बिहार का औरंगाबाद सीट झारखंड की सीमा पर लगता है. इसे मिनी चित्तौड़गढ़ भी कहते हैं. अदारी नदी के तट पर बसा शहर नौरंगा के नाम से जाना जाता था, बाद में इसका नाम बदलकर औरंगाबाद किया गया. औरंगाबाद जिले में 11 प्रखंड है, जहां की 70% आबादी कृषि पर निर्भर करती है. औरंगाबाद के सियासत में कांग्रेसी दबदबा देखा गया है. कांग्रेस पार्टी ने इस सीट से 9 बार जीत हासिल की है.
औरंगाबाद की राजनीति बिहार विभूति के नाम से मशहूर अनुग्रह नारायण सिंह के परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही है. औरंगाबाद के पहले सांसद सत्येंद्र नारायण सिन्हा थे. पहली बार सांसद सत्येंद्र नारायण सिन्हा को 1989 में हार का सामना करना पड़ा था, तब रामनरेश सिंह ने जदयू के टिकट पर जीत हासिल की थी. इसके बाद 2014 में भाजपा ने सुशील कुमार सिंह के जरिए अपना खाता खोला था. 2019 के चुनाव में भी सुशिल कुमार सिंह ने बाजी मारी थी.
औरंगाबाद लोकसभा के अंतर्गत 6 विधानसभा है यहां के मतदाताओं की कुल संख्या 13,76,323 है, जिले की कुल जनसंख्या 25,40,073 है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सुशील कुमार सिंह को 4,31,541 पर यानी लगभग 45.83 प्रतिशत वोटो से जीत हासिल हुई थी. हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेकुलर) के उपेंद्र प्रसाद को 4,28,934 यानी करीब 38.12 वोट मिले थे. वहीं बसपा के नरेश यादव को 34,033 वोट मिले थे और नोटा पर 22,632 से वोट पड़े थे.
इस जिले को हाल के दिनों में काफी सुर्खियां मिली थी, जब औरंगाबाद-बिहिटा रेलवे लाइन परियोजना को लेकर मांग उठी थी. दरअसल जिले में रेल सेवा अब तक बहाल नहीं हुई है. लगभग 9 सालों तक लंबी मांगों के बाद बीते साल सरकार ने औरंगाबाद-बिहिटा रेलवे लाइन परियोजना के लिए बजट को स्वीकृति दी थी. बिहटा-औरंगाबाद रेलवे लाइन के लिए 376 करोड़ रुपए राशि देने के प्रस्ताव पर स्वीकृति दी है.