किसी जमाने में आईएस, आईपीएस और उच्च पदों पर पहुंचने वाले छात्रों का गढ़ माना जाने वाला पटना यूनिवर्सिटी का हॉस्टल आज जातीयता, धार्मिकता और अपराधीकरण के कारण चर्चा में बना रहता है. आए दिन नदवी, इकलबाल, जैक्शन और मिंटो हॉस्टल के छात्रों के बीच मारपीट की घटनाएं होती रहती है.
दिसंबर की शुरूआती हफ्ते में हुई बमबाजी और गोलीबारी की घटना के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने पटना कॉलेज कैंपस के चार हॉस्टल नदवी, इकलबाल, जैक्शन और मिंटो को प्रशासन ने सील कर दिया था. इस छात्रावास में फिलहाल छात्र नहीं रह रहे है जबकि पटना यूनिवर्सिटी के अन्य हॉस्टल खुले हुए हैं.
ऐसा नहीं है कि मारपीट की घटना के बाद पहली बार हॉस्टल को बंद किया गया है. बीते साल जून में भी गोलीबारी और बमबाजी के बाद हॉस्टल सील कर दिए गए थे.
ग्रामीण परिवेश के गरीब छात्रों को होती है परेशानी
पटना यूनिवर्सिटी की पहचान बिहार में आज भी अच्छे विश्वविद्यालयों में की जाती है. बिहार के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के छात्र यहां उच्च शिक्षा की चाह में आते हैं. सक्षम छात्र कॉलेज में नामांकन के बाद अपने रहने का इंतजाम बाहरी लॉज या कमरों में कर लेते हैं लेकिन वैसे छात्र जो सक्षम नहीं हैं वो कॉलेज के छात्रावास में ही रहना चाहते हैं.
बाहरी कमरों की तुलना में कॉलेज के छात्रावास काफी किफायती होते हैं. जहां बाहर रहने पर एक कमरे का किराया 3500 से 5000 के बीच होता है. वहीं कॉलेज छात्रावास में पुरे साल रहने का शुल्क मात्र 1700 से 2700 रुपए लिया जाता है.
हॉस्टल बंद होने के कारण छात्रों के सामने रहने की बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है. 48 घंटे के अन्दर सामान के साथ हॉस्टल छोड़ने के नोटिस के बाद छात्र परेशानी में आ गए. छात्र बताते हैं उन्हें अपने रिश्तेदारों और दोस्तों के यहां शरण लेना पड़ा. यहां तक कि जिन छात्रों को कहीं आसरा नहीं मिला वे गंगा किनारे घाटों पर रात गुजारने लगे. लेकिन ठंढ बढ़ने के बाद छात्र पढ़ाई छोड़ अपने गांव लौट गए.
छात्र संगठन नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) से छात्रसंघ का चुनाव लड़ चुके शास्वत शेखर पटना यूनिवर्सिटी के खराब हॉस्टल का जिम्मेवार विवि प्रशासन को बताते हैं. शास्वत कहते हैं, “हॉस्टल की बदहाल स्थिति का जिम्मेवार केवल विश्वविद्यालय प्रशासन है. जब हॉस्टल को बंद करने या खाली करवाने का अधिकार विवि के पास है तो उसे सही ढ़ंग से चलाने की जिम्मेवारी कौन लेगा? केवल छात्रों के ऊपर आरोप मढ़कर हॉस्टल पर बार-बार ताला जड़ देना कहां से उचित है.”
पटना यूनिवर्सिटी के पूर्ववर्ती छात्र विकास यादव अपने छात्रावास के दिनों की घटना को याद करते हुए बताते हैं “मैं पीजी करने के दौरान सैदपुर हॉस्टल में रहता था. सैदपुर हॉस्टल में भूमिहार जाति का प्रभुत्व है. मैं यादव जाति से आता हूं फिर भी सैदपुर हॉस्टल में रहता था. चूंकि मैं पीजी का छात्र था इस हिसाब से सीनियर भी था और मेरे क्लास में पढ़ने वाले कई छात्र जो भूमिहार जाति से ही आते थे, उनसे मेरी अच्छी दोस्ती थी. जिसके कारण मुझे कभी जातियता के आधार पर परेशानी नहीं हुई. लेकिन यूजी के जूनियर छात्रों के साथ छींटाकसी होना आम बात था.”
बिहार और तमिलनाडु के पूर्व डीजीपी रहे गुप्तेश्वर पांडे, बीके रवि, आचार्य किशोर कुणाल और उनके जैसे अनेकों छात्र पटना यूनिवर्सिटी के इन्हीं हॉस्टलों में रहा करते थे. तब इन हॉस्टल की पहचान टॉपर और एकेडमिक सफलता के लिए हुआ करती थी. वहीं देश और राज्य को राजनेता, डिप्लोमेट, प्रशानिक और पुलिस पदाधिकारी के साथ-साथ सचिव स्तर के अधिकारी भी इसी पटना विश्वविद्यालय के छात्र रह चुके हैं.
वहीं बिहार और देश की राजनीति में मुख्य पात्र बने रहने वाले लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी और रविशंकर प्रसाद जैसे बड़े नेता भी पटना विवि के छात्र रहे हैं.
जातीयता के आधार पर बनते हॉस्टल
पटना यूनिवर्सिटी के कुछ हॉस्टलों में बीते कई दशकों से छात्रों को जाति और धार्मिक पहचान के आधार पर जगह मिलती रही है. हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन और छात्र इससे इंकार करते है. जुलाई 2023 को हुई बमबाजी के बाद पटना कॉलेज के प्राचार्य और छात्र संगठनों के बीच हुई बैठक में हॉस्टल में जातीयता समाप्त करने के लिए विभिन्न सुझावों पर विचार किया गया था. इसमें हॉस्टल के नाम बदलने पर भी विचार किया गया.
बैठक में पटना कॉलेज के हॉस्टल मिंटो, जैक्सन और इकबाल के नाम बदलकर हॉस्टल संख्या 1, 2 और 3 करने का सुझाव रखा गया लेकिन छात्रों ने इसे मानने से इंकार कर दिया. जबकि हॉस्टल से जातीय और धार्मिक भेदभाव को हटाने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन को छात्रों के समर्थन की आवश्यकता है.
अभी पटना यूनिवर्सिटी में कुल 25 हॉस्टल हैं. इनमें लगभग एक हजार छात्र-छात्राएं रहते हैं. इनमें से पटना कॉलेज में तीन, साइंस कॉलेज में पांच, मगध महिला कॉलेज में तीन और लॉ कॉलेज में एक हॉस्टल है. इसके साथ ही बीएन कॉलेज में दो, पटना ट्रेनिंग कॉलेज में दो, आर्ट एंड क्राफ़्ट कॉलेज में एक, यूनिवर्सिटी कैम्पस में पांच, पीजी और छात्राओं के लिए तीन हॉस्टल हैं.
इसके अलावा आजादी के पूर्व 1941 में कुर्मी हितकारिणी न्यास द्वारा खोला गया पटेल हॉस्टल है, अवधिया कुर्मी छात्रों के लिए खोला गया था. हालांकि आगे चलकर, साल 1970 में इसे सभी कुर्मी छात्रों के लिए खोल दिया गया.
हॉस्टल के जातीय पैटर्न देखने पर बीएन कॉलेज भूमिहार बहुल, पीजी रानीघाट यादव बहुल है. इसके साथ ही इकबाल हॉस्टल में सिर्फ मुस्लिम छात्रों और पटेल हॉस्टल में सिर्फ कुर्मी जाति के छात्र रह सकते हैं. वहीं, मिंटो और जैक्सन हॉस्टल में दलित और पिछड़े वर्गों से आने वाले छात्र ज्यादा संख्या में रहते आए हैं.