झारखंड मिल्क फेडरेशन की समितियों में दूध जमा करने वाले परेशान, सरकार नहीं दे रही प्रोत्साहन राशि

समिति में दूध देना घाटे का सौदा है. जो दूध बाजार में 55 से 60 रुपए लीटर बिक जाता है वो आपको समिति में 35 से 40 रुपए लीटर बिकता है. अगर दूध में फैट की मात्रा ज्यादा है तो कीमत ऊपर नीचे होता है वह भी ज्यादा नहीं.

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झारखंड के दुग्ध उत्पादक किसानों की परेशानी बढ़ गयी है. जहां कुछ महीने पहले सरकार दुग्ध उत्पादकों की आमदनी बढ़ाने का दिखा रही थी, आज उसपर ग्रहण लग गया है. हजारों किसान जो झारखंड मिल्क फेडरेशन से जुड़े सहकारी दुग्ध सेंटर पर अपना दूध बेच रहे हैं उनकों महीनों से प्रोत्साहन राशि नहीं मिली है.

झारखंड सरकार राज्य में दूध उत्पादन को बढ़ावा देने और पशुपालकों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार की तरफ से किसानों को प्रति लीटर दूध पर तीन रूपए प्रोत्साहन राशि देती है. यह राशि सरकार राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) को उपलब्ध कराती थी. जिसके बाद एनडीडीबी प्रोत्साहन राशि दुग्ध उत्पादकों के खातें में डीबीटी (Direct Beneficiary Transfer) के माध्यम से भेजती थी.

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लेकिन 31 मार्च को झारखंड सरकार और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के बीच कॉन्ट्रैक्ट समाप्त हो गया. जिसके कारण पशुपालकों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है. सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट रिन्यूअल के लिए प्रस्ताव भेजा है लेकिन अबतक इसे कैबिनेट से मंजूरी नहीं मिल सकी है.

दूध उत्पादक परेशान

साल 2021 में झारखंड सरकार ने राज्य के दुग्ध उत्पादकों को झारखंड मिल्क फेडरेशन से जोड़ने और लागत राशि में सहयोग करने के उद्देश्य से प्रोत्साहन राशि दिए जाने की शुरुआत की थी. साल 2021-22 में उत्पादकों को प्रति लीटर एक रूपए की राशि दी जाती थी. जबकि 2022-23 में दो रुपए प्रति लीटर और 2023-24 में इसे बढ़ाकर तीन रुपए लीटर कर दिया गया.

राज्य के लगभग 68 हजार दुग्ध उत्पादक झारखंड मिल्क फेडरेशन से पंजीकृत हैं और उससे जुड़े सहकारी संस्थानों में दूध जमा करते हैं. झारखंड मिल्क फेडरेशन में रोजाना ढ़ाई लाख लीटर दूध जमा होता है जिसे संसथान ‘मेधा मिल्क’ के नाम से बाजार में बेचती है. तीन रुपए लीटर के हिसाब से एक दिन की बकाया राशि साढ़े सात लाख रुपए होती है. ऐसे में बीते पांच महीनों में संस्थान के ऊपर उत्पादकों के करोड़ो रुपए बकाया हो गए हैं.

वहीं प्रोत्साहन राशि का पैसा नहीं मिलने से दुग्ध उत्पादक परेशान हैं. कांके के रहने वाले दूध उत्पादक मुकेश कुमार के पास 10 गाएं हैं. जिससे उन्हें रोजाना 70 से 80 लीटर दूध का उत्पादन हो जाता है. मुकेश कुमार उत्पादन का आधा से ज्यादा हिस्सा होटल, चाय दूकान और निजी घरों में भी बेचते हैं. जबकि लगभग 20 से 30 लीटर दूध समिति में देते हैं.

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डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए मुकेश कुमार बताते हैं कैसे प्रोत्साहन राशि का पैसा नहीं मिलने से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है. मुकेश कहते हैं “मेरा लगभग 20 हजार रूपया बकाया हो गया है. लेकिन बस इस उम्मीद में दूध दे रहे हैं की आज नहीं तो कल पैसा मिल जाएगा.”

पैसे मिलने में होने वाली समस्या पर बात करते हुए मुकेश कहते हैं “समिति में दूध देना घाटे का सौदा है. जो दूध बाजार में 55 से 60 रुपए लीटर बिक जाता है वो आपको समिति में 35 से 40 रुपए लीटर बिकता है. अगर दूध में फैट की मात्रा ज्यादा है तो कीमत ऊपर नीचे होता है वह भी ज्यादा नहीं.”

मुकेश का कहना है की पशुपालक समिति को दूध नहीं देना चाहते हैं क्योंकि वहां बाजार रेट से उन्हें कम कीमत मिल पाता है. जिससे किसानों को मुनाफा तो दूर लागत भी नहीं निकल पाता है.

दूध उत्पादन के क्षेत्र से जुड़े सौमित्र अधिकारी बोकारो स्टील सिटी में अपना कारोबार चलाते हैं. यहां जेएमएफ से जुड़ी एक भी दूध संग्रह समिति नहीं है. झारखंड मिल्क फेडरेशन द्वारा मिलने वाली राशि से नाखुश सौमित्र कहते हैं, "कोई पशुपालक जेएमएफ को दूध नहीं देना चाहता है. क्योंकि रेट सही नहीं है. कोरोना से पहले यहां जेएमएफसे जुड़ी एक समिति थी. लेकिन उसको दूध कलेक्ट करके पेतरहाट भेजना पड़ता था जो यहां से लगभग 60-70 किलोमीटर दूर है. बाद में वह भी बंद हो गया."  

सौमित्र के अनुसार,  बीते कुछ साल में जेएमएफ का बाजार बहुत नीचे चला गया है. जेएमएफ ने अपनी समितियों के दूध कलेक्शन पर भी सीमा (limit) लगा दिया है. क्योंकि अधिक दूध कलेक्शन और प्रसंस्करण की क्षमता उसके पास नहीं है.    

दूध उत्पादन में वृद्धि

बेसिक एनिमल हसबेंडरी रिपोर्ट के अनुसार साल 2022-23 में देश में 230.58 मिलियन टन दूध का उत्पादन हुआ था. पिछले पांच वर्षों में दूध उत्पादन में 22.81 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है जो वर्ष 2018-19 में 187.75 मिलियन टन थी. वहीं वर्ष 2021-22 के अनुमान से वर्ष 2022-23 के दौरान उत्पादन 3.83 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

हालांकि इससे पहले के वित्तीय वर्षों में वृद्धि दर अधिक रही थी. वर्ष 2018-19 में वार्षिक वृद्धि दर 6.47 फीसदी, वर्ष 2019-20 में 5.69 फीसदी, वर्ष 2020-21 में 5.81 फीसदी और वर्ष 2021-22 में 5.77 फीसदी रही थी.

अगर राज्यों की बात की जाए तो कर्नाटक (8.76%), पश्चिम बंगाल (8.65%), उत्तरप्रदेश (6.99%), त्रिपुरा (6.07%), मध्यप्रदेश (5.88%), छत्तीसगढ़ (5.80%), झारखंड (5.50%) और महाराष्ट्र (5.15%) आठ ऐसे राज्य हैं जहां वार्षिक वृद्धि दर (वर्ष 2022-23) देश के औसत (3.83%) से अधिक रहा.

झारखंड देश के कुल दुग्ध उत्पादन में 1.20% का योगदान दे रहा है. लेकिन अगर सरकार पशुपालकों और दुग्ध उत्पादकों के लिए बनाई जा रही योजनाओं पर काम करें तो और बेहतर परिणाम आ सकते हैं. झारखंड राज्य सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ (JMF) का संचालन साल 2014 से एनडीडीबी कर रही है. जिसके बाद से राज्य में दूध उत्पादन में लगातार वृद्धि कर रहा है.

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दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार राज्य में वर्ष 2015-16 में 86.88 मीट्रिक टन दूध का उत्पादन होता था जो पांच वर्षों में बढ़कर 100 मीट्रिक टन से ज्यादा हो गया. साल 2019-20 में 100.86 मीट्रिक टन, 2020-21 में 105.53 मीट्रिक टन और 2021-22 में यह 116.21 मीट्रिक टन हो गया.

अभी राज्य में प्रति लीटर दूध पर तीन रूपए प्रोत्साहन राशि दी जा रही है. जबकि राजस्थान, बिहार, छत्तीसगढ़, केरल, तमिलनाडु जैसे राज्यों में सरकार पांच रुपए प्रोत्साहन राशि दे रही है. वहीं कुछ राज्यों में राशि बढ़ाये जाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है.

कैबिनेट मंजूरी का इंतजार

झारखंड सरकार में कृषि मंत्री का पद संभालने के बाद दीपिका पांडेय सिंह ने किसानों और पशुपालकों के लिए कईं योजनाओं की घोषणा की थी. उसमें से एक घोषणा दूध उत्पादकों को मिलने वाली प्रोत्साहन राशि को बढ़ाए जाने को लेकर भी था. जिसके अनुसार उत्पादकों को तीन रुपये के बजाए पांच रुपए प्रति लीटर भुगतान किया जाना था.

प्रोत्साहन राशि केवल उन दूध उत्पादकों को ही दिया जाता है जो झारखंड मिल्क फेडरेशन के दूध संग्रह केंद्र पर दूध जमा करते हैं. वर्ष 2024-25 में योजना के लिए 47.45 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गयी है. हालांकि घोषणा के बाद अबतक इस प्रस्ताव पर कैबिनेट की मुहर नहीं लग सकी है. साथ ही एनडीडीबी के साथ करार भी समाप्त हो गया.

इससे दूध उत्पादकों पर दोहरी मार पर रही है. ना तो उन्हें पहले से तय राशि मिल पा रही है और ना ही बढ़ी हुई राशि पर अबतक कोई फैसला हो सका है.

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