विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने बिहार के 15 विश्वविद्यालयों को डिफॉल्टर घोषित कर दिया है. यूजीसी रेगुलेशन 2023 के मुताबिक डिफॉल्टर घोषित होने वाले विश्वविद्यालयों को अब केन्द्रीय अनुदान नहीं दिया जाएगा. इसके साथ ही राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान समेत भारत सरकार द्वारा मिलने वाले विभिन्न अनुदानों पर भी यूजीसी रोक लगा सकती है.
यूजीसी रेगुलेशन- 2023 के नियमों का पालन नहीं करने के कारण यूजीसी ने देशभर के 421 विश्वविद्यालयों को डिफाल्टर लिस्ट में डाला है. दरअसल, बीते दिसंबर माह में ही यूजीसी ने डिफॉल्टर घोषित होने वाले विश्वविद्यालयों को नोटिस दिया था. यूजीसी ने 5 दिसंबर को विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को पत्र भेजकर 31 दिसंबर तक लोकपाल नियुक्त किए जाने की हिदायत दी थी. लेकिन बार-बार हिदायत के बाद भी विश्वविद्यालयों ने आदेश पत्र पर ध्यान नहीं दिया.
अप्रैल 2023 में जारी हुआ था ‘लोकपाल’ नियुक्ति का आदेश
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 11 अप्रैल 2023 को छात्रों की शिकायतों का निवारण करने के लिए रेगुलेशन (विनियम) जारी किया गया था. रेगुलेशन के अन्दर 'छात्र शिकायत निवारण समिति (एसजीआरसी)' और 'लोकपाल' नियुक्ती संबंधी अधिनियम जारी किए गए थे. रेगुलेशन जारी होने के 30 दिनों के अन्दर शिकायत निवारण समिति और लोकपाल की नियुक्ति किए जाने के निर्देश दिए गये थे. साथ ही अधिसूचना जारी होने के तीन माह के अन्दर प्रत्येक संस्थान में एक ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया जाना है जहां पीड़ित छात्र अपनी शिकायत दर्ज करा सकें.
हालांकि, एक महीना बीतने के बाद भी विश्वविद्यालयों ने ना तो एसजीआरसी का गठन किया और ना ही लोकपाल की नियुक्ति की, जिसके बाद समय-समय पर विश्वविद्यालयों को पत्र जारी किया गया. यूजीसी द्वारा लोकपाल नियुक्ति संबंधी अंतिम पत्र 5 दिसंबर को जारी किया गया था. लेकिन विश्वविद्यालयों द्वारा रेगुलेशन लागू नहीं करने के कारण यूजीसी ने विश्वविद्यालयों को डिफॉल्टर घोषित कर दिया. यूजीसी सचिव द्वारा 17 जनवरी को जारी हुए पत्र में डिफॉल्टर हुए विश्वविद्यालयों के नाम प्रकाशित किए गये हैं.
15 विश्वविद्यालयों के नाम सूचि में शामिल
यूजीसी ने बिहार के जिन 15 विश्वविद्यालयों को डिफॉल्टर घोषित किया है उनमें से पांच विश्वविद्यालय राजधानी पटना के ही हैं. जिनमें पटना विश्वविद्यालय, पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, बिहार इंजीनियरिंग विश्वविद्यालय, बिहार विश्वविद्यालय ऑफ हेल्थ साइंसेज और मौलाना मजहरुल हक अरबी-फारसी विश्वविद्यालय शामिल हैं.
पटना यूनिवर्सिटी के डीन, स्टूडेंट वेलफेयर अनिल कुमार से हमने इस संबंध में बात करने का प्रयास किया लेकिन उनसे हमारी बात नहीं हो पाई. वहीं छात्र नेता विक्रमादित्य सिंह विश्वविद्यालय में चल रही प्रशासनिक खामियों पर रोष प्रकट करते हुए कहते हैं “विश्वविद्यालय के तत्कालीन वीसी को पटना यूनिवर्सिटी के अलावे दो अन्य विश्वविद्यालयों का प्रभार मिला हुआ है. ऐसे में वो पूरा समय किसी एक विश्वविद्यालय को नहीं दे पाते हैं. यह बहुत बड़ी समस्या है. अभी छात्र को जो भी समस्या आती है वह या तो हमारे पास आते हैं या डीन से संपर्क करते हैं लेकिन इसमें भी एक दिक्कत आती है. क्योंकि छात्र नेताओं के नंबर भी ऑनलाइन उपलब्ध नहीं था. कई बार विश्वविद्यालय प्रशासन को कहने के बाद हमारा नंबर पोर्टल पर डाला गया है.”
वहीं छात्र नेता आनंद मोहन कहते हैं “जिस विश्वविद्यालय में वीसी समेत कई मुख्य पद, प्रभार और एक्सटेंशन पर चल रहा हो वहां किसी और तरह की सुविधा की उम्मीद करना ही बेवकूफी है. छात्र की समस्या सुनने वाला यहां कोई नहीं है. डिफॉल्टर लिस्ट की समस्या को लेकर भी हमलोग वीसी से मिले हैं लेकिन उनका कहना था हमें ऐसा कोई लेटर नहीं मिला है. उनका कहना है मेरे ऊपर तीन-तीन विश्वविद्यालयों की जिम्मेवारी है."
छात्र नेताओं का कहना है कि अगर विश्वविद्यालय इस मुद्दे का समाधान जल्द नहीं निकालती हैं तो छात्र प्रदर्शन करेंगे.
वहीं अन्य जिलों में स्थित 10 विश्वविद्यालय के नाम हैं: वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय (आरा), बीआरबीयू विश्वविद्यालय (मुजफ्फरपुर), जयप्रकाश विश्वविद्यालय (छपरा), संस्कृत विश्वविद्यालय (दरभंगा), एलएनएम विश्वविद्यालय (दरभंगा), टीएमबीयू विश्वविद्यालय (भागलपुर), बीएन मंडल विश्वविद्यालय (मधेपुरा), बिहार कृषि विश्वविद्यालय (सबौर), मुंगेर विश्वविद्यालय (मुंगेर), पूर्णिया विश्वविद्यालय (पूर्णिया). राज्य के केवल दो यूनिवर्सिटी आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय और मगध विश्वविद्यालय इस डिफाल्टर लिस्ट से बाहर हैं.
‘एसजीआरसी’ और ‘लोकपाल’ के क्या है काम
अभी विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार और छात्र संबंधी शिकायतों की सुनवाई के लिए औपचारिक व्यवस्था नहीं है. इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए यूजीसी ने विश्वविद्यालय स्तर पर एक अर्द्ध न्यायिक निकाय या समिति का गठन करने का अधिनियम बनाया. यूजीसी ने रेगुलेशन में लोकपाल को इतने अधिकार दिए हैं कि वह कुलपति के दबाव से मुक्त हो फैसला ले सकता है.
10 साल या इससे अधिक वर्षों तक जिलों में न्यायाधीश का पद संभाल चुके व्यक्ति को लोकपाल नियुक्त किए जाने का प्रावधान है. साथ ही विश्वविद्यालयों से सेवानिवृत्त कुलपति या डीन को भी लोकपाल नियुक्त किया जा सकता है. वहीं एसजीआरसी में पांच सदस्यों के अलावे एक अतिथि सदस्य शामिल होंगे जिसमें एक महिला और एक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अल्पसंख्यक समुदाय से एक सदस्य शामिल होंगे.
लोकपाल को छात्रों के साथ होने वाले भेदभाव तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए गठित किया जाना है. यूजीसी रेगुलेशन 2023 के अनुसार छात्रों से होने वाले भेदभाव, नामांकन प्रक्रिया में गड़बड़ी, परीक्षा तथा रिजल्ट की प्रक्रिया से संबंधित भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए विश्वविद्यालयों में ‘छात्र शिकायत निवारण समिति’ (एसजीआरसी) और ‘लोकपाल’ का गठन किया जाना है. वहीं 'एसजीआरसी' के फैसले से असहमत होने पर ‘लोकपाल’ के पास अपील की जा सकती है.
अयोग्य छात्रों को प्रवेश देना, योग्यता के बावजूद किसी छात्र को प्रवेश देने से इंकार करन, सीटों के आरक्षण के कानून का पालन नहीं करना, एससी-एसटी, ओबीसी, महिला, अल्पसंख्यक अथवा दिव्यांग छात्रों से भेदभाव करने या परीक्षा परिणाम में अनुचित तरीका अपनाने पर लोकपाल से शिकायत की जा सकती है.
बिहार में प्राथमिक से लेकर विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा की स्थिति किसी से छुपी नहीं है. पिछले दिनों ही डेमोक्रेटिक चरखा ने अपनी रिपोर्ट में बिहार के विश्वविद्यालयों में वोकेशनल शिक्षा के प्रति सरकारी उदासीनता के मुद्दे को उठाया था. साथ ही NIRF रैंकिंग, नैक ग्रेडिंग और पीएचडी थीसिस ऑनलाइन अपलोड करने में बिहार के विश्वविद्यालयों के पिछड़ने के मुद्दे को भी उठाया था. इसलिए छात्र हित को देखते हुए विश्वविद्यालय और सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा.