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सत्ता में बने रहने और जनता का वोट पाने के लिए सरकार अक्सर ऐसे वादे करती है जिसे पूरा किया जाना संवैधानिक तौर पर उसके लिए संभव नहीं होता है. अगर संविधान से ऊपर जाकर सरकार अपने हित के लिए नियम कानून या अधिनियम का निर्माण कर भी दे तो जनता के पास उस पर प्रश्न उठाने या न्याय पालिका के समक्ष जाकर उसमें बदलाव करने की मांग करने का अधिकार शेष रहता है.
अक्टूबर 2023 में जारी हुए जातिगत सर्वेक्षण के बाद ही बिहार सरकार ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण में बदलाव की घोषणा की थी. नवंबर 2023 में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की गठबंधन वाली बिहार सरकार ने राज्य में आरक्षण का कोटा बढ़ाने के अपने वादे को पूरा किया.
बिहार सरकार ने नवंबर 2023 में अधिनियम जारी करते हुए दो विधेयक पारित किए- बिहार पदों और सेवाओं में रिक्तियों का आरक्षण संशोधन विधेयक और बिहार आरक्षण (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश) संशोधन विधेयक. इसके बाद सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का दायरा 50 फ़ीसदी से बढ़ाकर 65 फ़ीसदी करने के लिए गजट अधिसूचना जारी की गई.
लेकिन अधिसूचना जारी होने के बाद ही समाज के दूसरे समूह में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये. क्योंकि इस नियम के बाद राज्य में आरक्षण का दायरा बढ़कर 75 फ़ीसदी हो गया.
राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए 27 नवम्बर 2023 को पटना उच्च न्यायलय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गयी. जिस पर सुनवाई करते हुए इस वर्ष 20 जुलाई को पटना हाईकोर्ट ने 65 फ़ीसदी आरक्षण सीमा को रद्द कर दिया. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के तहत मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है.
राज्य में आरक्षण का नियम जब लागू किया गया था नीतीश कुमार उस समय राजद के साथ गठबंधन में थे लेकिन जब कोर्ट का इस पर आदेश आया नीतीश कुमार एकबार फिर बीजेपी के साथ गठबंधन में आ चुके थे.
जिसके कारण नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार की नियत पर सवाल उठाया. क्योंकि जातिगत सर्वे रिपोर्ट जारी होने के बाद नीतीश कुमार ने कहा था 'जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी.'
हालांकि बिहार सरकार ने पटना हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनती दी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया.
आरक्षण रोस्टर में बदलाव के साथ जारी हुआ रिजल्ट
बिहार आरक्षण संशोधन विधेयक बिल पास होने के बाद अत्यंत पिछड़े वर्ग (ईबीसी) के मौजूदा कोटा को 18 फ़ीसदी से बढ़ाकर 25 फ़ीसदी, पिछड़े वर्ग (बीसी) के लिए 12 फ़ीसदी से बढ़ाकर 18 फ़ीसदी, एससी के लिए 16 फ़ीसदी से बढ़ाकर 20 फ़ीसदी और एसटी के लिए 1 फ़ीसदी से बढ़ाकर 2 फ़ीसदी कर दिया गया था. वहीं बीसी महिलाओं के लिए मौजूद अतिरिक्त 3 फ़ीसदी कोटे को इसमें समाप्त कर दिया गया था.
इस बदलाव के बाद राज्य में सबसे बड़ी नियुक्ति बीपीएससी टीआरई-3 (शिक्षक नियुक्ति) के तौर पर निकाली गयी. फरवरी 2024 में 87 हज़ार से अधिक पदों पर नियुक्ति निकाला गया. लेकिन पेपर लीक और हाईकोर्ट द्वारा आरक्षण रद्द किये जाने के बाद परीक्षा का आयोजन जुलाई महीने में किया गया.
नए रोस्टर निर्धारण के बाद रिक्तियों की संख्या में कटौती की गई. पहले जहां पहली से पांचवीं कक्षा के लिए 28,026 पदों के लिए नियुक्तियां निकली थी वह घटकर 25,505 हो गई. वहीं कक्षा छठी से आठवीं की संख्या 19,645 पदों से घटकर 18,973 हो गई. ऐसे में जहां पहले 47,671 पदों के लिए नियुक्तियां होनी थी वह घटकर 44,478 रह गई.
विभाग द्वारा रोस्टर का निर्धारण नए सिरे से किए जाने के कारण रिजल्ट प्रकाशन में लंबा समय लिया गया. परीक्षा का आयोजन जुलाई महीने में किया गया था. लेकिन रिजल्ट चार महीने बाद 15 नवंबर को निकाला गया जिसमें 38,900 अभ्यर्थी सफ़ल हुए.
रोस्टर निर्धारण के कारण छात्रों को हुई समस्या पर सरकार और विभाग चुप्पी साधे हुए हैं. नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी होने से रिजल्ट प्रकाशन के बीच नौ महीने का लंबा समय अभ्यर्थियों के लिए मुश्किल भरा रहा. खासकर उन अभ्यर्थियों के लिए जिन्हें बेहतर रिजल्ट की उम्मीद थी.
आरा जिले की रहने वाली दिव्या सिंह बीपीएससी टीआरई-3 की परीक्षा में सम्मिलित हुई थी. परीक्षा आयोजन और रिजल्ट प्रकाशन में हुई देर के कारण दिव्या को स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से गुजरना पड़ा. रिजल्ट के इंतजार में दिव्या अन्य परीक्षाओं या अन्य करियर विकल्पों पर भी ध्यान नहीं लगा पा रही थी.
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए दिव्या अपनी परेशानी साझा करते हुए कहती हैं “बीपीएससी टीआरई-2 का रिजल्ट एग्जाम ख़त्म होने के एक हफ़्ते के भीतर आ गया था. इसलिए उम्मीद था कि टीआरई-3 में भी वहीं होगा. लेकिन पेपर लीक और रोस्टर में बदलाव के कारण लंबा समय चला गया. जिसके कारण मैं स्थानीय निजी स्कूल में ज्वाइन नहीं कर पाई. वहीं पूरा ध्यान बीपीएससी के नोटिफिकेशन पर लगा रहता था.”
बांका जिले रहने वाले अभिषेक कुमार पिछले तीन सालों से पटना के महेंद्रू इलाके में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है. रोस्टर बदलाव के कारण कटऑफ पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर अभिषेक कहते हैं “रोस्टर में बदलाव के बाद EWS और एससी की सीटें बढ़ गई. जबकि ओबीसी की सीटें कम हो गई. ऐसे में जो अभ्यर्थी यह सोच कर तैयारी कर रहा था कि 100 सीट है तो 70 से 75 कटऑफ जाएगा उसको नुकसान हो गया. क्योंकि सीटों की संख्या घटने से कटऑफ हाई हो गया.”
रोस्टर निर्धारण से हुई समस्या पर दिव्या कहती हैं “विभाग और अधिकारियों की लापरवाही के कारण छात्रों का कीमती समय बर्बाद होता है. छात्रों के जीवन में समय से ज्यादा कीमती कुछ नहीं है. विभाग के पास सिलेबस और पदों को लेकर क्लियरिटी होनी चाहिए. अगर रोस्टर में बदलाव करना था तो उन्हें पहले ही करना चाहिए था. बाद में सीट घटाने या सिलेबस में अचानक कुछ जोड़ देने से छात्रों के ऊपर दबाव बढ़ जाता है.”
छात्र बताते हैं कि जुलाई में दोबारा आयोजित हुई परीक्षा में पूछे गये प्रश्नों का सिलेबस मार्च में आयोजित हुई परीक्षा के सिलेबस से अलग था.
आधा दर्जन से अधिक नियुक्तियों में विलंब
आरक्षण सीमा में हुई बढ़ोतरी को पटना हाईकोर्ट द्वारा रद्द किए जाने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा उस पर रोक लगाने से इंकार करने के बाद कई नियुक्ति विज्ञापन जो आदेश जारी होने से पहले निकाले गए थे, उसमें बदलाव करना पड़ रहा है. जिसके कारण कई नियुक्तियां जैसे सहायक वास्तुविद, सहायक अभियंता, कृषि विभाग के विभिन्न पदों पर नियुक्तियां चार से छह महीने विलंब हो गई है.
इसके अलावा मेडिकल कॉलेज में 1339 पदों पर होने वाली असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति को रद्द कर दिया गया है. साथ ही छह से अधिक नियुक्ति परीक्षाओं की तारीखों में बदलाव किया गया है.
सितंबर 2023 में बीपीएससी ने कृषि विभाग, पीएचईडी विभाग, भवन विभाग, नगर विकास एवं आवस विभाग समेत कई विभागों से नियुक्तियों की संख्या मांगी थी. नवंबर 2023 में आरक्षण नीति में बदलाव किया गया. जिसके बाद इन विभागों ने 75 फीसदी आरक्षण के आधार पर आयोग को नियुक्तियां भेजी. आयोग ने उसी आधार पर परीक्षा समिति बनाई. जिलों में परीक्षा सेंटर का निर्धारण किया. लेकिन हाईकोर्ट ने रोक लगाते हुए, आरक्षण रोस्टर में बदलाव का निर्देश दिया. जिसके बाद आयोग ने नियुक्तियां विभाग को वापस भेज दी.
रोस्टर बदलाव होने के कारण छात्रों को हुई परेशानी को छात्र नेता दिलीप कुमार चुनावी दांव बताते हैं. उनका कहना है कि “बिहार में कोई भी वैकेंसी चुनाव को देखकर लाया जाता है. जब चुनाव का समय था तो दिखाया गया कि 88 हजार वैकेंसी है. जब चुनाव समाप्त हो गया तो रोस्टर के नाम पर सीट कम कर दिया गया. हमारा कहना है छात्रों के साथ ऐसा खेल ना खेला जाए."
छात्र नेता मांग करते हैं कि "कम सीटों पर ही वैकेंसी निकाली जाए लेकिन नियमित तौर पर निकले. अभी रोस्टर को लेकर जो खेल हुआ उससे सरकार की मंशा स्पष्ट रूप से दिख रही है कि चुनाव को ध्यान में रखकर वैकेंसी निकाला जा रहा है.”