राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा: गरिमापूर्ण जीवन के लिए मिलने वाला मुफ्त राशन गरीबों को कब मिलेगा?

भोजन के अधिकार के तहत 2013 में लागू राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम दुनिया का सबसे बेहतर खाद्य आधारित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम माना जाता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश की लगभग 80 करोड़ आबादी इस योजना का लाभ ले रही है.

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पल्लवी कुमारी
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राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा: गरिमापूर्ण जीवन के लिए मिलने वाला मुफ्त राशन गरीबों को कब मिलेगा

भोजन के अधिकार के तहत 2013 में लागू राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा (National Food Security) अधिनियम दुनिया का सबसे बेहतर खाद्य आधारित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम माना जाता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश की लगभग 80 करोड़ आबादी इस योजना का लाभ ले रही है. लेकिन क्या इन 80 करोड़ लोगों में देश के सभी वंचित परिवार शामिल हो पाए हैं?

2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की लगभग आधी आबादी गरीबी रेखा से नीचे हैं लेकिन इसके बावजूद आजतक सभी गरीबों को भोजन का अधिकार नहीं मिल सका है.

कोरोना काल के समय जब देश के छोटे किसान और मजदूर विषम परिस्थितियों से गुजर रहे थे, उनके परिवार भूख से जूझ रहे थे. उसी समय प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PM-GKAY) की शुरुआत की गयी थी. इस योजना के तहत पहले से पीडीएस के माध्यम से प्रदान किए जा रहे 5 किलो अनाज के अतिरिक्त प्रत्येक लाभार्थी को हर महीने पांच किलो (गेहूं या चावल) मुफ्त अनाज देने का निर्णय लिया गया था.

योजना की शुरुआत के समय कहा गया था इसे तीन महीने तक चलाया जाएगा. लेकिन कोरोना काल समाप्त होने के बाद भी योजना को साल-दर-साल बढ़ाया गया. वर्ष 2023 में योजना समाप्त होने वाली थी लेकिन छत्तीसगढ़ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने इसे अगले पांच वर्षों तक बढ़ाने का ऐलान किया है.

पांच किलो (गेहूं या चावल) मुफ्त अनाज

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा “मैंने निश्चय कर लिया है कि देश के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराने की योजना, भाजपा सरकार अगले पांच साल के लिए और बढ़ाएगी.” केंद्रीय मंत्री मंडल ने 29 नवंबर को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकवाई) को दिसंबर 2028 तक बढ़ाए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दिया था.

लेकिन योजना का लाभ उन वंचित लोगों को आज भी नहीं मिल सका है जिनका नाम या तो राशन कार्ड जुड़ा ही नहीं या फिर किसी कारण से उनका नाम राशन कार्ड से काट दिया गया है. 

कोरोना के दौरान 23 लाख राशन कार्ड बनाए जाने का दावा

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पोर्टल पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार देश के 37 राज्यों के 744 जिलों में 79.35 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा का लाभ दिया जा रहा है. वहीं बिहार में पीडीएस के तहत राशन कार्ड की संख्या 1,79,07,319 है जिसके द्वारा कुल 87,172, 572 लोगों को राशन दिया जा रहा है. इसमें शहरी लाभार्थियों की संख्या 14,86,687 और ग्रामीण लाभार्थियों की संख्या 1,64,13,824 है.

वहीं पटना के शहरी क्षेत्र में दो लाख 14 हजार राशन कार्ड धारी हैं जबकि ग्रामीण क्षेत्र में सात लाख 39 हजार लाभुक है. लॉकडाउन के दौरान बिहार सरकार ने 23.5 लाख नए राशन कार्ड बनवाने का दावा भी किया था.

कोरोना के समय भी नहीं जुड़ सका था नाम

लेकिन इन दावों के बीच अबतक हजारों परिवार राशन कार्ड (ration card) के लाभ से वंचित हैं.आर ब्लाक की रहने वाली सुहाना परवीन का राशन कार्ड आजतक नहीं बन सका है. सुहाना का तलाक छह साल पहले हो चुका है जिसकी वजह से वह अपने सात साल के बेटे के साथ मां के घर में रहती हैं.

सुहाना परवीन की माँ

सुहाना परवीन बताती है “मेरे पास राशन कार्ड नहीं है. मैने एक साल पहले फॉर्म भरा था लेकिन अभी तक राशन कार्ड(ration-card) बन कर नहीं आया है. जब मैने फॉर्म भरा तो कहा गया था की 3 महीने में राशन कार्ड बनकर आ जाएगा लेकिन एक साल बीत गए अभी तक कुछ पता नहीं चला. वार्ड पार्षद से पूछने पर कहा जाता है अभी तक हमारे पास किसी का राशन कार्ड बनकर नहीं आया है जब आएगा तब आपको मिल जाएगा.”

कोरोना और लॉकडाउन के दौरान हुई परेशानियों को याद करते हुए सुहाना बताती हैं, कैसे बार-बार कहने पर भी उन्हें डीलर ने ना तो राशन दिया और ना ही उनका नाम राशन कार्ड में जोड़ा.

सुहाना कहती हैं “हमारा परिवार बड़ा है. मां और भाईयों के अलावा हम दोनों बहने भी अपने मायके में ही रहती हैं. शादी के बाद मेरा नाम मेरी मां के राशन कार्ड से काट दिया गया. लेकिन उस दौरान कभी कोई परेशानी नहीं हुई थी तो मैंने नाम जुड़वाने का कोई प्रयास नहीं किया. लेकिन लॉकडाउन में मेरे घर की स्थिति बहुत ही खराब हो गए थी. मैंने डीलर से नाम जोड़ने को कहा लेकिन डीलर ने कहा तुम अपना राशन कार्ड अलग जाकर बनवाओ तभी राशन मिलेगा.” 

आर्थिक परेशानियों के कारण सुहाना प्रतिदिन सोचने को मजबूर हैं कि “आज तो खा लिया लेकिन कल क्या खायेंगे? सुहाना की तरह ही तबस्सुम परवीन और मोहम्मद आफ़ताब का राशन कार्ड नहीं बन सका है. गया की रहने वाली तबस्सुम परवीन शादी के बाद आर ब्लाक की बस्तियों में रहने पटना आ गई. इनके पास भी राशन कार्ड नहीं है.

राशन कार्ड

तबस्सुम ने डेढ़ साल पहले राशन कार्ड का फॉर्म भरा था जिसमें उनसे पूरे परिवार की तस्वीर और आधार कार्ड मांगा गया था. सब जमा करने के बाद भी इनका राशन कार्ड अभी तक बनकर नही आया. आर ब्लॉक में रहने वाले मोहम्मद आफताब का नाम दो साल पहले राशन कार्ड से काट दिया गया. जिसके बाद उन्होंने दुबारा राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन भरा लेकिन डेढ़ साल बीतने के बाद भी आजतक राशन कार्ड बनकर नहीं आया.

आफताब बताते है “लॉकडाउन से पहले मुझे मेरी मां के राशन कार्ड पर राशन मिलता था लेकिन 2 साल पहले उसमे से मेरा नाम हटा दिया गया पूछने पर कहा गया आपका आधार कार्ड राशन कार्ड से लिंक नही है इस वजह से  नाम हटा दिया गया है. मैंने नया आवेदन भी किया लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ है.”

राशन कार्ड नहीं बनाए जाने के कारणों के बारे में जानने के लिए हमने वार्ड 21 की वार्ड पार्षद स्वेता रंजन से संपर्क किया. राशन कार्ड बनाए जाने की धीमी प्रक्रिया पर बात करते हुए स्वेता रंजन के प्रतिनिधि बताते हैं "राशन कार्ड बनाये जाने की प्रक्रिया लम्बी होती है. वार्ड से फॉर्म भरकर ब्लॉक में भेजा जाता है. ब्लॉक से वेरीफाई होकर आवेदन वापस निगम में आता है जिसके बाद इसे वापस ब्लॉक में भेजा जाता है. ब्लॉक से वापस आवेदन अनुमंडल में भेजा जाता है. जिसके बाद कार्ड ऑनलाइन होने के लिए हैदराबाद भेजा जाता है. यह प्रक्रिया पूरी होने में लगभग आठ से नौ महीने का समय लग जाता है. हमने पिछले साल मार्च महीने में लगभग 400 लोगों के  राशन कार्ड का फॉर्म ब्लॉक में भेजा था जो अबतक बनकर नहीं आया है. बीडीओ सर से हमारी बात हुई है उन्होंने फरवरी-मार्च तक कार्ड बनकर आने की बात कही है.”

हमने आगे की जानकारी के लिए पटना सदर के बीडीओ ऑफिसर से बात की. उनका कहना है कि उन्होंने अपने स्तर से सभी आवेदन भेज दिए है. वहीं rtps नंबर बताने पर वह और सही जानकारी दे सकते हैं. 

पांच किलों अनाज भी नहीं मिलता है

पीएम गरीब अन्न योजना के तहत जिन लोगों के पास राशन कार्ड है उन्हें हर महीने 5 किलो गेहूं या चावल मुफ्त में दिया जाना है. साथ ही प्रति व्यक्ति एक किलोग्राम दाल और परिवार पर एक किलों चना भी दिया जाना है. इसका मतलब हुआ़, अगर किसी परिवार में 4 सदस्य हैं तो उसे 20 किलो चावल अथवा गेहूं दिया जाएगा, इसके साथ ही 4 किलो दाल भी हर महीने मुफ्त दिया जाएगा. उन्हें हर महीने ये मुफ्त अनाज उनके मौजूदा अनाज के कोटे से अलग मिलेगा. परिवार अभी भी 20 किलो चावल या गेहूं और एक किलो दाल पैसे देकर खरीद सकता हैं. 

लेकिन योजना का लाभ उठा रहे लोगों की शिकायत है कि इसमें भी कटौती की जाती है. आदमी पर एक किलों अनाज काट लिया जाता है. वहीं मोटे अनाज के तौर पर दिया जाने वाला चना और दाल तो कभी दिया ही नहीं जाता है.

अनाज कम दिए जाने और दाल नहीं मिलने के कारणों पर बात करते हुए स्वेता रंजन कहती हैं "अनाज कम मिलने की शिकायत तो मेरे पास अभी तक नहीं आई है. रही दाल नहीं मिलने की बात तो हर राज्य की अलग-अलग पॉलिसी होती है. बिहार में प्रति व्यक्ति एक यूनिट में 4 किलो चावल और 1 किलो गेहूं दिया जाता है."

डिस्ट्रीब्यूशन की रिपोर्ट के अनुसार बिहार को अन्त्योदय अन्न योजना (AAY) के तहत दिसम्बर माह में 70.028 हजार टन तथा पीएचएच (PHH) के तहत 298.445 हजार टन चावल आवंटित किया गया था. इस तरह दोनों योजना मिलाकर कुल 368.473 हजार टन चावल का आवंटन हुआ था जिसमें 307.190 हजार टन चावल का उठाव किया जा सका था. वहीं दोनों योजनाओं के तहत दिसम्बर माह में 92.118 टन गेहूं का आवंटन किया गया था जिसमें 78.049 हजार टन गेहूं का ही उठाव हो सका था. 

अनाज का आवंटन लाभुकों की संख्या के हिसाब से किया जाता है, लेकिन जब आवंटन के मुकाबले अनाज का उठाव ही कम किया जा रहा है तो जाहिर है कि लाभुकों को कम अनाज दिया जाएगा.

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