बीते कुछ वर्षों में रामनवमीं और अन्य धार्मिक जुलूसों के दौरान होने वाली घटनाओं में हिंसा का एक समान पैटर्न देखने को मिलता है. जिसमें धर्म विशेष और समुदाय विशेष के लोगों को टार्गेट कर डीजे पर भड़काऊ गाने बजाए जाते हैं. धार्मिक जुलूस जानबुझकर ऐसे इलाकों से ले जाया जाता है जहां समुदाय विशेष के लोग रहते हों. उन्हें संबोधित करते हुए आपत्तिजनक नारे लगाए जाते हैं. ऐसे नारे लगाने वाले लोगों में समाज का युवा वर्ग सबसे पहली पंक्ति में नजर आता है.
वर्तमान परिदृश्य में समुदायों, खासकर युवाओ में दूसरे समुदाय के प्रति नफरत की भावना बढ़ती जा रही है जो भारत के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं है.
बिहार में 2017 में मूर्ति विसर्जन के दौरान नवादा, औरंगाबाद, दरभंगा, भागलपुर, मुंगेर, रोसड़ा, सिवान और गया जैसे शहरों में हिंसा भड़की थी. उस समय राज्य में नीतीश कुमार बीजेपी के साथ सरकार में थे.
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में बिहार में सांप्रदायिक हिंसा की 270 से ज़्यादा घटनाएं हुई थी. जबकि इससे पहले 2012 में राज्य में सांप्रदायिक हिंसा की 50 घटनाएं हुई थी. रिपोर्ट में दावा किया गया था कि नीतीश कुमार ने, जब से बीजेपी के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई है, राज्य में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है.