समेकित बाल विकास परियोजना(आईसीडीएस) मुख्य रूप से 0-6 वर्ष के बच्चों, किशोर लड़कियों, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं से जुड़ी योजनाओं को लागू करता है. इन योजनाओं का उद्देश्य पोषण और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार करना, मृत्यु दर, रुग्णता, कुपोषण, बच्चों के स्कूल छोड़ने के दर में कमी लाना है.
आईसीडीएस के तहत 14 से 18 वर्ष कि किशोरियों को किशोरी बालिका योजना (सबला) के तहत पोषक आहार उपलब्ध कराया जाता है. इस योजना में उन बच्चियों को शामिल किया जाना है जो किसी कारणवश स्कूल नहीं जाती हैं.
बिहार के 13 जिलों- पटना, गया, अररिया, औरंगाबाद, बांका, नवादा, बेगूसराय, जमुई, कटिहार, खगड़िया, पूर्णिया, मुजफ्फरपुर और सीतामढ़ी में वर्ष 2023 में यह योजना शुरू की गयी है.
आईसीडीएस ने जिलावार कुपोषित किशोरियों की पहचान कर उन्हें योजना से जोड़ने का काम शुरू किया है. 13 जिलों से अब तक 1,78,053 कुपोषित किशोरियों की पहचान की गयी है जिनमें एक लाख 71 हजार किशोरियों का आधार सत्यापन किया जा चुका है.
वर्तमान में राज्य में 46 हज़ार बच्चियां योजना से जुड़ी हैं. जिन्हें प्रत्येक माह 25 दिनों के हिसाब से सूखा राशन दिया जाता है. इसके अलावा आयरन और फोलिक एसिड की गोली, स्वास्थ्य जांच, स्वास्थ्य शिक्षा, माहवारी प्रबंधन और निजी स्वास्थ्य का ध्यान रखने संबंधी जानकारी उपलब्ध कराई जाती है.
सूखे राशन के तौर पर लड़कियों को महीने में सावा दो किलो चावल और दाल दिया जाता है. इसके अलावे 250-300 ग्राम सोयाबीन दिया जाता है. इसके अलावे सप्ताह में एक आयरन की गोली दी जाती है. मगर क्या केवल चावल दाल से किशोरियों को समुचित पोषण मिल सकेगा?
योजना के तहत किशोरियों को जीवन यापन के लिए कौशल विकास का प्रशिक्षण भी दिया जाना है. लेकिन योजना से जुड़ी सेविका कहती है अभी इस तरह की कोई जानकारी नहीं है कि बच्चियों को ट्रेनिंग के लिए कहीं भेजना है और ना ही उनके सेंटर पर ऐसी कोई सुविधा है.