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पटना: दलित छात्रों को नहीं मिलती स्कॉलरशिप, हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

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मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश पार्थ सारथी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता राजीव कुमार और इस मामले में आई अन्य याचिकाओं पर ऑनलाइन सुनवाई करते हुए केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय के सचिव सहित शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव को 6 सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है.

पटना हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार से बिहार में अनुसूचित जाति के छात्रों को पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम का लाभ नहीं दिए जाने के मामले पर जवाब तलब किया है.

इस विषय पर डेमोक्रेटिक चरखा ने याचिकाकर्ता के वकील पंकज विकास जी से बात की. उन्होंने हमें बताया कि

राज्य सरकार ने मनमाने तरीके से छात्रवृत्ति को शिक्षा ऋण से बराबर मिलान कर केंद्र सरकार के इस कल्याणकारी स्कीम का लाभ अनुसूचित जाति के छात्रों को देने से रोका है. कोर्ट ने इन आरोपों पर संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को जवाब देने को कहा गया है.

(पंकज विकास, अधिवक्ता)
याचिकाकर्ता का आरोप, आवेदन को किया गया नामंजूर

राज्य सरकार के समक्ष पिछले साल जून में फ्रीशिप कार्ड मुहैया कराने को लेकर एक आवेदन देकर आग्रह किया गया.  लेकिन राज्य सरकार ने इसे नामंजूर कर दिया और कहा कि 2016 से ही राज्य सरकार स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना लागू किए हुए है. इस विषय पर हमने याचिकाकर्ता राजीव कुमार से बात की. उन्होंने हमें बताया कि

हमने इस विषय पर पिछले साल के जून में आवेदन के माध्यम से छात्रों को फ्रीशिप कार्ड देने की गुहार की थी. लेकिन राज्य सरकार ने यह कहते हुए उस आवेदन को नामंजूर कर दिया कि 2016 से राज्य सरकार ने स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना लागू कर रखा है जिसमें छात्रों को आसानी से ऋण प्राप्त हो रहा है. लेकिन वास्तव में राज्य सरकार ने मनमाने तरीके से छात्रवृत्ति शिक्षा ऋण से बराबर मिलान कर केंद्र सरकार की इस कल्याणकारी योजना का लाभ बिहार के अनुसूचित जाति के छात्रों को देने से रोका है.

क्या है फ्रीशिप कार्ड योजना

केंद्र सरकार की इस फ्लैगशिप योजना, जिसके तहत अनुसूचित जाति के छात्रों को मैट्रिक के बाद कॉलेज और यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने हेतु एक ‘फ्रीशिप कार्ड’ प्रदान किया जाता है.

फ्रीशिप कार्ड योजना के तहत विद्यार्थियों को बिना फीस के शिक्षण संस्थानों में एडमिशन मिल जाता है और उस फीस की भरपाई राज्य सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर करनी होती है. यह रकम विद्यार्थियों को चुकानी नहीं पड़ती. यह स्कॉलरशिप यानी वजीफा के तौर पर दिया जाता है.

 इस विषय पर याचिकाकर्ता राजीव ने हमें बताया कि

 यह केंद्र सरकार की स्कॉलरशिप योजना है जिसका इंप्लीमेंटेशन केंद्र और राज्य सरकार द्वारा किया जाता है. 2020-21 में केंद्र सरकार ने इसके बेसिक बुनियादी स्ट्रक्चर में चेंज किया. पहले इसका फंडिंग पैटर्न अलग था.

वर्तमान में क्या है फंडिंग पैटर्न

इस विषय पर याचिकाकर्ता राजीव ने बताया कि

इस योजना के फंडिंग पैटर्न को बदला गया है. इसके बावजूद भी बच्चों को लाभ नहीं मिल पा रहा है. पहले राज्य सरकार को ज्यादा पैसा लगाना पड़ता था लेकिन फंडिंग पैटर्न में बदलाव होने के बाद अब केंद्र सरकार 60% फंड देती है और राज्य सरकार 40%.

(याचिकाकर्ता राजीव कुमार)
राज्य सरकार ने लगा रखा है कैपिंग सिस्टम

बिहार में इस योजना की सबसे बड़ी समस्या यह है कि राज्य सरकार 60% शेयर केंद्र सरकार से तो ले रही है लेकिन राज्य सरकार ने इस स्कॉलरशिप स्कीम में एक कैपिंग सिस्टम लगा कर रखा है और राशि को फिक्स कर दिया है. इस विषय पर हमने याचिकाकर्ता से बात की और उन्होंने हमें बताया कि

जो बच्चे अनुसूचित जाति से हैं वो जिस संस्थान में पढ़ते हैं, वहां उन्हें 15,000 से ज्यादा राज्य सरकार नहीं देती. यदि सरकारी शिक्षण संस्थान में पढ़ते हैं जैसे आईआईटी (IIT) जहां की फीस 90,000 है. ऐसे संस्थानों को केवल ₹75000 ही दिए जाते हैं. ऐसे में समस्या यह है कि आई.आई.एम (IIM) जैसे संस्थान जिनकी फीस 2 लाख से लेकर 10 लाख तक है लेकिन बिहार सरकार के तरफ से उन बच्चों को केवल 70000 तक की मदद ही मिलती है क्योंकि उन्होंने कैपिंग सिस्टम लगा रखा है.

आखिर क्या है याचिकाकर्ता की डिमांड?

याचिकाकर्ता राजीव ने बताया उनकी तीन मांगे हैं:

1. इस पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम 2021 को केंद्र सरकार के दिशा-निर्देश के अनुसार बिहार में लागू कराया जाए.

2. उस दिशा-निर्देश के अनुसार योग्य विद्यार्थियों को फ्रीशिप कार्ड दिया जाए ताकि वह बच्चे बिना फीस के पढ़ाई कर सकें.

3. जो राज्य सरकार का 2016 का रिवॉल्यूशन है जिसके तहत अधिकतम फीस की अधिकतम सीमा खुद राज्य सरकार तय करती है इसे तुरंत खत्म किया जाए.

24 मार्च को है अगली सुनवाई

इस योजना पर कोर्ट के द्वारा अगली सुनवाई 24 मार्च को होनी है. इससे पहले कोर्ट के द्वारा 20 जनवरी को ऑर्डर आया था जिसके तहत केंद्र और राज्य सरकार से 3 हफ्ते के भीतर जवाब मांगा गया है. हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला लिया है.

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