पिछले वर्ष विधानसभा सत्र के दौरान विधायक शकील अहमद खान ने शिक्षा मंत्री से प्रश्न उठाते हुए कहा, “माध्यमिक स्तर की शिक्षा के दौरान पढ़ाई छोड़ने वाली लड़कियों के मामले में बिहार दूसरे स्थान पर है. वर्ष 2018-19 के दौरान बिहार में माध्यमिक स्तर पर 32.1% छात्राओं ने पढ़ाई छोड़ दी जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 18.39% था.”
शिक्षा मंत्री ने उस दौरान सदन में बताया था कि वर्ष 2017-18 में आठवीं कक्षा में 11,29,561 छात्राएं नामांकित थी. वहीं वर्ष 2018-19 में नौवीं कक्षा में 8,37,770 छात्राओं ने नामांकन लिया था. आंकड़े बताते हैं आठवीं से नौवीं कक्षा के बीच लगभग तीन लाख छात्राओं ने पढ़ाई छोड़ दी थी. वहीं वर्ष 2018-19 में 10,80,404 छात्राओं ने नामांकन लिया जो पिछले वर्ष से लगभग एक लाख कम हो गयी थी.
आंकड़े साफ़ बताते हैं कि सरकार की मुफ्त शिक्षा योजना भी लड़कियों को आगे की कक्षा में नामांकन लेने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रही है.
जीतन राम मांझी ने अपने कार्यकाल के दौरान एससी-एसटी छात्रों (SC-ST students) और सभी वर्गो की छात्राओं के लिए मुफ्त शिक्षा की घोषणा की थी. 25 जुलाई 2015 को सरकार के इस फैसले पर कैबिनेट की मुहर लगी थी. घोषणा में कहा गया था कि कॉलेज छात्राओं की सूची विश्वविद्यालयों को भेजेंगे और विश्वविद्यालय इसे शिक्षा विभाग को भेजेंगे. फिर शिक्षा विभाग अगले वित्तीय वर्ष में फंड जारी करेगा.
लेकिन विश्वविद्यालयों का कहना है कि सरकार के तरफ से पैसा नहीं दिया जा रहा है. जिसके कारण उन्हें मजबूरी में छात्राओं से फ़ीस लेनी पड़ती है.
राज्य सरकार छात्राओं को प्राथमिक से लेकर पीजी तक की शिक्षा मुफ्त में देने की बात करती है. इसके बावजूद छात्राओं से 10वीं से पीजी तक की कक्षाओं में पंजीकरण और नामांकन के लिए शुल्क लिया जाता है.