जानिए क्या है टिकुली कला और इसका बिहार से क्या है रिश्ता?

टिकुली कला का इतिहास 2500 सौ साल पुराना है. साल 1982 में हुए एशियाड खेलों में भाग लेने वाले सभी 5,000 एथलीटों को आधिकारिक स्मृति चिन्ह के रूप में बिहार के टिकुली कला की कलाकृतियां उपहार में दी गयी थी.

New Update
टिकुली कला और बिहार

टिकुली कला और बिहार

टिकुली कला का इतिहास मुग़ल काल से जुड़ा हुआ हैं. मुग़ल काल में इस कला को खूब प्रोत्साहन दिया गया था. उस काल में महिलाएं अपने ललाट (माथे) के मध्य में सुनहरा गोलनुमा गहना पहनती थी, जिसे टिकुली कहा जाता था. उस काल में टिकुली का निर्माण कांच को पिघलाकर किया जाता था. जिसे सोने की पत्तियों और रंगों से सजाया जाता था.

Advertisment

टिकुली कला का इतिहास 2500 सौ साल पुराना है. हालांकि धीरे-धीरे 28वीं सदीं में इसमें बदलाव आया और टिकुली कला से जुड़े कारीगर अब टिकुली के उपर पेंटिंग बनाना शुरू कर दिए. मौर्य काल में पटना सिटी में रहने वाले हिन्दू-मुस्लिम कारीगर इस काम को करते थे.

मधुबनी कला की तरह टिकुली कला में भी राधा कृष्ण, शादी-विवाह की कलाकृतियां और फूल पत्तियां बनाई जाती हैं. लेकिन जब आप दोनों कलाकृतियों को सामने रखकर देखेंगे तो उसका अंतर आपको समझ में आएगा. टिकुली कला में बनाई जाने वाली पेंटिंग में बारीकियां ज़्यादा होती हैं.

साल 1982 में हुए एशियाड खेलों में भाग लेने वाले सभी 5,000 एथलीटों को आधिकारिक स्मृति चिन्ह के रूप में बिहार के टिकुली कला की कलाकृतियां उपहार में दी गयी थी. हालांकि 1984 के बाद राजनीतिक कारणों की वजह से सरकार की तरफ से कलाकारों को दी जाने वाली सहायता बंद कर दी गयीं. जिसके कारण टिकुली कला से जुड़े लोग काम छोड़कर चले गये और यह कला डाईंग आर्ट (मृत कला) की श्रेणी में आ गया.

Bihar Art and Culture Bihar Tikuli Art Tikuli Art and relation with Bihar Tikuli art