शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 तहत सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा उपलब्ध कराए जाने की बात कही गई है. इसका एक अवयव स्कूलों को सामान्य और दिव्यांग छात्रों के अनुकूल बनाए जाने की बात कहता है. समावेशी शिक्षा के तहत दिव्यांग छात्रों को सामान्य विद्यालय में नामांकन दिए जाने का प्रावधान किया गया है.
दिव्यांग छात्र किसी तरह सामान्य विद्यालयों में नामांकन तो ले लेते हैं, लेकिन वहां उन्हें पढ़ाने के लिए विशेष शिक्षक ही मौजूद नहीं होते है. सामान्य शिक्षक जिन्हें विशेष छात्रों को पढ़ाने का प्रशिक्षण नहीं है जैसे-तैसे दिव्यांग बच्चों को पढ़ाते हैं.
साल 2022 कि यू-डाइस रिपोर्ट के अनुसार राज्य भर में नेत्रहीन, श्रवण बाधित और मानसिक तौर पर दिव्यांग छात्र-छात्राओं की संख्या 1,22,887 है, जिन्हें पढ़ाने के लिए राज्य भर में मात्र 850 विशेष शिक्षक ही मौजूद हैं. इसका कारण राज्य में साल 2012 से विशेष शिक्षकों की नियुक्ति ना होना.
साल 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार एक से पांचवी कक्षा तक की कक्षा में 10 दिव्यांग बच्चों पर एक शिक्षक होना अनिवार्य है. वहीं छठी से 12वीं तक की कक्षा में 15 दिव्यांग बच्चों पर एक शिक्षक होना अनिवार्य है. लेकिन बिहार में मात्र 2,343 स्कूल ही ऐसे है जहां इस मानक के अनुसार विशेष शिक्षकों की नियुक्ति की गयी है. शेष स्कूलों मे दिव्यांग छात्रों की पढ़ाई अप्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा ही कराई जाती है.
वहीं विशेष शिक्षा परियोजना परिषद के आंकड़ों के अनुसार पिछले पांच सालों में लगभग पचास हजार दिव्यांग बच्चों का नामांकन राज्य के स्कूलों में हुआ है.