अनुसूचित जातियों में भी कुछ जातियां शैक्षणिक और आर्थिक रूप से ज्यादा पिछड़ी हुई है. मुसहर समाज उनमें से एक हैं. समाज में उन्हें छुआछूत और भेदभाव का सामना करना पड़ता हैं. मुसहर जाति के लगभग 96 फीसदी लोग भूमिहीन और जीवन यापन के लिए दूसरे के खेतों में मजदूरी करते हैं.
राज्य महादलित आयोग के अनुसार बिहार में मुसहर जाति की आबादी लगभग 22 लाख हैं. वहीं बीते वर्ष जारी जातिगत जनगणना रिपोर्ट के अनुसार बिहार में मुसहरों की आबादी 40.35 लाख है जो बिहार की कुल आबादी का 3.08 फीसदी है. अनुसूचित जाति में मुसहर तीसरी सबसे बड़ी आबादी होने के बावजूद आज भी सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहद पिछड़े हुए हैं.
सामाजिक पिछड़ेपन के कारण इनके बच्चे शिक्षा से कोसो दूर हैं. सरकार उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए विशेष विद्यालय और छात्रवृत्ति योजना भी चला रही है. लेकिन आज भी मुसहर समाज के बच्चे उच्च शिक्षा से कोसो दूर हैं. महादलित आयोग के अनुसार समुदाय की साक्षरता दर मात्र 9.8 फीसदी है.
अनुसूचित जाति और जनजाति से आने वाले छात्रों के लिए सरकार अलग से छात्रवृत्ति योजनायें चलाती है. ‘विद्यालय छात्रवृत्ति योजना’ के तहत कक्षा एक से चार के छात्रों को 50 रुपए, कक्षा पांच से छह के छात्रों को 100 रुपए, कक्षा सातवीं से 10वीं के छात्रों को 150 रुपए प्रति माह के हिसाब से एकमुस्त दिए जाते हैं. वहीं छात्रावास में रहने वाले कक्षा एक से 10 तक छात्रों को 250 रुपए की राशि प्रतिमाह के दर से एकमुश्त दी जाती है.
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