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भारत, जिसे 'स्नेकबाइट कंट्री ऑफ द वर्ल्ड' के दुर्भाग्यपूर्ण टैग से नवाजा गया है, हर साल हजारों लोगों को सांप के डसने से खो देता है. बिहार, जो इस त्रासदी में देश का तीसरा सबसे अधिक प्रभावित राज्य है, यहां सर्पदंश से प्रतिवर्ष 4,500 से अधिक मौतें होती हैं. ये आंकड़े केवल संख्याएँ नहीं, बल्कि उन परिवारों की अधूरी कहानियाँ हैं, जो सरकार की लापरवाही और उदासीनता के कारण अपनों को खो बैठते हैं.
सुमन की असहनीय पीड़ा
2024 की एक उमस भरी मानसूनी सुबह, अगस्त का महीना था. 30 वर्षीय सुमन देवी ने अचानक अपने पति मनोज राम की चीख सुनी. जब वह बाहर आईं, तो देखा कि उनके पति तड़प रहे थे, उन्होंने अपना बायाँ पैर कसकर पकड़ रखा था—उन्हें सांप ने काट लिया था. परिवार के लोग और ग्रामीण उन्हें पहले स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र (PHC) और फिर गोपालगंज जिला अस्पताल ले गए. लेकिन सरकारी अस्पताल की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ने उनके पति की जान छीन ली. डॉक्टरों ने उन्हें बेहतर इलाज के लिए रेफर किया, लेकिन मनोज को बचाया नहीं जा सका. उनकी मौत के साथ ही उनके दो छोटे बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया.
जब हमने उनके परिजनों से बात की तो उन्होंने बताया, “उन्हें सांप ने काटा और फिर अस्पताल ले जाया गया, जहां ख़राब स्वास्थ्य व्यवस्था के कारण उनकी मौत हो गई. मौत के इतने महीनों के बाद भी मुआवजा आज तक नहीं मिला है, जबकि सरकार ने वादा किया था कि 4 लाख रुपये मुआवजा दिया जाएगा. वह हमारे घर की रीढ़ थे, अब समझ नहीं आ रहा कि घर कैसे चलेगा?”
सरकारी आँकड़ों में मनोज राम सिर्फ़ एक और सर्पदंश पीड़ित बनकर रह गए, लेकिन उनके परिवार का दुख कभी ख़त्म नहीं होगा.
मुआवजा—एक अधूरी आस
सरकार ने सर्पदंश से मौत पर 4 लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की है. परंतु क्या वाकई यह मुआवजा पीड़ित परिवारों तक पहुँचता है? बिहार में कई परिवार आज भी इस मुआवजे के इंतजार में दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. मुआवजा पाने के लिए एफएसएल रिपोर्ट की अनिवार्यता तय की गई है, लेकिन पटना में बनने वाला स्नेक बाइटिंग टेस्ट सेंटर अब तक पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं हो सका है. इससे स्पष्ट है कि सरकार की योजनाएँ केवल कागज़ों में सीमित हैं.
स्वास्थ्य सेवाओं की दयनीय स्थिति
बिहार के अधिकांश अस्पतालों में एंटी-वेनम की कमी, डॉक्टरों की अनुपलब्धता और लचर स्वास्थ्य सेवाएँ आम बात हैं. नवादा जिले में जुलाई 2024 में संतोष लोहार को सांप ने काट लिया, लेकिन सौभाग्य से समय पर अनुमंडल अस्पताल पहुँचाने पर उनकी जान बच गई. यह उन दुर्लभ घटनाओं में से एक थी, जब किसी पीड़ित को सही समय पर इलाज मिला. लेकिन कितने ऐसे लोग हैं, जो समय पर अस्पताल तक नहीं पहुँच पाते या वहाँ पहुँचने के बाद भी इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं?
मनोज राम के परिजन बताते हैं, “सरकारी व्यवस्था इतनी लाचार है कि इलाज कराने ले जाओ तो इलाज नहीं हो पाता. यहाँ तक कि गाँव में एम्बुलेंस की सुविधा नहीं मिलती, जिससे समस्या और बढ़ जाती है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारे.”
आँकड़े और वास्तविकता के बीच की खाई
भारत में हर साल 58,000 से अधिक लोग सर्पदंश का शिकार बनते हैं. नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार में प्रतिवर्ष 10,000 से अधिक मौतें सर्पदंश से होती हैं. 2020 में प्रकाशित 'क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजी एंड ग्लोबल हेल्थ' के अध्ययन के अनुसार, 30% घटनाएँ रात में सोते समय, 30% खेल-कूद के दौरान और 28% खेतों में काम करने के दौरान होती हैं. लेकिन इन मौतों की गूँज शायद ही कभी संसद में सुनाई देती है.
राजनीतिक उपेक्षा
29 जुलाई को सारण लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सांसद राजीव प्रताप रूडी ने संसद में सांप के काटने से होने वाली मौतों का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि भारत में हर साल 50,000 साँप काटने से होने वाली मौतों में से 10,000 बिहार में होती हैं. नीति आयोग की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए, रूडी ने कहा कि बिहार "गरीबी और प्राकृतिक आपदाओं" से ग्रस्त है, जिससे यहाँ का जोखिम और बढ़ जाता है.
राष्ट्रीय कार्य योजना और उसकी चुनौतियाँ
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव श्री अपूर्व चंद्रा ने 2024 में भारत में सर्पदंश से होने वाली मौतों की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना (NAP-SE) की शुरुआत की. 2030 तक सर्पदंश से होने वाली मौतों को आधे से कम करने के उद्देश्य से, NAP-SE राज्यों को 'वन हेल्थ' दृष्टिकोण के माध्यम से सर्पदंश के प्रबंधन, रोकथाम और नियंत्रण के लिए अपनी स्वयं की कार्य योजना विकसित करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा प्रदान करता है.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 3-4 मिलियन सर्पदंश के मामलों में से लगभग 50,000 मौतें होती हैं, जो वैश्विक स्तर पर होने वाली सभी सर्पदंश मौतों का आधा हिस्सा है. विभिन्न देशों में सर्पदंश के शिकार लोगों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही क्लीनिकों और अस्पतालों में रिपोर्ट करता है, जिससे वास्तविक आंकड़े कम रिपोर्ट किए जाते हैं.
समाधान की दिशा में कदम
1. सरकारी अस्पतालों में एंटी-वेनम की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी होगी.
2. PHC स्तर पर प्रशिक्षित डॉक्टरों की संख्या बढ़ानी होगी.
3. एफएसएल रिपोर्ट की अनिवार्यता को हटाकर, पोस्टमार्टम रिपोर्ट को ही पर्याप्त माना जाए, ताकि पीड़ित परिवारों को त्वरित राहत मिल सके.
4. ग्रामीण क्षेत्रों में सर्पदंश से बचाव और प्राथमिक उपचार की जानकारी देने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए.
5. प्रत्येक जिले में कम से कम एक अत्याधुनिक स्नेक बाइट ट्रीटमेंट सेंटर की स्थापना होनी चाहिए.
6. वन्यजीव संरक्षण और सर्पदंश रोकथाम के लिए वन विभाग को भी इस अभियान का हिस्सा बनाना चाहिए.
निष्कर्ष
सर्पदंश से होने वाली मौतें किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं, लेकिन इस आपदा को नियंत्रित किया जा सकता है. दुर्भाग्यवश, सरकारी तंत्र की निष्क्रियता, स्वास्थ्य सेवाओं की लचर स्थिति और राजनीतिक उदासीनता के कारण हजारों परिवार हर साल अपनों को खोने पर मजबूर हैं.