बिहार में कैंसर की समस्या हर साल बढ़ रही है. हर साल कैंसर के बढ़ते आंकड़े परेशान करने वाले हैं. बिहार के हर तीसरा घर कैंसर की गिरफ्त में आ रहा है. इसकी एक प्रमुख वजह आब-ओ-हवा का बदलना है. वायु प्रदूषण और पानी में जरूरत से अधिक आयरन और बाकी तत्वों के रहने की वजह से कैंसर के मामले बढ़े हैं.
आज के समय में मेडिकल साइंस की तरक्की ने हमें कैंसर के इलाज तक पहुंचा तो दिया है. लेकिन इसके इलाज की एक प्रमुख शर्त शुरूआती लक्षणों की पहचान और उसके इलाज की है. अगर शुरू में ही कैंसर की पहचान हो जाती है तो उसका इलाज मुमकिन है.
साल 2014 में शुरू हुआ कैंसर डिटेक्शन सेंटर
इसी पहचान और इलाज को सुनिश्चित करने के लिए बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने साल 2014 में PMCH (पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल) में कैंसर डिटेक्शन सेंटर की शुरुआत की गयी थी. पिछले 10 सालों से ये सुविधा बिहार के मरीजों को आसानी से उपलब्ध हो रही थी. साल 2014 में सीनियर डॉक्टर अजीत सिंह की निगरानी में इस कैंसर डिटेक्शन सेंटर की शुरुआत की गयी थी. यहां कैंसर मरीजों के शुरूआती लक्षणों की पहचान की जाती थी. यहां मरीजों के सैंपल कलेक्ट करके उनकी जांच की जाती थी आयर तुरंत इलाज शुरू किया जाता था.
लेकिन सरकारी उपेक्षा का शिकार ये डिटेक्शन सेंटर अब बंद हो चुका है. इस वजह से अब मरीजों को अलग-अलग विभागों का चक्कर काटना पड़ता है. जिसकी वजह से उनकी कैंसर की रिपोर्ट आने में समय लग जाता है और कई बार इलाज में देर हो जाती है. पीएमसीएच में मौजूद कैंसर डिटेक्शन सेंटर को पैथोलॉजी और सर्जिकल विभाग के सहयोग से चलाया जाता था. सेंटर में मरीजों को तीन से पांच दिन में जांच की रिपोर्ट मिल जाती थी. लेकिन पैथोलॉजी विभाग को इस सेंटर से अलग कर दिया गया और सेंटर बंद हो गया.
कई मरीज इलाज से हुए दूर
रामेश्वर मिश्रा (बदला हुआ नाम) दरभंगा के रहने वाले हैं. उनके मुंह के अंदरूनी हिस्से में एक साल पहले घाव हुआ. शुरुआत में उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया और पास के एक मेडिकल स्टोर से दवा ली. कुछ दिन बाद भी जब घाव ठीक नहीं हुआ तो उन्होंने डॉक्टर को दिखाने का फैसला किया. जनरल फिजिशियन ने उन्हें तुरंत पटना के पीएमसीएच में रेफर किया. उसके बाद रामेश्वर मिश्रा के दौड़-भाग का सिलसिला शुरू हो गया. वो कभी रेडियोलॉजी विभाग कभी मेडिसिन विभाग के चक्कर काटते रहें. जब तक उनका कैंसर डिटेक्ट होता और उसका इलाज शुरू होता उनका कैंसर काफी बढ़ चुका था. डॉक्टर ने ऑपरेशन के जरिए उनके कैंसर के हिस्से को काट कर हटाने का फैसला किया. डेमोक्रेटिक चरखा से रामेश्वर मिश्रा के बेटे ने बात की. उन्होंने बताया कि "शुरू के 3 महीने तो अलग-अलग ओपीडी में डॉक्टर को दिखाने में ही गुजर गए. जांच भी बाहर की लिखी जाती है. अगर कैंसर डिटेक्शन सेंटर खुला रहता तो इलाज में देरी नहीं होती. और शायद बाबा का चेहरा यूं नहीं बिगड़ जाता."
बिहार स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य में हर साल 1.40 लाख कैंसर के केस रजिस्टर किये जाते हैं. इसमें से दो तिहाई कैंसर के मरीज दूसरे या तीसरे स्टेज में होते हैं. ऐसे में उनका इलाज मुश्किल हो जाता है. बिहार स्वास्थ्य विभाग ने साल 2021 में जारी एक बयान में कहा था कि "राज्य में कैंसर के बढ़ने की एक मुख्य वजह सामुदायिक स्तर पर कैंसर की स्क्रीनिंग ना होना है. अगर शुरुआत के दौर में ही कैंसर के लक्षणों की पहचान हो जाए तो 60% मुंह के कैंसर, 76% स्तन कैंसर और 73% सर्वाइकल कैंसर के मरीज के बचने की संभवना है."
बिना वैकल्पिक व्यवस्था के सेंटर को बंद करना कितना सही?
बिहार में नवंबर 2022 और दिसंबर 2023 के बीच आठ लाख लोगों की रैंडम कैंसर की जांच की गयी. इस स्टडी के दौरान 752 लोगों को शुरूआती कैंसर के लक्षण की पहचान की गयी है. इसमें मुंह के कैंसर 51%, स्तन कैंसर 22%, सर्वाइकल कैंसर 16% और अन्य कैंसर 11% मिले हैं.
कैंसर डिटेक्शन सेंटर बंद होने की वजह जानने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने पीएमसीएच के अधीक्षक से बात की. अस्पताल के अधीक्षक डॉ. आइएस ठाकुर ने बताया कि "PMCH को अभी विश्वस्तरीय अस्पताल में तब्दील किया जा रहा है. इस अस्पताल में आने वाले दिनों में हर मुमकिन सुविधा मौजूद होगी और इलाज अब और भी बड़े पैमाने पर मुमकिन होगा."
सरकार पीएमसीएच को विश्वस्तरीय बनाने के लिए स्वास्थ्य बजट का लगभग आधा हिस्सा खर्च कर रही है. ऐसे में आज से चार-पांच सालों में मरीजों को जरूर फायेदा पहुंचेगा. लेकिन इस दौरान लाखों मरीजों को इलाज से दूर करना सही नहीं है. ऐसे में स्वास्थ्य विभाग और पीएमसीएच प्रशासन को कोई वैकल्पिक व्यवस्था का इंतेजाम करना चाहिए.