BSEB बारहवीं और दसवीं कक्षा की परीक्षा समाप्त हो चुकी है. वहीं CBSE दसवीं और बारहवीं बोर्ड की परीक्षाएं भी कुछ दिनों में समाप्त हो जाएगी. बोर्ड की परीक्षाएं समाप्त होने के बाद राज्य में नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. बिहार विद्यालय परीक्षा समिति द्वारा साल 2019 में 11वीं कक्षा में नामांकन कराने वाले छात्रों के लिए ऑनलाइन सुविधा प्रणाली (OFSS) पोर्टल की शुरुआत की गई है. इस पोर्टल पर आकर छात्र 12वीं के तीनों संकायों के लिए एक 'कॉमन एप्लीकेशन फॉर्म' (CAF) भर सकते हैं.
बोर्ड का कहना है कि इससे छात्रों को उनकी मेरिट के अनुसार बिना किसी भेदभाव के मनचाहे स्कूल में नामांकन मिल सकता है. पहले होने वाली नामांकन प्रक्रिया में छात्रों को अलग-अलग संस्थानों में जाकर आवेदन करना होता था जिसके कारण पैसे और समय दोनों की बर्बादी होती थी. हालांकि नई प्रक्रिया शुरू होने के बाद छात्रों को एक दूसरी तरह की समस्या उठानी पड़ रही है.
दरअसल, संस्थानवार और कोटिवार मेरिट लिस्ट जारी होने के बाद कंबाइंड मेरिट लिस्ट जारी की जाती है जिसके आधार पर छात्रों को स्कूल अलॉट किया जाता है. मेरिट के आधार पर जारी हुए कटऑफ लिस्ट के आधार पर छात्रों को स्कूल अलॉट किया जाता है. लेकिन कई बार छात्रों को उनके क्षेत्रीय स्कूल से काफी दूर के स्कूल में सीट अलॉट हो जाता है. ऐसे में छात्र मजबूरी में नामांकन नहीं ले पाते हैं.
दूर के स्कूलों में होता है सीट अलॉट
डेमोक्रेटिक चरखा से ऐसे कई छात्रों ने अपनी समस्या बताई है, जिन्हें दूर के स्कूल में सीट अलॉट होने के कारण काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा है. लखीसराय जिले के हलसी प्रखंड के कैंदी (kaindi) ग्राम पंचायत के छात्र राघव कुमार (बदला हुआ नाम) का गांव बघौर है. CBSC बोर्ड से 10वीं की परीक्षा देने के बाद राघव ने बिहार बोर्ड से बारहवीं करने का फैसला किया.
नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के बाद राघव ने OFSS पोर्टल पर जाकर पंजीकरण कराया. पंजीकरण के बाद फॉर्म भरने की प्रक्रिया शुरू होती है जिसमें छात्र को जिन स्कूलों में नामांकन करवाना होता है, उसे अपने प्रीफरेंस के अनुसार लिस्ट में डालना पड़ता है. कटऑफ लिस्ट जारी होने के बाद छात्रों को स्कूल अलॉट किया जाता है. नजदीकी स्कूल अलॉट नहीं होने के बाद भी छात्रों को नामांकन लेना पड़ता है क्योंकि स्लाइड अप की सुविधा नामांकन के बाद ही दी जाती है.
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए राघव बताते हैं “11वीं में नामांकन के समय हमें 10 से 20 स्कूल चुनने का ऑप्शन दिया जाता है. मेरे पंचायत में मात्र एक +2 स्कूल है ऐसे में बाकि स्कूल बाहरी क्षेत्रों के चुनने पड़ते हैं. अगर केवल लखीसराय जिले में पड़ने वाले स्कूल का चयन करें तो भी कई स्कूलों में आने-जाने में ढाई से तीन घंटे का समय लग जाता है. फिर भी मैंने अपने इलाके के कई स्कूलों का चयन किया था. मेरे पूरे चयन में एक स्कूल नूरसराय प्रखंड का +2 स्कूल का भी था. कटऑफ लिस्ट जारी होने के बाद मुझे नालंदा जिले का ही स्कूल अलॉट कर दिया गया. वहीं स्लाइड अप करने के बाद भी मुझे अपने इलाके का स्कूल अलॉट नहीं हुआ.”
राघव के तरह ही अथमलगोला की रहने वाली सपना कुमारी को भी लखीसराय जिले का स्कूल अलॉट हो गया. जबकि सपना का गांव अथमलगोला, पटना जिले में आता है. सपना ने भी स्कूल के चयन के समय लखीसराय जिले के स्कूल का चयन पांचवे-छठे विकल्प के तौर पर किया था लेकिन आखिर में उसे वही नामांकन लेना पड़ा.
यह समस्या केवल राघव और सपना की नहीं है. साल 2019 से शुरू हुई इस प्रक्रिया के कारण हर साल ना जाने कितने ही छात्र नजदीकी स्कूल में सीट अलॉट नहीं होने के कारण या तो पढ़ाई छोड़ देते हैं या फिर बड़ी मुश्किलों के साथ किसी तरह डिग्री ले पाते हैं.
यहां पढ़ाई के जगह ‘डिग्री’ शब्द का उपयोग इसलिए किया गया क्योंकि दूर दराज के स्कूल में नामांकन लेने वाले छात्र स्कूली शिक्षा से वंचित होते हैं. उन्हें केवल परीक्षा के समय स्कूल में उपस्थित होकर परीक्षा देना होता है. बाकि उपस्थिति (Attendance) को मैनेज करने का उपाय स्कूल में कर दिया जाता है.
हालांकि, बीते वर्ष ही बिहार विद्यालय परीक्षा समिति ने बोर्ड की परीक्षाओं में शामिल होने के लिए 75% उपस्थिति अनिवार्य कर दी है. इससे पहले केवल सेंटअप परीक्षा में शामिल होने वाले छात्र भी बोर्ड परीक्षा में शामिल हो सकते थे. समिति की यह अधिसूचना उन छात्रों के लिए परेशानी का विषय बन सकती है, जो अलॉट हुए दूर के स्कूल में नामांकन लेकर किसी तरह अपनी पढ़ाई जारी रख रहे थे.
स्नातक के छात्रों को भी समस्या
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति की तरह ही विश्वविद्यालयों ने भी ऑनलाइन कॉमन एप्लीकेशन फॉर्म भरने का नियम लागू कर दिया है. इसके तहत छात्र किसी एक विश्वविद्यालय का फॉर्म भरकर उसके अंतर्गत आने वाले कॉलेज को अपनी प्राथमिकता के आधार पर चयन करते हैं. कटऑफ लिस्ट जारो होने के बाद छात्रों को कॉलेज अलॉट किया जाता है. ऐसे में छोटे शहर, जहां मात्र एक या दो कॉलेज ही हैं वहां के स्थानीय छात्रों को नामांकन नहीं मिल पाता है. दरअसल, ऑनलाइन सिस्टम होने के कारण अन्य क्षेत्रों के छात्र भी संबंधित कॉलेज के लिए आवेदन करते है जिसके कारण स्थानीय छात्रों को दूर के कॉलेजों में सीट अलॉट हो जाता है.
कई बार घर से काफी दूर अलॉट हुए कॉलेज के कारण छात्र नामांकन नहीं ले पाते हैं. वहीं मनचाहे कॉलेज में स्पॉट एडमिशन के लालच में छात्र बिचौलियों के चंगुल में भी फंस जाते हैं. पटना के कमला नेहरु नगर के रहने वाले धनराज कुमार ने साल 2021 में इंटर की परीक्षा पास की थी. स्नातक में नामांकन के लिए उन्होंने ऑनलाइन फॉर्म भरा था. लेकिन घर से काफी दूर कॉलेज अलॉट होने के कारण धनराज ने नामांकन नहीं लिया.
धनराज बताते हैं “ऑनलाइन सिस्टम में 20 कॉलेज चुनना होता है. उसके बाद मेरिट के आधार पर कॉलेज मिलता है. मुझे बी.डी. कॉलेज मीठापुर में नामांकन लेना था लेकिन उसके बजाए बाढ़ के किसी कॉलेज में सीट अलॉट हो गया. मैंने दो बार स्लाइड अप भी किया लेकिन उसेक बाद भी मुझे मोकामा का कॉलेज मिला. रोजाना क्लास करने मोकामा आना-जाना संभव नहीं था इसलिए मैंने एडमिशन नहीं लिया.”
धनराज के अलावा रोहित, रौशनी और नविनकांत ने भी कॉलेज दूर अलॉट होने के कारण स्नातक में नामांकन नहीं लिया है.
अक्टूबर 2023 को बिहार में जारी हुए जातीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में स्कूली शिक्षा से आगे ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई करने वाले लोगों की संख्या मात्र 7% है. वहीं राज्य के लगभग 67.90% लोगों ने ही स्कूली शिक्षा प्राप्त की है जिसमें पहली से पांचवीं तक की शिक्षा प्राप्त करने वाले लोगों की संख्या 22.67% है. राज्य में कभी स्कूल ना जाने वाले लोगों की संख्या भी 33% है.
ऐसे में बिहार के सभी विश्वविद्यालयों में ऑनलाइन सिस्टम लागू किया जाना राज्य में उच्च शिक्षा की दर में गिरावट ला सकता है.
बस्ती के बच्चों की शिक्षा के लिए काम करने वाले प्रभाकर कुमार कहते हैं “बिहार में ऑनलाइन सिस्टम के तहत नामांकन प्रक्रिया शुरू किया जाना अभी उचित नहीं है. बस्ती के बच्चों के लिए शहर से दूर के कॉलेज में नामांकन लेना मुश्किल बहुत मुश्किल है और उनकी पढ़ाई छूट जाती है. सरकार को इस तरह के नियम लागू करने से पहले यह देखना चाहिए कि क्या हर क्षेत्र में कॉलेज और स्कूल की पर्याप्त संख्या मौजूद हैं. मेरे जानकारी में बस्ती के कई बच्चों को पाली और नौबतपुर के कॉलेज अलॉट हुए और उन्होंने नामांकन नहीं लिया. वहीं मनचाहे कॉलेज में नामांकन दिलाने के नाम पर छात्रों से पैसे ठगने का खेल भी चल रहा है.”
बीते साल 13 मार्च को लोकसभा में देश की लिटरेसी रेट पर पूछे गए सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने बिहार को सबसे कम लिटरेसी रेट वाला राज्य बताया है. उनके द्वारा दिए गये आंकड़ों के अनुसार बिहार में साक्षरता दर 61.8% है जो अन्य राज्यों के मुकाबले काफी कम है.
जहां राज्य की लिटरेसी दर पहले ही काफी कम है, वहां पांच से दस किलोमीटर के दायरे से बाहर के स्कूल और कॉलेज, छात्रों को आवंटित किया जाना उच्च शिक्षा के मार्ग में बाधा बन सकती है. शिक्षा विभाग को इस समस्या का समाधान समय रहते निकालना होगा.