जातिगत जनगणना में ट्रांसजेंडर सिर्फ 825, कैसे बनेगी सरकारी योजनायें?

बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए गये हैं. लेकिन आंकड़े जारी होने के साथ ही इस पर विवाद शुरू हो गया है. जातिगत जनगणना में ट्रांसजेंडर की संख्या सिर्फ 825 बताई गयी है.

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पल्लवी कुमारी
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जातिगत जनगणना में ट्रांसजेंडर सिर्फ 825, कैसे बनेगी सरकारी योजनायें?

जातिगत जनगणना में ट्रांसजेंडर सिर्फ 825, कैसे बनेगी सरकारी योजनायें?

बिहार में जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी कर दिए गये हैं. लेकिन आंकड़े जारी होने के साथ ही इस पर विवाद होना शुरू हो गया है. विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि सरकार किसी खास जाति की संख्या ज्यादा दिखाकर अपना हित साधने के चक्कर में है. रिपोर्ट तैयार करने में जानबूझकर जातिगत समीकरण को बदला गया है.

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सोमवार 2 अक्टूबर को जारी हुए इस जातिगत रिपोर्ट के अनुसार राज्य में पिछड़ी जातियों की संख्या सबसे ज्यादा यानि 84% है. वहीं सवर्ण जातियों की संख्या 15% के करीब है. जातिगत जनगणना में ट्रांसजेंडर समुदाय को जाति के आधार पर गिना गया है. ट्रांसजेंडर समुदाय गणना के शुरुआत से ही इसके विरोध में थी. ट्रांसजेंडर समुदाय का कहना है कि ट्रांसजेंडर कोई जाति नहीं बल्कि एक पहचान है. हालांकि विरोध के बाद सरकार ने उन्हें अपनी जाति चुनने का अधिकार दिया था.

डेमोक्रेटिक चरखा ने अप्रैल में इस पर एक डिटेल रिपोर्ट भी बनाई थी.

राज्य में ट्रांसजेंडर की संख्या मात्र 825

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हालांकि अब जब रिपोर्ट जारी की गयी है तो उसमें ट्रांसजेंडर समुदाय की आबादी मात्र 825 दर्शायी गयी है. रिपोर्ट जारी होने के बाद ही ट्रांसजेंडर समुदाय इसका विरोध कर रहे हैं.

बिहार में ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों के लिए काम करने वाली रेशमा प्रसाद डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए कहतीं हैं “साल 2011 में देशभर में हुई जनगणना में हमारी आबादी राज्य में 40 हज़ार के करीब थी. अब सरकार हमारी संख्या 825 बता रही है. मुझे आश्चर्य है कि सरकार ने इस रिपोर्ट को अंतिम रूप कैसे दिया है.”

रेशमा आगे कहती हैं “अब तक जो आंकड़े सामने आये हैं मैं उससे सहमत नहीं हूं. मैं अभी और आंकड़े जारी होने का इंतज़ार करूंगी. अगर सरकार हमारी संख्या 825 बताती है तो यह ट्रांसजेंडर समुदाय के साथ अन्याय है. जितनी संख्या बताई गई है उतना तो आपको पटना जिले के आसपास नगरीय क्षेत्रों में मिल जाएगा. ग्रामीण क्षेत्रों को तो छोड़ दें.”

ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों के लिए रोजगार के मुद्दे पर बात करते हुए रेशमा कहती हैं “केवल पटना जिले में ही ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के 3 हज़ार के करीब लोग हैं. जिसमें 800 से ज़्यादा सेक्स वर्कर हैं जो रात में सड़कों पर घूमते हैं. टोल प्लाजा, सिटी सेंटर, गांधी मैदान, दानापुर, ट्रांसपोर्ट नगर जैसी जगहों पर ट्रांसजेंडर समुदाय के लोग जीविका के लिए दर-बदर भटकते हैं. ट्रेन में भीख मांगते हैं, बधाइयां मांगते हैं. अगर सरकार इनके संघर्ष को समझती या करीब से देखती तो ऐसा नहीं करती. खुद को न्यायवादी मानने वाली सरकार समाजवाद और लैंगिकता के स्तर पर न्याय की बात नहीं कर सकती हैं.”

ट्रांसजेंडर समुदाय लंबे समय से शिक्षा और रोजगार में अपने लिए आरक्षण की मांग कर रहा है. इसे पहले बिहार पुलिस में ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आरक्षण की मांग करते हुए वीरा यादव ने जनहित याचिका दायर किया था. जिसके बाद चीफ जस्टिस संजय करोल तथा जस्टिस एस कुमार की खंडपीठ ने इसपर अपना फैसला दिया था.

साल 2020 से ट्रांसजेंडर समुदाय को बिहार पुलिस में आरक्षण देने की शुरुआत हुई थी. हाई कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने हलफनामा दायर कर कोर्ट को बताया कि “राज्य की कुल आबादी में ट्रांसजेंडर की संख्या 0.039% है. उसी जनसंख्या के आधार पर राज्य सरकार ने कोटा निर्धारित किया है. यानी हर जिले में जब पुलिस बलों की नियुक्ति होगी तो उसमें एक ऑफिसर पद और 4 कांस्टेबल पद पर ट्रांसजेंडर की नियुक्ति होगी. इनकी आबादी अगर अधिक हुई तो स्क्वायड एवं प्लाटून के रूप में भी गठित किया जाएगा."

ट्रांसजेंडर समुदाय को जाति की कैटेगरी में डालना गलत : रेशमा प्रसाद

जातिगत जनगणना की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए रेशमा कहतीं हैं “मैं पिछले 17 साल से पटना में रह रही हूं. ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए आवाज उठाते हुए मेरे बाल सफेद हो गये है. जब मेरे पास ही गणना के लिए लोग नहीं पहुंचे तो अन्य लोगों के पास क्या गये होंगे. और यह 825 का आंकड़ा भी ना जाने किन लोगों ने, कैसे तैयार किया है?

जातिगत जनगणना को झूठा करार देते हुए रेशमा कहतीं हैं “ट्रांसजेंडर समुदाय (Transgender Community) के लिए सही डेटा जरूरी है. क्योंकि बार-बार हमसे ही पूछा जाता है कि आपकी संख्या कितनी है जो आपके लिए योजनाएं बनाई जाएं. हमने इस बात को सुप्रीम कोर्ट में भी उठाया है कि किस तरह से हमारी आइडेंटिटी (पहचान) को सही तरीके से नहीं देखा जाता है.”

जातिगत जनगणना के दूसरे चरण में रेशमा प्रसाद ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर कर ट्रांसजेंडर को जातियों के जगह उपयोग किए जाने पर आपत्ति उठाई है. रेशमा प्रसाद ने आपत्ति उठाते हुए कहा कि ब्राह्मण, भूमिहार, यादव जैसी जातियों की तरह ट्रांसजेंडर को कोड में बांटना समुदाय के संवैधानिक अधिकारों का हनन है.

संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 19 (1) (ए) और 21 के साथ-साथ राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ और अन्य (2014) 5 एससीसी 438 में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के तहत यह असंवैधानिक है. अनुच्छेद 14 से 16 ‘समानता के अधिकार’ से संबंधित हैं, अनुच्छेद 19 (1) (ए) ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के बारे में बात करता है और अनुच्छेद 21 ‘जीवन के अधिकार’ के बारे में है. राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बनाम भारत संघ 2014 के एतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर समुदाय को अपना जेंडर चुनने का अधिकार दिया था.

हालांकि इस विवाद के बाद बिहार सरकार ने एक आदेश जारी कर गणना में लगे अधिकारियों को निर्देश दिया कि वो राज्य में चल रही जातिगत जनगणना में ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों को अपनी जाति चुनने का अधिकार दें.

सरकार के इस निर्देश के बाद भी ट्रांसजेंडर समुदाय की संख्या कम आने पर डेमोक्रेटिक चरखा की पत्रकार  अनुप्रिया सिंह सवाल उठाती हैं. अनुप्रिया हिंदी मीडिया की पहली ट्रांसजेंडर रिपोर्टर हैं और बिहार में ट्रांसजेंडर के अधिकार के लिए काम करती हैं.

अनुप्रिया कहती हैं “साल 2011 की जनगणना में हमारी आबादी 40 हज़ार थी जो आज घटकर 800 के करीब हो गयी है. जबकि 1000 से ज़्यादा लोगों का वोटर आईडी पटना में ही बनाया गया था. मैंने खुद 150 लोगों का पहचान पत्र बनवाया था. अगर ये आंकड़े सही हैं तो क्या 2011 के आंकड़े गलत थे.”

राज्य में ट्रांसजेंडर समुदाय अलग से आरक्षण की मांग कर रहा है जिसके लिए हाईकोर्ट में याचिका भी दायर की गयी है. समुदाय की संख्या कम दर्शाने का असर भविष्य में आरक्षण की मांग को प्रभावित कर सकता है.

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