेशन के साथ जुड़कर बिहार की बस्तियों पर रिसर्च कर रहे हैं. पटना की बस्तियों पर किये रिसर्च को ज़हीब ने 'स्लम्स ऑफ पटना' के नाम से एक किताब में प्रकाशित किया. ज़हीब बताते हैं
मैं जब 2018-19 में अररिया के भरगावां गांव में था तब मुझे ईमेल करने के लिए रानीगंज जाना पड़ता था, जो वहां से 15 किलोमीटर की दूरी पर है. आज वहां के लोगों के पास एनालॉग फोन है ना कि स्मार्ट फोन. जिसकी वजह से उन्हें कई बार योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता. जब हमने किताब स्लम्स ऑफ़ पटना लिखने के लिए शोधकार्य शुरू किया तो हमने 1771 परिवारों से बात की. जिसमें से 86% परिवार योजनाओं के योग्य हैं फिर भी उसमें से 100% लोग किसी न किसी तरह योजनाओं से वंचित रह गए हैं.
बिहार में 85% से ज़्यादा जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में रहती है और जनगणना के अनुसार बिहार की ग्रामीण साक्षरता दर मात्र 43.9% है. यानी बिहार की एक बड़ी आबादी अशिक्षित है और ऐसे में सारी योजनाओं का डिजिटलाइजेशन करना किसी भी रूप से सही नहीं होगा. इसी वजह से बिहार के लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. और ना ही उन्हें योजनाओं की जानकारी होती है.