आखिर क्यों झारखंड के मूलनिवासियों से विकास है दूर?

झारखंड की हकीकत, रांची, जमशेदपुर, बोकारो और तीन-चार बड़े शहरों को छोड़कर, तकलीफ़ों से भरी हुई है. जनजातीय बहुल सिमडेगा जिले में बच्चों के लिए ठीक से आंगनबाड़ी केन्द्र भी मौजूद नहीं है.

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मूलवासी सुविधाओं से कोसों दूर

मूलवासी सुविधाओं से कोसों दूर

झारखंड राज्य का निर्माण मूलनिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए ही हुआ था. 15 नवंबर 2000 को बिहार के छोटा नागपुर हिस्से को अलग किया गया और उसे नाम दिया गया झारखंड. झारखंड देश का 28वां राज्य बना. जिस समय झारखंड का निर्माण हुआ था, उस समय जनजातीय समुदाय को काफ़ी उम्मीद थी कि इस राज्य निर्माण से उनकी तकलीफ़ें दूर होंगी.

झारखंड की हकीकत, रांची, जमशेदपुर, बोकारो और तीन-चार बड़े शहरों को छोड़कर, तकलीफ़ों से भरी हुई है. राजधानी रांची से लगभग 3 घंटे की दूरी पर सिमडेगा जिले में लगभग 6 लाख की आबादी है. यहां 70.8% आबादी जनजातीय समुदाय की है. इस जिले की 90% से अधिक आबादी गांव में रहती है. जनजातीय बहुल इस जिले में बच्चों के लिए ठीक से आंगनबाड़ी केन्द्र भी मौजूद नहीं है.

केंद्र सरकार के साल 2024-25 के बजट में 'सक्षम आंगनबाड़ी' और पोषण 2.0 के लिए 21,200 करोड़ रूपए का प्रावधान रखा गया है. इसका उद्देश्य आंगनबाड़ी का विकास कर महिलाओं और बच्चों में फैले कुपोषण से लड़ना है. 

राज्य के दूसरे इलाकों में जनजातीय समुदाय के लोग पानी के लिए भी काफी मशक्कत करते हैं. राज्य के मूलवासी सैकड़ों कदम चलकर पानी लाते हैं.

साल 2023 में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जल जीवन मिशन (हर घर नल का जल) योजना की समीक्षा करते हुए कहा था कि उनकी सरकार से पहले राज्य में केवल 5% आबादी के पास स्वच्छ पानी की पूर्ति थी. जबकि उनके 3 साल के कार्यकाल में ये संख्या बढ़कर 28.73% हो चुकी है. मुख्यमंत्री के अनुसार राज्य के 630 गांव में पानी की पूर्ति 100% की जा चुकी है. 

वहीं केंद्र सरकार ने साल 2024 में हर घर स्वच्छ पेयजल पहुंचाने का संकल्प करते हुए जल जीवन मिशन योजना में राज्य को मिलने वाली राशि में चार गुना की बढ़त भी की थी. मगर यह सभी सुविधाएं 24 साल‌‌ पुराने राज्य के कई जिलों में नहीं पहुंची है.

पूरा लेख पढ़ें- झारखंड दिवस: आदिवासी राष्ट्रपति के बाद भी आदिवासियों से परहेज़ क्यों?

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