बिहार में शिक्षक ट्रांसफर नीति तैयार, क्या शिक्षकों को मिलेगा लाभ?

"अगर ट्रांसफर के बाद भी नज़दीकी पंचायत में पोस्टिंग नहीं हुई तो हम हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर करेंगे. क्योंकि पीडब्ल्यूडी एक्ट में तीन किलोमीटर के दायरे में पोस्टिंग देने का नियम है. लेकिन आज भी दिव्यांगों को पांच से छह किलोमीटर यात्रा करनी पड़ रही है."

New Update
बिहार के शिक्षकों की जिम्मेदारी

बिहार के सरकारी स्कूलों में कार्यरत शिक्षकों के अपने गृह जिले में ट्रांसफ़र-पोस्टिंग का मार्ग खुल गया है. बीपीएससी शिक्षक नियुक्ति परीक्षा (BPSC-TRE) के माध्यम से नियुक्त शिक्षक, सक्षमता परीक्षा पास शिक्षक और पूर्व से कार्यरत शिक्षक भी लंबे समय से ट्रांसफर-पोस्टिंग पॉलिसी की मांग कर रहे थे. सोमवार सात अक्टूबर को शिक्षा विभाग ने नई ट्रांसफ़र-पोस्टिंग नीति को मंज़ूरी दे दी. जिसके तहत सभी शिक्षकों के अपने गृह जिले में नियुक्ति के समान अवसर दिए जाने के नियम बनाए गये हैं. 

साथ ही दिव्यांग या गंभीर रोगों से ग्रस्त शिक्षक, तलाकशुदा, विधवा या अकेले रहने वाली महिला शिक्षिका या शिक्षक दंपत्ति को पोस्टिंग में वरीयता देने का नियम बनाया गया है. हालांकि नई नियमावली में यह साफ़ है कि किसी भी स्थिति में शिक्षकों को अपने स्वयं के गृह पंचायत, नगर निकाय, पति-पत्नी के गृह पंचायत, नगर निकाय या वर्तमान में जहां कार्यरत हैं उस पंचायत और नगर निकाय में पोस्टिंग नहीं दिया जाएगा. इसके अलावा प्रत्येक पांच वर्षों में उनका तबादला विभाग द्वारा किया जायेगा.

ट्रांसफ़र के लिए शिक्षकों को ई-शिक्षाकोष पोर्टल पर आवेदन करना होगा. जहां उन्हें पोस्टिंग के लिए 10 विकल्प देने होंगे. विकल्पों के आधार पर शिक्षकों का ट्रांसफर कर दिसंबर में पोस्टिंग कर दी जाएगी. 

दिव्यांग शिक्षकों की परेशानी

ट्रांसफ़र पोस्टिंग पॉलिसी को लेकर दिव्यांग शिक्षकों में दुविधा की स्थिति बन गई है. जो शिक्षक अभी अपने गृह जिले से दूर पदस्थापित हैं उन्हें अपने गृह जिले में नियुक्ति मिलने की ख़ुशी है, लेकिन इसके साथ ही गृह पंचायत या नगर निकाय में नियुक्ति ना मिलने का नियम उन्हें चिंता में डाल रहा है.

वैशाली जिले के रहने वाले रोहन जयसवाल (बदला हुआ नाम) दृष्टिबाधित हैं. रोहन यहां अपना असली नाम बताने से इसलिए परहेज़ करते हैं क्योंकि नियमावली में यह भी कहा गया है कि जो शिक्षक धरना-प्रदर्शन या विवाद में संलिप्त पाए जाएंगे उनका ट्रांसफ़र अंतर जिला या अंतर प्रमंडल में किया जाएगा. ऐसे शिक्षकों की शिकायत डीईओ, जिला पदाधिकारी और मुख्यालय से करेंगे. इसके बाद उनका ट्रांसफ़र कर दिया जाएगा.

रोहन का चयन बीपीएससी टीआरई-1 में शिक्षक के तौर हुआ. लेकिन नियुक्ति के बाद इनका पदस्थापन गृह जिले से दूर समस्तीपुर जिले में हुआ. नई नियमावली को लेकर रोहन कहते हैं “पीडब्लूडी एक्ट में दिव्यांगों के लिए नियम है कि उनको इच्छुक यानी मन मुताबित ट्रांसफ़र मिलना चाहिए. लेकिन इसका यहां उल्लंघन किया जा रहा है.” 

रोहन सौ फीसदी दृष्टिबाधित हैं और दिव्यांगों की परेशानी पर कहते हैं “अभी मैं अपने घर से दूर समस्तीपुर में रहता हूं क्योंकि मेरी पोस्टिंग यहां हैं. यहां मैंने एक सहायक रखा हुआ है जो मुझे स्कूल लेकर जाता है और वापस लेकर आता है. अब जब यही सहायक मुझे अपने गृह जिले में जाने के बाद भी रखना पड़े तो क्या फ़ायदा? दिव्यांग की निर्भरता तो तब ख़त्म होगी जब वह स्वयं अपने कार्यस्थल पर पहुंच जाए या उन्हें दूसरों पर कम-से-कम निर्भर होना पड़े.” 

राष्ट्रीय दृष्टिहीन बिहार शाखा के अध्यक्ष सुमन प्रसाद कहते हैं “दिव्यांगों और रोग ग्रस्त लोगों को इस नियमावली से थोड़ी सहुलियत होगी. अभी जिन्हें 100 से 150 किलोमीटर रोज़ यात्रा करना पड़ रहा है उन्हें हो सकता है कि अपने नज़दीकी पंचायत में पोस्टिंग मिल जाए. लेकिन अगर ट्रांसफर के बाद भी नज़दीकी पंचायत में पोस्टिंग नहीं हुई और उसकी शिकायत हमारे पास आती है तो हम हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर करेंगे. क्योंकि पीडब्ल्यूडी एक्ट में तीन किलोमीटर के दायरे में पोस्टिंग देने का नियम है. लेकिन आज भी दिव्यांगों को पांच से छह किलोमीटर यात्रा करनी पड़ रही है."

क्या बीपीएससी शिक्षकों को नहीं मिलेगा लाभ?

दिव्यांगों के साथ-साथ महिला शिक्षकों को गृह पंचायत या नगर निकाय नहीं मिलने से परेशानी हैं. नालंदा जिले की रहने वाली कामना कुमारी बीपीएससी टीआरई 1 के माध्यम से नियुक्त शिक्षिका है.

कामना की नियुक्ति जमुई जिले के सोनो ब्लॉक के नविन प्राथमिक विद्यालय, नीमाडीह में हुआ है. कामना को आशंका है कि इस नियमावली का लाभ बीपीएससी शिक्षकों को नहीं मिल पाएगा. कामना कहती है “शिक्षा विभाग ने अब तक जो भी बाते बोली हैं वह पूरी नहीं हुई हैं. सक्षमता परीक्षा पास शिक्षकों को जून में ही ट्रांसफ़र-पोस्टिंग की बात कही गई थी. लेकिन एक साल बाद भी वह पूरा नहीं हुआ. अब जो पालिसी आई है उसमें भी लिखा है पहले इसका लाभ नियमित शिक्षक और सक्षमता परीक्षा पास शिक्षकों को मिलेगा. उसके बाद ही बीपीएससी शिक्षक इसका लाभ ले पाएंगे. ऐसे में हमें उम्मीद कम है की हमें पोस्टिंग मिलेगी.” 

कामना आगे आने वाले बिहार विधनासभा चुनाव के नतीजों का प्रभाव भी ट्रांसफ़र-पोस्टिंग पॉलिसी पर पड़ने की आशंका जताती हैं. उन्हें लगता है कि ये नियम केवल कागज़ों तक सीमित रहेंगे.

पुरुष शिक्षकों को अपने अनुमंडल से बाहर नियुक्ति

नए नियमावली में पुरुष शिक्षकों को महिलाओं और दिव्यागों के मुकाबले सबसे कम वरीयता दी गयी है. ट्रांसफ़र-पोस्टिंग के समय उन्हें अपने गृह अनुमंडल को छोड़कर अन्य अनुमंडल के पंचायत और नगर निकायों का चयन करना होगा. लेकिन राज्य के आठ जिले अरवल, बांका, जमुई, जहानाबाद, किशनगंज, लखीसराय, शेखपुरा एवं शिवहर में एक ही अनुमंडल है. ऐसे में प्रश्न उठता है कि इन जिलों में पोस्टिंग चाहने वाले पुरुष शिक्षकों कैसे पोस्टिंग दी जाएगी.

बिहार विद्यालय अध्यापक संघ के अध्यक्ष अमित विक्रम ट्रांसफर-पोस्टिंग में पुरुषों के लिए समानता की मांग करते हुए कहते हैं “ट्रांसफर नियमावली के अनुसार पुरुषों को गृह अनुमंडल में पोस्टिंग नहीं होगी. लेकिन कई जिलों में एक ही अनुमंडल है, वहां क्या होगा? जैसे शिक्षिकाओं के लिए गृह पंचायत में पोस्टिंग नहीं होने की बाध्यता है. वही नियम पुरुषों के लिए भी होने चाहिए.”

अमित विक्रम आगे कहते हैं “असाध्य रोगों से ग्रसित एवं दिव्यांग शिक्षकों को अपने गृह पंचायत या नगर निकाय पोस्टिंग नहीं दी जा रही है. जबकि इन दोनों समूह वर्गों के शिक्षकों को अपने घर के सबसे नज़दीकी विद्यालय में पोस्टिंग मिलनी चाहिए. चाहे वो उनका गृह पंचायत हो या नगर निकाय.”

पांच साल में ट्रांसफर

ट्रांसफ़र-पोस्टिंग नियमावली में प्रत्येक पांच सालों में ट्रांसफर के नियम बनाए गए हैं. जिसके अनुसार शिक्षकों को प्रत्येक पांच सालों में तबादला कर दिया जाएगा. लेकिन शिक्षक संघ और शिक्षक इस नियम को जबरन ट्रांसफर बता रहे हैं. शिक्षकों को आशंका है कि इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा.

अमित विक्रम कहते हैं “आज तक पूरे इतिहास में कभी शिक्षकों के लिए जबरन ट्रांसफर का प्रावधान नहीं रहा है. फिर इस बार ऐसा क्यों? क्या हर 5 साल में सरकार ट्रांसफर के माध्यम से अवैध कमाई करना चाहती है? जैसे अन्य विभागों में होता है.” 

शिक्षकों की मांग है कि प्रत्येक पांच वर्षों पर स्थानांतरण की अनिवार्यता को समाप्त किया जाना चाहिए. क्योंकि इससे बच्चों के शैक्षणिक प्रक्रियां में बाधा आएगी.

राजकीय मध्य विद्यालय, कंकड़बाग में पदस्थापित शिक्षक सुनील कुमार साल 2014 से इस विद्यालय में कार्यरत हैं. प्रत्येक पांच सालों में ट्रांसफ़र के नियम पर कहते हैं “मेरा विद्यालय पहली से आठवीं कक्षा तक का है. पहली कक्षा में नामांकन लेने वाले छात्र को हम पूरे आठ सालों तक पढ़ाते हैं. इस लंबे अंतराल में हमें यह पता होता है कि कौन सा छात्र किस विषय में कमज़ोर है या अच्छा है. और उसी अनुसार उसे गाइड किया जाता है. लेकिन अगर पांच सालों में हमारा ट्रांसफ़र हो गया तो हमें और छात्र दोनों को नए छात्र और शिक्षक को समझने में समय लगेगा. जिससे ज़ाहिर है इसका प्रभाव बच्चों की क्वालिटी एजुकेशन पर पड़ेगा.”

अन्य राज्यकर्मियों की तरह शिक्षकों का तबादला करना उचित नहीं है. पहले शिक्षकों के पूरे सेवाकाल में मात्र दो बार ही तबादले का प्रावधान था. 

शिक्षक संघों की मांग है की सरकार शिक्षक संघों से वार्ता कर नई स्थानांतरण एवं प्रतिस्थापन नीति तैयार करे क्योंकि इसमें व्यापक अनियमितताएं एवं भेदभावपूर्ण प्रावधान हैं. शिक्षक संघों का कहना है कि बदलाव नहीं करने पर उन्हें मजबूरन हाईकोर्ट जाना पड़ेगा.

हालांकि शिक्षा मंत्री सुनील कुमार ने कहा है कि अगर इस पॉलिसी में कुछ कमी रह जाती है तो कमिश्नर लेवल पर कमेटी गठित कर उस कमी को दूर किया जाएगा. इस पर व्यापक पैमाने पर विचार-विमर्श किया गया है.

bpsc teacher exam BPSC Teacher Recruitment BPSC TEACHER bpsc teacher answer key BPSC teacherexam Bihar teachers transfer posting BPSC teacher candidates protest BPSC teacher drowned in Patna bihar BPSC teachers