भारत लोकतांत्रिक देश है. इसके लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए यह आवशयक है कि छात्र विवि स्तर से ही इसकी मजबूती को महसूस करें. उनमें अच्छे और बुरे में चुनाव करने की समझ विकसित हो. गलत के विरोध में एकजुट होकर सवाल करने की हिम्मत विकसित हो. छात्रसंघ चुनाव विश्वविद्यालयी छात्रों को यह मौका देता है.
छात्रसंघ चुनाव पूरे भारतीय राजनीति को प्रभावित करता है. बिहार और देश की राजनीति में छात्र नेताओं की अहम भूमिका रही है. बिहार के राजनीतिक पटल के केंद्र बिंदु आज भी वर्तमान सीएम नीतीश कुमार और पूर्व सीएम लालू यादव है. इन दोनों अपना राजनीतिक सफर की शुरुआत पटना विश्वविद्यालय के छात्र राजनीति से ही की थी. जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन से निकले ये दोनों नेता छात्र राजनीति के सशक्त उदहारण है.
आजादी के पूर्व जितने भी आंदोलन हुए उन सबमें छात्रों के सहयोग और उनके मुखर आवाज को उस समय के नेताओं ने काफी महत्वपूर्ण बताया था. महात्मा गांधी, सुभाषचन्द्र बोस, लाला लाजपत राय, चंद्रशेखर आजाद, जवाहरलाल नेहरु जैसे नेताओं ने हमेशा छात्रों को सक्रीय राजनीति में भाग लेने के लिए प्रेरित किया है.
जैसे लोकतंत्र की सफलता के लिए शिक्षा आवश्यक है. वैसे ही लोकतांत्रिक राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए छात्र राजनीति आवश्यक है.
लिंक्डो कमिटी के नियम के अनुसार हर साल छात्र संघ का चुनाव हर साल होने चाहिए. इसका नियम कहता है कि बिना छात्र संघ चुनाव हुए विश्वविद्यालय को नैक ग्रेडिंग भी नहीं दी जा सकती है. मगर, पटना यूनिवर्सिटी में पिछले दो सालों से छात्र संघ चुनाव नहीं हुए हैं. अंतिम चुनाव नवंबर 2022 में हुए थे. छात्रों का कहना है कि चुनाव के अभाव में छात्र हित से जुड़े मुद्दे, कैंपस की समस्याएं, एकेडमिक गतिविधियों से जुड़े मुद्दों पर विवि प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है.