सोना सोबरन साड़ी धोती योजना: कपड़े की गुणवत्ता औसत, फिर भी साल में दो बार नहीं मिल रहा लोगों को लाभ

रिपोर्ट के अनुसार 11 दिसम्बर तक राज्य के मात्र 6.22 फीसदी बीपीएल परिवारों को ही साड़ी- धोती या लूंगी मिली थी. लगभग 94 फीसदी परिवारों को अब भी पहली किस्त का लाभ मिलना शेष है.

New Update
1

हेमंत सोरेन सरकार की महत्वाकांक्षी ‘सोना सोबरन साड़ी धोती’ योजना अपने शुरुआत के तीसरे वर्ष में ही चरमराने लगी है. योजना का लक्ष्य था की गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) रहने वाले परिवार के लोगों को साल में दो बार अनुदानित दर पर वस्त्र उपलब्ध कराया जाएगा. बीपीएल वर्ग से आने वाले लोग जिनके लिए दो वक्त के भोजन की व्यवस्था करना सहज नहीं है, उस परिवार से आने वाले व्यक्ति खासकर ‘बुजुर्ग और व्यस्क’ अपने लिए सालों तक नए कपड़े नहीं खरीद पाते है. ऐसे में हेमंत सरकार की यह योजना आदिवासी बहुल झारखंड राज्य के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं.

लेकिन वित्तीय वर्ष 2024-25 में अबतक सभी लाभुकों को पहली क़िस्त के तहत मिलने वाले कपड़े ही अबतक नहीं मिले हैं. जबकि वित्तीय वर्ष 2024-25 ख़त्म होने में अब मात्र चार महीने शेष हैं. दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट के अनुसार 11 दिसम्बर तक राज्य के मात्र 6.22 फीसदी बीपीएल परिवारों को ही साड़ी-धोती या लूंगी मिली थी. लगभग 94 फीसदी परिवारों को अब भी पहली किस्त का लाभ मिलना शेष है. 

पहले किस्त की आपूर्ति 120 दिनों यानि चार महीने में पूरा किया जाना था. लेकिन विधानसभा चुनाव के कारण टेंडर प्रक्रिया फाइनल होने के बाद भी आपूर्ति का कार्य अगस्त महीने में शुरू किया गया. इस अनुसार भी जिलों में आपूर्ति का काम नवंबर में पूर्ण कर लिया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

वहीं दूसरी किस्त बांटे जाने के लिए भी अभी केवल टेंडर की प्रक्रिया शुरू की गई है. टेंडर प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही दूसरी किस्त के कपड़ो की सप्लाई की जाएगी. इसके बाद जिलों में आपूर्ति किए गए कपड़ों के गुणवत्ता की जांच होगी और उसके  बाद ही वितरण का काम शुरू किया जाएगा. ऐसे में यह संशय ही है कि वितीय वर्ष 2024-25 समाप्त होने से पूर्व सभी जिलों में आपूर्ति और वितरण का कार्य पूरा किया जा सकेगा.

केवल 12 जिलों में 100 फीसदी वितरण

झारखंड राज्य में कुल 24 जिले आते हैं. इन 24 जिलों में हरा, गुलाबी और पीला राशन कार्डधारियों की संख्या 67.61 लाख हैं. दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 24 में से 12 जिले- स. खरसावां, दुमका, लोहरदगा, साहिबगंज, बोकारो,  गोड्डा, देवघर, चतरा, पाकुड़, जामताड़ा, कोडरमा और रामगढ़ में सप्लायरों ने 100 फीसदी आपूर्ति की है. लेकिन इसके वाबजूद वितरण के कार्य में तेजी नहीं लाई जा सकी है. रामगढ़ (72.33 फीसदी), कोडरमा (62.32 फीसदी) और जामताड़ा (17.84 फीसदी) जिलें को छोड़कर अन्य जिलों (100 फीसदी आपूर्ति वाले) में वितरण का आंकड़ा 20 फीसदी भी नहीं पहुंच सका है.

वहीं शेष 12 जिलों में से धनबाद (51 फीसदी) को छोड़कर अन्य जिलों में 20 फीसदी आपूर्ति भी नहीं हुई है. 

सौ फीसदी  आपूर्ति वाले 12 जिलों में से नौ जिलों में कपड़ों के नमूनों की जांच हो गई है. जबकि तीन जिले दुमका, धनबाद और गोड्डा के मात्र दो-दो प्रखंडों में ही कपड़ों के गुणवत्ता की जांच हो सकी है. दुमका में 12 और धनबाद व गोड्डा में 10-10 प्रखंड आते हैं. ऐसे में इन प्रखंडों में रहने वाले लोगों को आपूर्ति के बाद भी, जांच के अभाव में कपड़ों के वितरण शुरू होने का इंतजार करना होगा. 

धनबाद में जहां 51 फीसदी आपूर्ति की गई है, लेकिन वितरण मात्र 0.17 फीसदी ही हुआ है. पलामू और रांची जिलें में 36 फीसदी कपड़ों की आपूर्ति की गयी है. लेकिन वितरण क्रमशः 0.05 और 0.19 फीसदी ही हुआ है.

आपूर्ति के अनुसार वितरण नहीं किए जाने पर धनबाद जिले के डीएसओ प्रदीप शुक्ला का कहना है कि “जिले को जितने कपड़े की जरूरत है, उसका 50 फीसदी ही लूंगी, साड़ी और धोती प्राप्त हुआ हैं. इसलिए इसी अनुसार वितरण किया जा रहा है."

publive-image

दहाई के अंकों में आपूर्ति वाले जिलों में गढ़वा, पूर्वी सिंहभूम और गुमला आते हैं.गढ़वा में जहां 19 फीसदी आपूर्ति हुई है वहीँ वितरण केवल 0.21 फीसदी ही हुआ है. पूर्वी सिंहभूम में आपूर्ति 13 फीसदी तो वितरण मात्र 0.04 फ़ीसदी हुआ है. वहीं गुमला में 12 फीसदी आपूर्ति की गयी है लेकिन वितरण का कार्य शुरू ही नहीं हुआ है.

गिरिडीह, सिमडेगा, पश्चिमी सिंहभूम और खूंटी में कपड़ों की आपूर्ति तीन फीसदी ही हुई है. जबकि हजारीबाग में पांच फीसदी और लातेहार में नौ फीसदी आपूर्ति की गई है.

आपूर्ति और वितरण में हो रही देर पर राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री डॉ इरफ़ान अंसारी का कहना है कि “जिन जिलों में शत प्रतिशत आपूर्ति हो चुकी हैं उन जिलों के डीएसओ को जल्द वितरण पूरा करने का निर्देश दिया गया है. जिन जिलों में आपूर्ति नहीं हुई है वहां जल्द आपूर्ति करने को कहा गया है.”

खाद्य मंत्री का कहना है कि वे स्वयं इस मामले की समीक्षा कर रहे हैं.

क्या कहते हैं लाभुक

साल 2014 में मुख्यमंत्री बनने पर हेमंत सोरेन ने अपने दादा सोना सोबरन के नाम पर साड़ी धोती योजना की शुरुआत की थी. लेकिन 2015 में रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने इसे बंद कर दिया था. इसके बाद साल 2021 में दोबारा सोरेन सरकार की वापसी के बाद इसे शुरू किया गया. इसके तहत राज्य के गरीब परिवारों को 10 रुपए में धोती- साड़ी या लूंगी उपलब्ध कराई जाती है.

लेकिन योजना से होने वाले लाभ को लेकर लाभुकों की मिली जुली प्रतिक्रिया है. कोई इसे उपयोगी बताते हैं तो किसी के लिए यह बेकार योजना है. योजना की आलोचना करने वाले उपभोक्ताओं का कहना है कि कपड़े की गुणवत्ता अच्छी नहीं रहती है.

रांची जिले की रहने वाली अर्पणा बारा के पास हरा राशन कार्ड हैं. पांच सदस्यों वाले परिवार में रहने वाली अर्पणा साड़ी-धोती योजना को बेकार बताती है. उनका कहना है योजना के तहत मिलने वाले कपड़े अच्छे क्वालिटी के नहीं रहते हैं.

अर्पणा बताती हैं “इस साल अभी तक केवल एक ही बार कपड़े मिले हैं. कपड़े की क्वालिटी अच्छी नहीं होती है कि उसे पहना जा सके. लेकिन ले लेती हूं क्योंकि इतने कम दर पर घर के काम में उपयोग होने वाला कपड़ा भी नहीं मिलता हैं.” 

अर्पणा का कहना है कि अच्छा रहता की सरकार इसकी जगह पांच किलों राशन बढ़ा देती. अर्पणा योजना के तहत पुरुषों के लिए केवल धोती दिए जाने की भी शिकायत करती हैं. वे कहती हैं “ग्रामीण क्षेत्रों में बुजुर्ग धोती पहन भी लेते हैं लेकिन शहरी क्षेत्र में रहने वाले पुरुष धोती नहीं पहनते हैं. लेकिन पुरुष के लिए केवल धोती मिलता है.”

हालांकि योजना के तहत पुरुषों के लिए धोती या लूंगी चुनने का विकल्प रहता है.

धनबाद जिले के बाघमारा प्रखंड के रहने वाले दिलीप सिंह भी कपड़े के गुणवत्ता की शिकायत करते हैं. वही उन्हें इसवर्ष अबतक एक जोड़ी कपड़े भी नहीं मिले हैं. बाघमारा प्रखंड की ही रहने वाली सुधा देवी शिकायत करती हैं कि “साड़ी बहुत पतला रहता है.” वहीं उनका कहना है कि योजना के तहत साल में केवल एक ही बार कपड़े मिलते हैं.

jharkhand