बिहार में 22 जातियां अनुसूचित जाति में आती हैं. साल 2005 में सत्ता संभालने के बाद नीतीश कुमार ने अनुसूचित जातियों में व्याप्त पिछड़ेपन को दूर करने का प्रयास शुरू किया. इसी क्रम में साल 2007 में महादलित आयोग का गठन किया. आयोग की सिफ़ारिश पर इनका वर्गीकरण करते हुए चार जातियों को दलित में और 18 को महादलित कैटेगरी में डाल दिया गया.
इसके बाद महादलित समुदाय की जातियों के उत्थान के लिए विभिन्न योजनाएं जैसे- शिक्षा के लिए अलग से एजुकेशन लोन, छात्रवृत्ति, पोशाक, रहने के लिए आवास जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई. हालांकि आगे चलकर सरकार ने शेष चार जातियों धोबी, पासी, चमार और पासवान को भी महादलित में शामिल कर दिया. इस तरह बिहार में सभी 22 दलित जातियां ‘महादलित’ की कैटेगरी में आ गई.
अनुसूचित जातियों में भी कुछ जातियां शैक्षणिक और आर्थिक रूप से ज्यादा पिछड़ी हुई है. मुसहर समाज उनमें से एक हैं. समाज में उन्हें छुआछूत और भेदभाव का सामना करना पड़ता हैं. मुसहर जाति के लगभग 96 फीसदी लोग भूमिहीन और जीवन यापन के लिए दूसरे के खेतों में मजदूरी करते हैं.
राज्य महादलित आयोग के अनुसार बिहार में मुसहर जाति की आबादी लगभग 22 लाख हैं. वहीं बीते वर्ष जारी जातिगत जनगणना रिपोर्ट के अनुसार बिहार में मुसहरों की आबादी 40.35 लाख है जो बिहार की कुल आबादी का 3.08 फीसदी है. अनुसूचित जाति में मुसहर तीसरी सबसे बड़ी आबादी होने के बावजूद आज भी सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहद पिछड़े हुए हैं.
सामाजिक पिछड़ेपन के कारण इनके बच्चे शिक्षा से कोसो दूर हैं. सरकार उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए विशेष विद्यालय और छात्रवृत्ति योजना भी चला रही है. लेकिन आज भी मुसहर समाज के बच्चे उच्च शिक्षा से कोसो दूर हैं. महादलित आयोग के अनुसार समुदाय की साक्षरता दर मात्र 9.8 फीसदी है.
उच्च शिक्षा से बच्चे दूर
बेगूसराय जिले के छौराही प्रखंड स्थित मालपुर पंचायत के नवसृजित प्राथमिक विद्यालय, में 73 छात्र नामांकित हैं. पालमारपुर मुसहरी टोल के इस विद्यालय को मुख्य रूप से मुसहर समुदाय के बच्चों के लिए बनाया गया है. ताकि समाज के बच्चे प्राथमिक यानि एक पांचवी तक शिक्षा ग्रहण कर आगे उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित हों. लेकिन यहां से पढ़कर निकलने वाले छात्र या तो पांचवी के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं या किसी तरह आठवी नौवीं तक पढ़ाई कर पाते हैं.
विद्यालय के प्रधानाध्यापक से मिली जानकारी के अनुसार बीते वर्ष इस स्कूल से पढ़कर निकले एक छात्र ने दसवीं की परीक्षा पास की थी. विद्यालय के प्रधानाध्यापक राजीवा कुमार सिंह बताते हैं “हमलोग काफी प्रयास करते हैं कि बच्चे रोज स्कूल आयें. अभी मेरे विद्यालय में 73 बच्चे नामांकित है सभी मुसहर समाज के हैं. लेकिन कभी 62 तो कभी 65 बच्चे की स्कूल आते हैं. हम माता-पिता को स्कूल बुलाते हैं उन्हें समझाते हैं लेकिन काम का बहाना बनाकर बच्चे अनुपस्थित हो जाते हैं. और जो बच्चे स्कूल आ भी रहे हैं वह समय से दो-ढ़ाई घंटे लेट पहुंचते हैं.”
राजीवा कुमार का कहना है कि, "माता-पिता के सजग ना होने के कारण बच्चे पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं. वहीं आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण माता-पिता बच्चों को मिलने वाली राशि पारिवारिक कामों में खर्च कर लेते हैं. जिसके कारण पठन-पठान में उपयोग होने वाली वस्तुएं बच्चों के पास नहीं रहती हैं".
राजीवा कुमार से मिली जानकारी के अनुसार इस वर्ष विद्यालय के 52 बच्चों को विद्यालय छात्रवृत्ति योजना का लाभ मिला है.
विद्यालय छात्रवृत्ति योजना
स्कूल में बच्चों की उपस्थिति 100 फीसदी नहीं रहने की स्थिति तब है जब सरकार छात्रों को, स्कूल में मिड डे मील, किताब, स्कूल ड्रेस और प्री एवं पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप जैसी योजनाओं का लाभ दे रही है.
अनुसूचित जाति और जनजाति से आने वाले छात्रों के लिए सरकार अलग से छात्रवृत्ति योजनायें चलाती है. ‘विद्यालय छात्रवृत्ति योजना’ के तहत कक्षा एक से चार के छात्रों को 50 रुपए, कक्षा पांच से छह के छात्रों को 100 रुपए, कक्षा सातवीं से 10वीं के छात्रों को 150 रुपए प्रति माह के हिसाब से एकमुस्त दिए जाते हैं. वहीं छात्रावास में रहने वाले कक्षा एक से 10 तक छात्रों को 250 रुपए की राशि प्रतिमाह के दर से एकमुश्त दी जाती है.
चूंकि अनुसूचित जाति में आने वाली मुसहर और भुइयां जाति अपने समूह में ज्यादा पिछड़ी हुई जातियां हैं, इसलिए सरकार ने इनके लिए छात्रवृत्ति की राशि बाकि जातियों से अधिक तय कर रखी है. मुसहर और भुइयां समुदाय में शिक्षा के प्रसार के लिए कक्षा एक से छह तक के छात्रों को प्रति माह 100 रुपये की छात्रवृत्ति दी जाती है.
अनुसूचित जाति और जनजाति विभाग में कार्यरत डीबीईओ राणा बैद्यनाथ कुमार सिंह कहते हैं “अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों को प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप दिया जाता है जिसमें अलग अलग वर्ग में अलग राशी है लेकिन इसके पैर्लल भुइयां और मुसहर समाज के लिए पहली कक्षा से ही 100 रूपए देने का नियम है. ताकि बच्चे स्कूल आने के लिए आकर्षित हों."
साल 2017 से भुइयां और मुसहर समाज को मिलने वाली छात्रवृत्ति और प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना शिक्षा विभाग द्वारा चलाया जा रहा है. इससे पहले यह समाज कल्याण विभाग के अधीन था. 2018 से पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप की योजना भी शिक्षा विभाग के द्वारा ही संचालित होती है.
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 में सरकार ने बताया कि वर्ष 2022-23 में इस कार्यक्रम के लिए योजना मद के रूप में 11.30 करोड़ रुपए और स्थापना एवं समर्पित व्यय के लिए 1.50 करोड़ रुपए स्वीकृत किए गए थे. वहीं वर्ष 2023-24 में योजना के व्यय के लिए 13.88 करोड़ रुपए और स्थापना एवं समर्पित व्यय के लिए 0.60 करोड़ रुपए निर्धारित किए गए हैं.
विद्यालय छात्रवृत्ति योजना का लाभ पाने के लिए छात्रों को विद्यालय में 75 फीसदी उपस्थिति दर्ज कराना अनिवार्य है. लेकिन जागरूकता के अभाव और पारिवारिक मजबूरियों के कारण इस वर्ग बच्चे स्कूल में अनुपस्थित रहते हैं.
बेगूसराय जिले के जिला शिक्षा पदाधिकारी राजदेव राम के अनुसार "विद्यालय अपने यहां 75 फीसदी उपस्थिति दर्ज कराने वाले बच्चों की सूचि भेजते हैं. जिसके बाद डीबीटी के माध्यम से राशि बच्चों के खाते में भेज दी जाती हैं. इस वर्ष अक्टूबर-नवंबर माह में लिस्ट लिया जाएगा जिसके बाद राशी भेजी जाएगी."
राज्य में इस योजना के तहत कितने बच्चे लाभांवित हो रहे हैं इसकी जानकारी के लिए हमने प्राथमिक शिक्षा निदेशक मिथिलेश मिश्रा से संपर्क करने का प्रयास किया लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी है. वहीं राज्य में मुसहर जाति के लिए कितने विशेष विद्यालय हैं इसकी जानकारी भी नहीं मिल सकी है.
शिक्षा में पीछे
बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना में जातियों के मध्य शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति का भी सर्वे कराया था. जिसके अनुसार शिक्षा और आय के क्षेत्र में मुसहर समाज अनुसूचित जाति वर्ग की अन्य जातियों से काफी पिछड़ी हुई हैं.
आंकड़ों के अनुसार मुसहर समाज में कक्षा एक से पांचवी तक पढ़े लोगों की आबादी 9.47 लाख है जो उनकी कुल आबादी का 23.47 फीसदी है. लेकिन छठी से आठवीं और उसके बाद मैट्रिक और इंटरमीडिएट तक की पढाई करने वाले लोगों की संख्या काफी कम है.
छठी से आठवीं तक की पढ़ाई करने वाले लोगों की संख्या 3.22 लाख है जो उनकी संख्या का 7.99 फीसदी है. वहीं मैट्रिक पास लोगों की संख्या मात्र 98,420 है जो उनकी आबादी का मात्र 2.4 फीसदी है. इंटरमीडिएट पास लोगों की संख्या 31,184 पाई गयी जो इनकी आबादी का महज 0.77 फीसदी है. अगर मुसहर समाज के लोगों की सरकारी नौकरी में उपस्थिति की बात की जाए तो इस जाति से मात्र 10,615 लोग ही सरकारी नौकरियों में है.
मुसहर समाज आर्थिक तौर पर काफी पिछड़ा हुआ है. समाज के 55 फीसदी लोग महीने के छह हजार से भी कम कमाते हैं. ऐसे में परिवार का ध्यान बच्चों की शिक्षा से ज्यादा घर चलाने के लिए पैसे कमाने पर होता है. छोटे बच्चे किसी तरह प्राथमिक शिक्षा तो प्राप्त कर लेते हैं लेकिन उच्च शिक्षा की राह में परिवार की आर्थिक मज़बूरी बाधा बन जाती है.