गर्मी ने अभी ठीक से दस्तक भी नहीं दी है, चिलचिलाती धूप की मार अभी तक नहीं शुरू हुई है. आने वाले दिनों में धीरे-धीरे पारा और चढ़ेगा. अभी गर्मी की थोड़ी सी झलक ने ही अप्रैल में ही लोगों को मई-जून जैसा एहसास दिलाया है. गर्मी की तपिश ने अभी से ही बिहार की नदियों को सुखाना शुरू कर दिया है.
इस समय बिहार में 40 से अधिक नदियां सूख चुकी है. कई नदियों में थोड़ा बहुत पानी बचा है, लेकिन बहाव पूरी तरह से खत्म हो गया है. वहीं राज्य में बड़ी संख्या में ऐसी भी नदियां हैं जिनका पानी तेजी से खत्म हो रहा है. कई नदियों में कुछ हिस्से में पानी है, तो बड़े हिस्से में मैदानी इलाका नजर आने लगा है. वहीं कई नदियां अब नालों की तरह नजर आ रही है.
मौसम के बदलाव होते हैं नदियों में पानी का स्तर धीरे-धीरे कम होने लगता है. सूबे में फरवरी से ही सूखे का सिलसिला शुरू हो गया था. बिहार के इलाके जो नेपाल सीमा से लगते हैं उन इलाकों में नदियां सूखकर मैदानी इलाका छोड़ गई थी. जिसमें उत्तर बिहार की सबसे बड़ी नदी गंडक भी शामिल थी. गोपालगंज के इलाके में फरवरी में ही गंडक नदी सूख चुकी थी.
बिहार में मंडरा रहा है जल संकट
खबरों के मुताबिक दक्षिण बिहार में और हालत खराब है. दक्षिण बिहार के 7 जिलों में 24 पंचायत में 50 फीट तक पानी नीचे चला गया है. बिहार में चंदन, गोइठवा, भुतही, नोनाई, चिरैया, धोबा, पंचाने, बरनार, पैमार, माही, किऊल, सकरी, तिलैया, बाया, दुर्गावती, कमलाधार समेत कई नदियां सूख चुकी है.
नदियों के सूखने की इस समस्या को 2011 में ही जल संसाधन मंत्री ने भांप लिया था. 2011 में विजय चौधरी ने केंद्र के समक्ष नदियों के सूखने और उसके संकट का मामला उठाया था. विजय चौधरी ने गाद की समस्या की गंभीरता पर केंद्र को ध्यान देने के लिए आग्रह किया था.
देखा जाए तो 90 के दशक के बाद नदियों के सूखने का संकट बढ़ने लगा था. धीरे-धीरे भूजलस्तर कम होने लगा. जमीन के अंदर बेतहाशा मौजूद पानी धीरे-धीरे कम होने लगा.
अप्रैल महीने में ही इतनी संख्या में नदियों की सूख जाने की समस्या आने वाले दिनों में बड़ा संकट ला सकती है. मई-जून जैसे महीने में कड़ाके की गर्मी पड़ती है, उस समय भूजलस्तर और नीचे चला जाता है. अभी ही नदियां सूखने लगी है तो आगे के दो महीनों में पीने तक के पानी पर संकट होता दिख रहा है. ऐसे में सरकार के साथ-साथ लोगों को भी पर्यावरण, नदियों इनसब पर पर ध्यान देना होगा. क्योंकि इनके बिना हम अपनी जिंदगी नहीं सोच सकते हैं. जहां और जैसे भी मौका मिले हमें पानी बचाना चाहिए, यह हमारी जिम्मेदारी के साथ-साथ हमारी जरूरत भी है.