लंबे समय से वेतनमान और सरकारी कर्मी का दर्जा दिए जाने को लेकर आंदोलन कर रही, आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं(anganwadi-workers) की आवाज दबाते हुए सरकार उन्हें चयनमुक्त कर डराने की कोशिश कर रही है. आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरकार की सभी बड़ी योजनाओं के संचालन किये जाने की सबसे बड़ी माध्यम है. इसके बावजूद पिछले कई सालों से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अपनी मांगों के लिए प्रदर्शन कर रही हैं.
राज्य में इस समय एक लाख 12 हजार 299 महिला कार्यकर्ता आंगनवाड़ी केन्द्रों से जुड़ी हैं. ये महिलाएं वेतनमान और पेंशन सुविधा जैसी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन कर रही हैं.
राजधानी पटना में 29 सितंबर को लगभग पांच हज़ार आंगनवाड़ी केंद्रों की 10 हज़ार सेविकाओं ने धरना प्रदर्शन किया था. आंगनवाड़ी सेविकाएं मानदेय की जगह वेतन और सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की मांग को लेकर विधानसभा का घेराव करने आयीं थी. हालांकि सरकार ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को पुलिस के बल प्रयोग से आंदोलन हटाया था. पुलिस के बल प्रयोग के कारण कई महिलाओं को चोटें भी आई थीं.
सितम्बर के आंदोलन या उसे पहले के आंदोलनों में भाग ले रही अलग-अलग जिलों की लगभग 18 हज़ार कार्यकर्ताओं को सरकारी काम में बाधा डालने के नाम पर चयनमुक्त कर दिया गया है. चयनमुक्त हुई कार्यकर्ताओं को वापस काम पर लिए जाने की मांग भी कर रहीं थी. आंदोलन को समाप्त करने के लिए मुख्यमंत्री ने मौखिक आश्वासन देते हुए कहा था कि चयनमुक्त हुई कार्यकर्ताओं को वापस काम पर तभी लिया जाएगा जब आप हड़ताल ख़त्म करेंगे. हालांकि आश्वासन के बाद भी सरकार की तरफ़ से वार्ता की कोई पहल नहीं की गयी है.
नियमित नियुक्ति और दोगुने वेतन का किया था वादा
सेविकाओं का कहना है कि तेजस्वी यादव ने कहा था कि हमारी सरकार बनेगी तो मानदेय डबल किया जाएगा लेकिन उनके साथ धोखा हुआ है. सेविकाओं का कहना है कि सरकार अभी उन्हें 5,950 रूपए देती हैं जिसमें परिवार चलाना संभव नहीं है.
साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान तेजस्वी यादव(tejashwi-yadav) ने रोजगार समेत कई वादे किये थे. उनके चुनावी वादों में एक वादा आंगनवाड़ी और जीविका कार्यकर्ताओं के लिए भी था. तेजस्वी यादव ने सारण में चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था “मेरी सरकार बनी तो आंगनवाड़ी और जीविका दीदियों का मानदेय दोगुना करते हुए उन्हें नियमित कर देंगे.”
हालांकि सरकार में आने के बाद तेजस्वी अपने वादे से मुकर गये. आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता प्रेमलता सिन्हा कहती हैं “सरकार ने हमें नियुक्ति के समय कहा था कि आपसे छह सेवा लिया जाएगा. लेकिन उसके बाद हमसे 24 घंटा काम लिया जाता हैं. उसके बाद हमें केंद्र और राज्य सरकार मिलकर 5,950 रुपया देती है जिसमें नीतीश सरकार मात्र 1,450 रुपया देती है.”
आंगनवाड़ी सेविकाओं की मांग है कि मानदेय हटाकर 25 हज़ार रुपए वेतन किया जाए. वहीं, आंगनवाड़ी सहायिका का मानदेय 2,700 रूपए से बढ़ाकर 18 हजार रुपए किया जाए.
18 हज़ार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को किया चयनमुक्त
चयनमुक्त हुई सेविकाओं ने पटना के इंदिरा भवन में इकठ्ठा होकर आईसीडीएस निदेशालय में आवेदन देकर वापस बहाल किए जाने की मांग किया हैं. कार्यकर्ताओं का कहना है कि अगर उनकी मांग पूरी नहीं हुई और चयनमुक्ति के आदेश को रद्द नहीं किया गया तो वो वापस बड़े हड़ताल पर जाएंगी.
बिहार राज्य आंगनवाड़ी सेविका सहायिका संघ (सीआईटीयू) के राज्य सचिव अंजनी कुमार कहते हैं “सरकार ने वार्ता सुनने और मांग पूरा किये जाने के नाम पर महिलाओं के साथ धोखा किया है. बिना किसी लिखित कारण बताओ नोटिस के लगभग 18 हज़ार कार्यकर्ताओं को आनन-फानन में नौकरी से हटा दिया गया. किसी भी बर्ख़ास्तगी से पहले तमाम कार्यकर्ताओं को व्यक्तिगत लिखित लेटर देकर जवाब मांगा जाना चाहिए था. अगर तीन स्पष्टीकरण के बाद विधि सम्मत संतोषजनक जवाब सेविकाओं द्वारा नहीं दिया जाता तभी उन पर किसी तरह की कार्रवाई की जानी चाहिए थी.”
भारतीय ट्रेड यूनियन संघ की बैठक में शामिल गया जिले की मधु कुमारी कहती हैं “सरकार ने 18 हज़ार आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को चयनमुक्त कर दिया है. वार्ता करने के लिए सरकार ने हमारे नेता सूर्यकांत पासवान से हड़ताल ख़त्म करने को कहा. हमने विश्वास करके हड़ताल समाप्त किया. आज 20 दिन से ज़्यादा हो चुका है लेकिन नीतीश जी की तरफ से ना तो वार्ता की पहल की गई और ना ही चयनमुक्त कार्यकर्ताओं को काम पर वापस लिया गया.”
संघ के कार्यकर्ताओं का कहना है कि संविधान में न्यूनतम मजदूरी की बात कही गयी है लेकिन बिहार सरकार इसे लागू करने में असक्षम है.
बिहार में न्यूनतम मज़दूरी की बात करें तो अकुशल कामगार को 388 रुपए, अर्धकुशल को 403 रूपए, कुशल कामगार के लिए 491 रूपए और अत्यधिक कुशल के लिए 600 रुपए की राशि तय की गई है.
एक लाख से ज़्यादा आंगनवाड़ी हो रही है प्रभावित
बिहार आईसीडीएस पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बिहार में कुल 1 लाख 17 हजार 820 आंगनवाड़ी केंद्र हैं. जिसमें से 1 लाख 14 हजार 988 आंगनवाड़ी ही मौजूदा समय में कार्यरत हैं. इनमें 7 हज़ार 115 मिनी आंगनवाड़ी केंद्र हैं. बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से 18 हज़ार अतिरिक्त आंगनवाड़ी केंद्र की मांग की है.
गांव और स्लम बस्तियों के बीच स्थापित होने वाले इन आंगनवाड़ी केन्द्रों से न्यूनतम आय वाले परिवार की एक करोड़ 84 लाख महिलायें एवं बच्चे जुड़े हुए हैं.
हालांकि पहले से व्याप्त खामियों और मौजूदा हड़ताल के कारण काफी संख्या में आंगनवाड़ी केंद्र महीने के 28 दिन नहीं खुलते हैं. पोषण ट्रैकर पर उपलब्ध आंकड़े बताते हैं, महीने में कम-से-कम 21 दिन तक खुलने वाले आंगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या मात्र 84 हज़ार 303 है. वहीं महीने में कम-से-कम 15 दिनों तक खुलने वाले आंगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या 1,03,439 है.
प्रत्येक आंगनवाड़ी केंद्र का दायित्व है कि वह अपने क्षेत्र के 6 वर्ष तक के बच्चों और गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं के पोषण का ध्यान रखें. बच्चों को स्कूल पूर्व मिलने वाली अनौपचारिक शिक्षा का भार भी इन्हीं के ऊपर है. साथ ही स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए चलाई जाने वाली टीकाकरण अभियान जैसे-पोलियों उन्मूलन, फाईलेरिया उन्मूलन में भी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताएं महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. इसके अलावा बूथ स्तरीय पदाधिकारी (बीएलओ) और जनगणना जैसे कई काम आंगनवाड़ी महिलाओं से करवाए जाते हैं.