विश्व एड्स दिवस: आज भी एचआईवी संक्रमित मरीज हो रहे हैं भेदभाव का शिकार

स्टेट्स ऑफ नेशनल एड्स रिस्पांस 2022 के अनुसार भारत में करीब 24.01 लाख लोग एचआईवी एड्स संक्रमित हैं. वहीं हर साल देश में 62,967 नये लोग एचआईवी से संक्रमित होते हैं.

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विश्व एड्स दिवस: आज भी भेदभाव का शिकार होते हैं एचआईवी संक्रमित मरीज

एचआईवी संक्रमित मरीज

हर साल 1 दिसंबर को विश्व एड्स दिवस के रूप में मनाया जाता है. HIV एड्स से बचाव और उसके रोकथाम को लेकर लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से विश्व स्वास्थ्य संगठन वर्ष 1988 से विश्व एड्स दिवस मना रहा है. एड्स एक लाइलाज बीमारी है. यानि इस बीमारी से बचने का एकमात्र उपाय ‘सुरक्षा’ ही है. भारत में एचआईवी एवं एड्स से बचाव के लिए साल 2018 में एचआईवी एवं एड्स अधिनियम बनाया गया है. यह कानून देश में एचआईवी एड्स के प्रसार को रोकने एवं नियंत्रित करने का प्रयास करता है. साथ ही संक्रमित व्यक्तियों के खिलाफ होने वाले भेदभाव को रोकने और समाप्त करने का भी कार्य करता है.

लेकिन अन्य अपराधों की तरह एड्स संक्रमित मरीजों से भेदभाव करने की मानसिकता आज भी समाज से खत्म नहीं हुई है. एड्स संक्रमित व्यक्ति आज भी छुआछूत जैसी मानसिकता का सामना करने को मजबूर हैं.

एड्स पीड़ित ट्रांसजेंडर झेलते हैं भेदभाव

पटना के कदमकुआं की रहने वाली प्रीति किन्नर (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि कैसे ट्रांसजेंडर और किन्नर समुदाय के लोग भी एड्स संक्रमित होने पर भेदभाव का शिकार होते हैं. समाज से किनारे किए जाने के डर से संक्रमित व्यक्ति कभी जाहिर ही नहीं करता है कि वो एड्स से संक्रमित हैं.

डेमोक्रेटिक चरखा से प्रीति बताती हैं “सेक्स वर्क हमारे समुदाय के आय का सबसे बड़ा जरिया है. इसी दौरान असुरक्षित सेक्स के कारण वे लोग एचआईवी से संक्रमित हो जाती हैं. लेकिन काम छूट जाने के डर से बहुत बार वो लोग बताती ही नहीं है. केवल पटना में पांच हज़ार से ज्यादा ट्रांसजेंडर के लोग एड्स से संक्रमित हैं. बीमारी का सही समय पर इलाज नहीं होने के कारण मैंने कई लोगों को अपने आंखों के सामने दर्दनाक मौते भी देखीं हैं.” 

भेदभाव और जानकारी के अभाव पर प्रीति आगे कहती हैं “हमारे कम्युनिटी में एड्स को लेकर जागरूकता की कमी है. शिक्षा और रोजगार के अवसर कम होने के कारण वे मज़बूरी में सेक्स वर्क करती हैं. जानकारी के आभाव में कम्युनिटी के लोग ही एड्स संक्रमित लोगों से भेदभाव करते हैं. ऐसे में हम उनके लिए हर महीने जांच और जागरूकता शिविरों का आयोजन कर रहे हैं. यहां बीमारी से बचाव और रोकथाम के उपायों की जानकरी उन्हें दी जाती है.”

एड्स सेंटर में किन्नर

प्रीति किन्नर समुदाय को एड्स से लड़ने की ताकत देती हैं. अगर जांच में कोई पॉजिटिव पाया जाता है तो वो उसे आईटीटीसी केन्द्रों पर ले जाकर सारा जांच करवाती हैं. वहां पूरी जांच होने के बाद उन्हें एआरटी (एंटी रेट्रोवायरल) केन्द्रों पर भेजा जाता है जहां से उन्हें मुफ्त दवाएं मिलती हैं. हालांकि मुफ्त दवा लेने की प्रक्रिया बहुत लंबी होती है. इसके लिए बहुत भागदौड़ करनी पड़ती है. कुछ समय पहले हर महीने मुफ्त दवा मिलने में समस्या आती थी लेकिन अब इसमें सुधार हुआ है, दवा मिल रही है साथ ही उन्हें हर महीने में 1500 रुपए भी मिलते हैं.

देश में 24 लाख लोग एचआईवी संक्रमित

सबसे पहले एचआईवी एड्स की जानकारी 20वीं सदी की शुरुआत में अफ्रीका में लगा था. उसके बाद 1980 आते-आते यह पूरी दुनिया में फेल गया. शुरूआती दिनों में यह लाइलाज बीमारी के रूप जाना जाता था. हालांकि आज भी इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है लेकिन कुछ रोग प्रतिरोधी दवाओं का सेवन करके संक्रमित व्यक्ति सामान्य जीवन बिता सकता है.

पूरी दुनिया के एचआईवी मरीजों की तीसरी सबसे बड़ी आबादी भारत में रहती है. राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) हर साल देश में एड्स की स्थिति पर रिपोर्ट जारी करता है. स्टेट्स ऑफ नेशनल एड्स रिस्पांस 2022 के अनुसार भारत में करीब 24.01 लाख लोग एचआईवी एड्स संक्रमित हैं. इसी कारण भारत सरकार ने एचआईवी संक्रमित लोगों को साल 2004 से मुफ्त एंटी-रेट्रोवायरल दवाएं बांटना शुरू किया है.

स्टेट्स ऑफ नेशनल एड्स रिस्पांस 2022 रिपोर्ट के अनुसार हर साल देश में 62,967 नये लोग एचआईवी से संक्रमित होते हैं. साथ ही 41,968 लोगों की मौत एड्स के कारण हो जाती है. अगर राज्यों की बात की जाए तो बिहार में 15-49 वर्ष के एक लाख 42 हज़ार 792 लोग एचआईवी से संक्रमित पाए गये हैं जिसमें बच्चों की संख्या 7,531 है. राज्य में हर साल 8,827 लोग एचआईवी से संक्रमित हो रहे हैं. वहीं 2,471 मरीजों की मौत एड्स के कारण हो जाता है.

Bihar AIDS Control Board

आज भी एड्स पर खुल कर बात करने से कतराता क्यों है?

एचआइवी एड्स को लेकर भले ही हमारा समाज आज जानकारी रखता हो, लेकिन उस पर खुलकर बात करना आज भी सामान्य नहीं हो सका है. 13-19 उम्र के बच्चों को एचआईवी एड्स से बचाव की जानकारी ना तो शैक्षणिक परिवार में और ना ही संस्थाओं में दी जाती है. 15-49 वर्ष के 25.1% पुरुषों जबकि मात्र 10.3% महिलाओं को एचआईवी एड्स की जानकारी है. वहीं 15-24 वर्ष के युवा वर्ग के 25.3% लड़कों और 10.1% लड़कियों को एचआईवी की जानकारी थी.

बिहार में एनटीईपी (NTEP) केन्द्रों द्वारा 7.19% एचआईवी मरीज़ों की पहचान की गयी है. यह आंकड़ा पुरे भारत में सबसे ज़्यादा है. एचआईवी जांच और निदान के लिए चलायी जा रहीं योजनाओं के सफल क्रियान्वयन के कारण बिहार का रैंक 33 से घटकर 24 हो गया है.

लम्बे समय से चलाये जा रहे जागरूकता अभियान के बावजूद देश में 69% पुरुषों और 78% महिलाओं को एचआईवी एड्स की व्यापक जानकारी नहीं है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन हर साल विश्व एड्स दिवस के लिए थीम का निर्धारण करता है. इस वर्ष विश्व एड्स दिवस की थीम- ‘लेट कम्यूनिटीज लीड’ रखा गया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है, एचआईवी के रोकथाम में सामुदायिक जन भागीदारी सबसे अधिक कारगर साबित हो सकती हैं.

World AIDS Day HIV positive HIV infected patients bihar health department