विलुप्त होती जा रही हैं आदिवासी भाषाएं, चुनाव के बाद इनका बंद हो जाता है संबोधन

‘हो’ भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने को लेकर आदिवासी समुदाय लंबे समय से आंदोलन कर रहा है. राज्य में अधिकतार भाषाएं विलुप्त होने की कगार पर हैं.

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विलुप्त हो रही हैं आदिवासी भाषाएं

विलुप्त हो रही हैं आदिवासी भाषाएं

हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने पीएम मोदी के 10 साल के कार्यकाल की उपलब्धियों को आम जनता तक पहुंचाने के लिए नागपुरी भाषा में ‘प्रचार गीत’ बनाया है. झारखंड में नागपुरी भाषा आम बोलचाल के लिए इस्तेमाल की जाती है. झारखंड की फिल्में खोरठा, नागपुरी, सदानी, मुंडारी, खरिया और मगही भाषा में बनाई जाती है. 

चुनावी राजनीतिक अभियानों के दौरान भाषणों-प्रचारों में झारखंड की स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल करने वाले नेता-मंत्री चुनाव के बाद इन भाषाओं के संरक्षण के लिए कदम क्यों नहीं उठाते. राज्य में तुरी, बिरिजिया, बिरहोर, असुर और मालतो जैसी भाषा गायब होने के कगार पर है. इन भाषाओं को बोलने वाले लोगों की संख्या लगातार कम हो रही है.

‘हो’ भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किये जाने को लेकर आदिवासी समुदाय लंबे समय से आंदोलन कर रहा है. बीते वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर लोगों ने पोस्टकार्ड लेखन अभियान की शुरुआत की, जिसमें लोगों ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व गृहमंत्री को पोस्टकार्ड भेजा.

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