बिहार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक के खिलाफ कुछ दिनों पहले बिहार विधान परिषद के 25 सदस्यों ने एक मोर्चा खोला था. उसे मोर्चे के तहत सदस्यों के प्रतिनिधिमंडल ने 19 दिसंबर को राज्यपाल से मुलाकात कर अपना ज्ञापन सौंपा था. जिसमें सदस्यों ने केके पाठक के काम करने के रवैये पर कड़ा विरोध जताया था. राज्यपाल को सौंपें ज्ञापन के बाद राजभवन की ओर से इस पर एक्शन लिया गया है.
राज्य में शैकक्षणिक माहौल खराब
राजभवन ने शिक्षा विभाग को चिट्ठी लिखकर इस पूरे मामले पर केके पाठक के एक्शन पर अपनी कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है. मंगलवार को राज्यपाल के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चोंग्थू ने मुख्य सचिव को उच्च शिक्षा को लेकर पारित हुए आदेशों का हवाला देते हुए पत्र लिखा है. पत्र में कहा गया है कि शिक्षा विभाग के कुछ फ़ैसले राज्य में शैकक्षणिक माहौल को खराब कर रहे हैं. इसके साथ ही प्रधान सचिव ने लिखा है कि राज्यपाल ने मुझे तत्काल इस मामले पर कार्यवाही करने को कहा है.
राज्यपाल के प्रधान सचिव ने शिक्षा विभाग के सचिव आमिर सुबहानी को तीन पत्रों का हवाला दिया है.
एमएलसी का रुका था वेतन
दरअसल केके पाठक के एक आदेश के बाद सत्ताधारी दल के एमएलसी संजय कुमार सिंह का वेतन कुछ दिनों पहले ही रोक दिया गया था. इस चीज से नाराज होकर एमएलसी पहले राज्य के मुखिया नीतीश कुमार के शरण पहुंचे, लेकिन उनका निवारण न होने के बाद वह राज्यपाल की शरण में पहुंचे थे.
बीते दिन शिक्षा विभाग की ओर से विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों की उपस्थिति समेत कई नई गाइडलाइंस भी जारी किया गया था. इस आदेश का शिक्षक संघ ने विरोध किया था. एमएलसी संजय सिंह भी इसी शिक्षक संघ के महासचिव हैं. संघ का यह विरोध केके पाठक को बिल्कुल रास नहीं आया और उन्होंने संजय सिंह और शिक्षक संघ (फुटाब) के कार्यकारी अध्यक्ष बहादुर सिंह के वेतन पर रोक लगा दी थी. संजय सिंह के पेंशन पर भी रोक लगा दी गई थी.
इस आदेश के बाद विधायक दल राज्यपाल के पास फरियादों का ढेर लगाने के लिए राजभवन पहुंचे. केके पाठक के आक्रामक फरमानों के खिलाफ एमएलसी दलों ने केके पाठक के आदेशों को तानाशाही फरमान बताया था. बताया जा रहा है कि इस दल में एनडीए के भी कुछ विधायक शामिल थे. राज्यपाल के सामने एमएलसियों और शिक्षकों ने अखबारों और मीडिया के सामने बोले जाने पर प्रतिबंध लगाए जाने वाली बात भी राज्यपाल के सामने रखी थी. शिक्षक संघ ने कहा था कि यह सब यह संविधान के अनुच्छेद 19, 20, 21 के अधीन है. यह मौलिक अधिकारों का हनन है.
एक्शन लेते हुए राज्यपाल ने इन आदेशों को असंवैधानिक और विश्वविद्यालय अधिनियम के खिलाफ है.