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"सरकार ने कहा था हर घर में नल से जल आएगा, मगर यहां तो घर-घर में प्यास का आलम है. हम लोग तो काफ़ी खुश थे पर अचानक से हमारी खुशी को नज़र लग गई." ये शब्द शेरभुक्का गांव की एक बुज़ुर्ग महिला के हैं, जिनकी आंखों में पानी की कमी से ज़्यादा, सरकार के वादों की नाकामी का दर्द झलकता है.
बिहार सरकार की हर घर नल का जल योजना (NAL JAL YOJANA), जो कि 2015 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Bihar CM Nitish Kumar) के ‘सात निश्चय’ कार्यक्रम के तहत शुरू की गई थी. उसका उद्देश्य था कि बिहार के हर घर तक स्वच्छ और सुरक्षित पीने का पानी पहुंचे. कागज़ों पर यह योजना न केवल सफ़ल दिखती है, बल्कि सरकार के दावों में तो इसे ग्रामीण जीवन की बड़ी क्रांति बताया गया है.मगर ज़मीनी हकीकत इन दावों से बहुत अलग है.
सिंघाड़ा पंचायत का शेरभुक्का गांव: एक पीड़ादायक उदाहरण
मनेर (Manersharif) के सिंघाड़ा पंचायत के शेरभुक्का गांव के वार्ड नं 10 के लोग पिछले 10 दिनों से पीने के पानी के लिए दर-दर भटक रहे हैं. दर्जनों घरों में नल तो लगे हैं, पाइपलाइन भी है, लेकिन पानी नहीं आता. गर्मी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, चापाकल भी सूखने की कगार पर हैं, और जो बचे हैं उनकी स्थिति ख़राब है.
गांव के रहने वाले पिंटू बताते हैं कि, "पानी के लिए रोज़ 2-3 किलोमीटर चल कर दूसरे टोले जाना पड़ता है. छोटे बच्चों को भी साथ ले जाना पड़ता है क्योंकि घर में उन्हें अकेले नहीं छोड़ सकते. पहले पानी आता था पर बिजली का बिल बकाया होने से पानी का सप्लाई ही काट दिया गया है. क्या ये हमारी गलती है? ये कैसी योजना है जहां सुविधा नहीं, सिर्फ़ परेशानी मिलती है?"
बिजली कनेक्शन काटा गया, नल-जल ठप पड़ गया
28 मार्च, 2025 को बिजली विभाग ने बकाया राशि के चलते गांव की नल-जल योजना की सप्लाई लाइन का कनेक्शन काट दिया. तब से गांव के बोरिंग से पानी आना बंद हो गया है. नल-जल योजना के तहत जिस ऑपरेटर को इस व्यवस्था की देखरेख करनी चाहिए, उसका कोई अता-पता नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कई बार पंचायत प्रतिनिधियों से संपर्क करने की कोशिश की, मगर कोई ठोस समाधान नहीं मिला.
राकेश बताते हैं कि "28 मार्च से बिजली विभाग ने बकाया राशि के चलते पानी सप्लाई का कनेक्शन काट दिया जिसके बाद लोगों को पानी की समस्या होने लगी. शुरू में लगा कि जल्द समस्या का समाधान निकल जाएगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. पानी के लिए किसी भी लोग को तड़पाना किसी तरह भी स्वीकार नहीं है. हमने शिकायत भी की लेकिन उसका कोई फ़ल हमें नहीं मिला."
अधिकारियों की बेरुख़ी और व्यवस्था का ढहता ढांचा
पंचायती राज पदाधिकारी मीसा सागर ने बताया कि "अब तक कोई शिकायत नहीं आई है. पता कर बिजली की बकाया राशि को जमा कर बोरिंग चालू करा दी जाएगी ताकि ग्रामीणों को परेशानी न हो."
ये बयान बताता है कि गांवों की समस्याएं कितनी उपेक्षित हैं. जहां एक ओर लोग पानी के लिए तड़प रहे हैं, वहीं अधिकारी कागज़ी प्रक्रियाओं में उलझे हैं.
सरकार की ओर से दिए गए टोल-फ्री नंबर 18001231121 पर जब हमने खुद कॉल करने की कोशिश की, तो कॉल ही नहीं लगा. ऐसे में सरकार के वादों और योजनाओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठना लाज़मी है.
हर घर नल का जल : बजट तो करोड़ों का, मगर ज़मीन पर सूनापन
बिहार सरकार ने 2022-23 में इस योजना के लिए ₹1,110 करोड़ और 2024-25 में ₹1,295 करोड़ का बजट तय किया. 2020 में दावा किया गया था कि योजना का 60% काम पूरा हो चुका है. तो सवाल उठता है कि जब इतनी बड़ी राशि खर्च की गई, तो शेरभुक्का, बरमा, या बिहार के सैकड़ों अन्य गांवों में लोग आज भी पानी के लिए क्यों तरस रहे हैं?
बरमा गांव: एक और चुभता सच
गया (Gaya) जिले का ही एक और गांव बरमा भी इसी योजना की विफलता की कहानी कहता है. यहां नल लगे हैं, लेकिन उनमें सालों से पानी नहीं आया. लोग अब इस योजना का नाम सुनते ही हंसते हैं जो एक कड़वा व्यंग्य लिए.
पानी से बढ़ता संकट: सिर्फ प्यास नहीं, बीमारी भी
पेयजल संकट सिर्फ़ प्यास का मसला नहीं है. जब लोग मजबूरी में गंदा पानी पीने को मजबूर होते हैं, तब डायरिया, टायफाइड, हैजा जैसी बीमारियां फैलती हैं. कई बार तो बच्चों और बुज़ुर्गों की जान पर बन आती है. सरकार की यह योजना, जो कभी बदलाव की आशा थी, अब लोगों के बीच एक विफल मज़ाक बनकर रह गई है.
29 मार्च को ही चलाया गया अभियान
राज्य में 'हर घर नल जल' योजना के लिए लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) जीरो ऑफिस डे अभियान चला रहा है. इसके तहत 15 हजार 609 जलापूर्ति योजनाओं का निरीक्षण किया गया है. इस दौरान 15 हजार 286 योजनाएं क्रियाशील, 213 योजनाएं असंतोषजनक, 274 योजनाएं बंद पाई गईं.
बंद जलापूर्ति योजनाओं में से 128 योजनाओं को दोबारा चालू करवा लिया गया है. असंतोषजनक पाई गई और वर्तमान में बंद कुल 146 योजनाओं को 24 घंटे के अंदर में सुधारने के लिए मुख्यालय ने चेतावनी दी है.
समाधान की ओर क्या कोई उम्मीद है?
समस्या का समाधान हो सकता है, अगर प्रशासन संवेदनशील हो और ज़मीनी स्तर पर निगरानी को मज़बूत किया जाए. नल-जल योजना की निगरानी के लिए पंचायत स्तर पर समिति बनाई जानी चाहिए, जो नियमित रूप से पानी की आपूर्ति और मशीनों की स्थिति की जांच करे. साथ ही, बिजली बिल का भुगतान समय पर हो, इसके लिए पंचायत फंड से बजट निर्धारित होना चाहिए.
ग्रामीणों को भी जल संरचना की देखरेख में भागीदारी दी जानी चाहिए, ताकि वे भी अपनी योजना की ज़िम्मेदारी समझें.
हर घर नल का जल योजना अपने उद्देश्य में तभी सफ़ल हो सकती है जब इसे सिर्फ़ वोट बैंक का साधन नहीं, बल्कि लोगों की मूलभूत ज़रूरत के रूप में देखा जाए. शेरभुक्का और बरमा जैसे गांवों में पानी की समस्या केवल एक योजना की विफलता नहीं, बल्कि उस सोच की असफलता है जो मानती है कि काग़ज़ पर योजना बना देने से काम पूरा हो जाता है.
लोगों को अब योजनाओं के खोखले वादे नहीं, ठोस ज़मीनी परिणाम चाहिए. वरना हर साल गर्मी में, हर गांव से ऐसी ही एक नई पीड़ा की कहानी सामने आती रहेगी जहां पानी के लिए लोग सरकार को नहीं, आसमान को ताकते हैं.