‘चाचा-भतीजा’ की सरकार बनने के बाद राजनीतिक गलियारों में गठबंधन की खबरें सुर्ख़ियों में बनी हुई हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रयास से जो विपक्षी एकजुटता की खीर बनाने की सुगबुगाहट शुरू हुई थी. वह अंततः 'इंडिया' नाम के साथ तैयार हुई. खीर की खुशबू भी फैली, पर अभी खीर के बंटवारे में समय शेष है . उससे पहले विवाद के बादल मंडराने की ख़बर चलने लगी है. खबर है कि नीतीश कुमार मुख्य भूमिका से किनारे कर दिए गए हैं.
अंततः नीतीश कुमार को मीडिया के सामने आकर प्रेस कांफ्रेंस में शामिल नहीं होने को वजह पेश करनी पड़ी. वो हंसते-मुस्कुराते हुए वजह बता रहें थे. किसी प्रकार के वाद-विवाद से पल्ला झाड़ रहे थे. पर उनका अंदाज़ देखकर मशहूर ग़ज़ल "तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो, क्या गम है जिसको छुपा रहे हो" याद आ ही जाता है .
चाचा भतीजा क्यों चर्चा में?
चाचा यानी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और भतीजा यानी उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की सरकार, नीतीश कुमार के बिहार में NDA से पाला बदलकर महागठबंधन में आने के बाद बनी. नीतीश कुमार के पुराने सहयोगी, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी के अनुसार, बिहार के मौजूदा सरकार के गठन होने के समय नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच एक डील हुई थी. उस डील के तरह नीतीश कुमार को बिहार में मुख्यमंत्री का पद तेजस्वी यादव को सौंप राष्ट्रीय राजनीति में कदम रख देना है.
अगर उस डील में सच्चाई थी, तो नीतीश कुमार के लिए विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' में महत्वपूर्ण पद नहीं मिलना, उनके लिए असुविधाजनक होगा. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनीति के मंझे खिलाड़ी नीतीश कुमार किस सोशल इंजीनियरिंग का उपयोग कर खुद को सुरक्षित करते हैं.
आखिर NDA में क्या है चाचा भतीजा की भूमिका
एनडीए ने भी 38 दलों के साथ बैठक कर विपक्षी एकता को कड़ा संदेश देने की कोशिश की है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष सभी दल एकजुट तो नजर आए, पर बैठक ख़त्म होने के साथ ही एकजुटता में कमी ज़मीनी स्तर पर दिखाई देने लगी.
एनडीए वाले चाचा यानी केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस और भतीजा चिराग पासवान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने गले तो मिले पर चाचा पशुपति पारस को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह स्पष्ट करना पर गया कि वहां राजनीतिक मजबूरी थी. वो दोनों अलग अलग हैं.
क्या है NDA वाले चाचा भतीजे के बीच विवाद की वजह?
यूं कहे तो यह विवाद हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने को लेकर है. पर हकीकत रामविलास पासवान के राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर है. अब ये सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर एक लोकसभा सीट पर कैसे विवाद हो सकता है? तो जबाव है कि ये वही हाजीपुर लोकसभा है जो रामविलास पासवान की कर्मभूमि रही है. इसलिए रामविलास पासवान के भाई की पार्टी राष्ट्रीय लोजपा और पुत्र की पार्टी लोजपा (रामविलास) दोनों इस सीट को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है.
NDA में आधिकारिक तौर पर शामिल होने के बाद चिराग पासवान ने ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी ही हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने जा रही है. जिसके बाद चाचा पशुपति पारस ने प्रेस कांफ्रेंस कर स्पष्ट किया कि वो हाजीपुर सीट नहीं छोड़ने वाले हैं.
केंद्रीय मंत्री और हाजीपुर से सांसद पशुपति कुमार पारस ने लालगंज में आयोजित कार्यकर्ता सम्मेलन में कहा कि चिराग पासवान पर जब रामविलास पासवान ने भरोसा नहीं किया तो हाजीपुर की जनता कैसे करेगी? उन्होंने कहा कि इसी वजह से बड़े भाई रामविलास ने मुझे उत्तराधिकारी बनाकर हाजीपुर की जनता की सेवा के लिए भेजा. उन्होंने चिराग पासवान के नेतृत्व पर भी सवाल खड़ा किया.
अब दोनों गठबंधन के लिए चाचा भतीजा को मनाकर साथ रखने की चुनौती है. बिहार में 40 लोकसभा की सीटें हैं. नीतीश कुमार की पार्टी के 16 लोकसभा सांसद व 5 राज्यसभा सांसद हैं. लालू यादव की पार्टी का बड़ा जनाधार बिहार में है. वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी विपक्षी एकता को कमज़ोर करने वाली पार्टियों को साथ लाने में लगी हुई है. चिराग पासवान और पशुपति पारस की पार्टियों को मिलाकर कुल 6 सांसद हैं. ऐसे में बिहार से आने वाले दोनों चाचा भतीजा 2024 की चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका में दिख सकते हैं.