झारखंड के 27 प्रवासी मजदूर साउथ अफ्रीका के कैमरून में फंस गए थे. इन सभी 27 मजदूरों को सकुशल झारखंड वापस लाया गया है. बुधवार की सुबह सभी मजदूर गिरिडीह के पारसनाथ रेलवे स्टेशन उतरे. रोजगार के लिए विदेश गए इन सभी मजदूरों की खबर कंपनी ने लेना बंद कर दिया था, जिसके बाद दक्षिण अफ्रीका में इनके खाने पर भी संकट खड़ा हो गया था. वीडियो जारी कर मजदूरों ने वतन वापसी की गुहार लगाई थी. इन मजदूरों में से 4 गिरिडीह के, 5 हजारीबाग और 18 मजदूर बोकारो जिले के है.
बुधवार की सुबह मुंबई मेल ट्रेन से यह सभी पारसनाथ स्टेशन पहुंचे. जहां श्रम सचिव और डीसी ने मजदूरों का स्वागत किया. श्रम सचिव मुकेश कुमार ने बताया है कि मजदूरों का वीडियो आने के बाद विभाग ने तुरंत एक्शन लिया. सीएम हेमंत सोरेन खुद इस मामले के मॉनिटरिंग कर रहे थे. विदेश मंत्रालय ने भी कंपनियों से लगातार बात की. सरकार और विभाग के स्तर से लगातार संपर्क किया जा रहा था, जिसके परिणाम स्वरुप सभी मजदूर सकुशल वतन वापस आए हैं.
श्रम विभाग के सचिव ने आगे बताया कि इन सभी मजदूरों को राज्य सरकार की ओर से 25-25 हजार रुपए की सहायता राशि दी जाएगी.
मजदूरों के वतन वापसी के बाद हेमंत सूर्य ने भी अपने एक अकाउंट से जानकारी ताजा करते हुए बताया कि करीब 30 लख रुपए की राशि का भुगतान कर सभी मजदूरों को वापस लाया गया है सीएम ने अपने एक्स पर लिखा- अफ्रीका के कैमरून में फंसे झारखण्ड के अपने 27 लोगों की परेशानियों के बारे में जानकारी मिली थी, जिसके पश्चात झारखण्ड सरकार द्वारा पहल कर उन्हें लगभग कुल 30 लाख की बकाया राशि का भुगतान कराया गया और राज्य वापस लाया गया.
आज गिरिडीह में साथी मंत्रियों और गिरिडीह तथा गांडेय विधायक एवं पदाधिकारियों की उपस्थिति में प्रत्येक श्रमिक भाइयों को 25-25 हजार रुपए की सहायता राशि प्रदान की गयी. साथ ही सभी श्रमिक भाइयों से राज्य सरकार के संपर्क में सदैव रहने हेतु भी अपनी बात रखी. आपकी यह झारखण्ड सरकार, आपका यह भाई और बेटा सभी वर्गों की सहायता के लिए हमेशा संवेदनशीलता के साथ खड़ा है. आप सभी खुशहाल रहें, यही कामना करता हूँ.
जोहार!
सीएम ने एक्स पर मजदूरों का फोटो और वीडियो भी साझा किया, जिसमें वह मजदूरों से वीडियो कॉल पर बात कर हाल चाल ले रहे है.
बात दें कि मजदूरों ने वीडियो जारी कर बताया था कि जिस कंपनी में वह काम कर रहे थे, वह कोई सूध नहीं ले रही है. ठेकेदार जिन्होंने झारखंड से कैमरुन लाया, वह भी बात नहीं सुन रहा है. मजदूरों ने बताया था कि ना तो उनके पास खाने के लिए अनाज बचा है और ना ही कंपनी इसकी व्यवस्था कर रही है. कंपनी रिचार्ज के पैसे भी नहीं दे रही है. जिसके कारण घर वालों से भी संपर्क नहीं हो पा रहा. मजदूरों ने बताया कि वह सभी 29 मार्च को कैमरून पहुंचे थे.