किसानों के आमदनी का श्रोत उनकी खेती बाड़ी है. जिसमें अच्छी फसल होना बहुत हद तक मौसम पर निर्भर करता है. समय पर पानी, सही तापमान, उपजाऊ मिट्टी और अच्छे बीज जैसे कई कारक अगर सही मात्रा में मिल जाए तो अच्छी फसल तैयार होती है. लेकिन इनमें से कुछ भी ज्यादा या कम हो गया तो नुकसान होना तय है. फसल को नुकसान होने से किसानों को आर्थिक और मानसिक दोनों तरह कि परेशानियां उठानी पड़ती है. बारिश, सुखाड़ या ओलावृष्टि की मार छोटे किसानों को सबसे ज्यादा प्रभावित करती हैं.
बिहार जैसे राज्य में जहां छोटी जोत यानि छोटे किसानों की संख्या ज्यादा है उन्हें मौसम की मार से हुए नुकसान की भरपाई के लिए सरकार फसल बीमा, बीज अनुदान, डीजल अनुदान, खाद अनुदान जैसी कई योजनाएं चलाती है. इन योजनाओं का उद्देश्य किसानों को खेती के लिए प्रोत्साहित करना भी है.
लेकिन कई बार योजनाओं की जानकारी ना होने, संबंधित अधिकारीयों और कर्मचारियों द्वारा किसानों को इसकी उचित जानकारी नहीं देने से किसान इसका लाभ उठाने से वंचित हो जाते हैं.
बिहार समेत पुरे भारत में इस वर्ष भीषण गर्मी का सामना किया है. जाहिर है इसका प्रभाव किसानों के फसलों पर भी पड़ा. जिसके कारण उन्हें लागत के अनुरूप लाभ नहीं मिला होगा.
बिहार फसल सहायता योजना
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की जगह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साल 2018 में बिहार फसल सहायता योजना(bihaar phasal sahaayata yojana) शुरू की थी. जो किसानों को अपर्याप्त वर्षा, ओलावृष्टि, बाढ़, सुखाड़ या फसल में कीट लग जाने जैसी प्राकृतिक आपदाओं में फसल को हुई क्षति पर किसानों की मदद करती है.
योजना के अनुसार फसल की अधिकतम 20% या उससे कम का नुकसान होने पर भी किसान इसके लिए आवेदन कर सकते हैं. एक किसान को अधिकतम दो हेक्टेयर के लिए मुआवजा दिया जाता है, जिसमें प्रति हेक्टेयर 7500 रुपए दिया जाता है. वहीं फसल को 20 फीसदी से ज्यादा का नुकसान होने पर मुआवजे की राशी प्रति हेक्टेयर 10 हजार रुपए तय की गई है.
राज्य में इससे पहले केंद्र द्वारा संचालित प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना(pradhaanamantree phasal beema yojana) में किसानों को बीमा कंपनियों को दो फीसदी राशी का भुगतान करना पड़ता था. बाकि के 98 फीसदी राशी केंद्र और राज्य मिलकर देती थी. लेकिन बिहार फसल सहायता योजना में किसानों को किसी भी तरह की राशी का भुगतान नहीं करना पड़ता है.
यह योजना छोटे जोत वाले किसानों की इन विपरीत परिस्थितियों में मदद करने के लिए लाया गया था. लेकिन किसानों को इसका नियमित तौर पर लाभ नहीं मिल पा रहा है.
नहीं मिला लाभ
पुनपुन प्रखंड के एकौना पंचायत के किसान फसल को हुए नुकसान से परेशान हैं. 38 वर्षीय कुणाल कुमार के 10 लोगों का परिवार एकौना पंचायत के मरांची गांव में रहता है. उनके पास खुद की 2 एकड़ जमीन है. लेकिन बड़े परिवार के भरण पोषण के लिए कुणाल 6 एकड़ जमीन बटाई पर लेकर खेती करते हैं.
फसल को हुए नुकसान पर बात करते हुए कुणाल बताते हैं “बटाई पर खेत लेकर 6-7 एकड़ में मकई, चना और सब्जी लगाए थे. एक एकड़ में मकई लगाने का लागत 10 हजार से ज्यादा पड़ता है. इसी में बटाईदार और अपने लिए मुनाफा निकालना है. लेकिन हर साल कुछ न कुछ नुकसान में चला जाता है. सरकार की योजना बहुत योजना है लेकिन समय पर किसी से कोई जानकारी नहीं मिल पाता है.फसल सहायता योजना के लिए कब आवेदन शुरू हुआ और बंद हो गया पता नहीं चला.”
कुणाल आगे कहते हैं “मकई और सब्जी में बहुत नुकसान हुआ. लेकिन अब धान का सीजन शुरू हो गया. पुराना नुकसान भूलकर अब धान के फसल में लग गए हैं. गांव में ज्यादातर लोग खेती करते हैं. अगर 5-6 एकड़ में लगाए फसल में 2-3 एकड़ का नुकसान होता है तो बाकि 3 एकड़ में घर-परिवार खाता है. मानिए नगदी आमदनी नहीं हुआ लेकिन खाने के लिए अनाज मिल जाता है.”
रबी फसल के बुआई का मौसम शुरू हो चूका है. किसान अपने खेतों में धान के बीज डालकर पौध तैयार कर रहे हैं, ताकि समय पर धान की रोपनी हो सके. हालांकि गर्मी और शुरूआती कम बारिश का असर यहां भी नजर आ रहा हैं. धान की पौध तैयार करने के लिए शुरुआत में जितने पानी की आवश्यकता है उसमें भी समस्या आ रही है. भूजल नीचे चले जाने के कारण किसान कुओं में डबल मोटर लगाकर पानी, खेत तक पहुंचा रहे हैं.
मरांची में लगभग 150 किसान परिवार रहते हैं. गांव में ज्यादातर लोग खेती करते हैं. 28 वर्षीय रोहित कुमार का परिवार भी इसी गांव में रहता है. संयुक्त परिवार में रहने वाले रोहित के घर में 15 लोग रहते हैं. रोहित के परिवार के पास खुद की 2 एकड़ जमीन है. लेकिन पुनपुन नदी किनारे पड़ने के कारण खेत पानी में डूब जाता है. इस कारण रोहित के दो भाई बाहर कमाने चले गए हैं. वहीं रोहित पटना में काम करने के साथ-साथ बटाई पर तीन एकड़ जमीन लेकर खेती करते हैं. फसल नुकसान पर रोहित कहते हैं “तीन एकड़ खेत बटाई पर लिए हैं. एक एकड़ का साल में 35 हजार देना है. पिछला फसल मकई, घाटे में चला गया. अब धान लगा रहे है अगर इसमें भी घाटा हुआ तो, खेत वाले को भी घर से देना पड़ेगा.”
फसल सहायता योजना(Crop Assistance Scheme) के लिए आवेदन क्यों नहीं किया? इसपर रोहित का कहना है “पहला, ग्राम सेवक नियमित तौर पर गांव आते नहीं है, इसलिए हमें जानकारी नहीं मिल पाती है. अगर इधर-उधर से जानकारी मिल भी गयी तो आवेदन करने से पहले सोचते हैं. साइबर वाले को 100 रुपए आवेदन का देंगे उसमें अगर सर्वे में नाम नहीं आया तो वह भी चला जाएगा. इससे अच्छा 100 रुपए का कीटनाशक लाकर खेत में छिड़क देंगे.”
हम ग्राम सेवक से संपर्क करने का प्रयास कर रहे. उनसे जानकारी मिलने पर हम इसे अपडेट करेंगे.
कितने किसानों ने किया आवेदन
बिहार सरकार द्वारा संचालित सहकारिता विभाग के अनुसार खरीफ फसल 2023 के लिए 15,96,950 किसानों ने आवेदन दिया था. इस दौरान धान, मक्का, सोयाबीन बैंगन, अगहनी गोभी, टमाटर और आलू के लिए आवेदन लिया गया. इसमें 14,81,156 किसानों ने धान जबकि 5,07,882 ने मक्का के लिए आवेदन किया. इस दौरान सबसे ज्यादा 4,70,043 आवेदन पूर्वी चंपारण जबकि सबसे कम 43 अरवल जिले से आया.
रबी फसल 2023-24 जिसमें गेहूं, चना, मक्का, मसूर, अरहर, राई, ईख, प्याज और आलू के लिए आवेदन लिए गए थे, के लिए 775391 किसानों ने आवेदन दिया. इसमें सबसे ज्यादा गेंहूं (7,16,278), मक्का (3,76,167), राई (270,181), मसूर (2,62,807), और चना (1,55,336) के लिए आवेदन दिया गया था.
पटना जिले से 8,335 किसानों ने फसल सहायता योजना के लिए आवेदन दिया है. जिसमें ने खरीफ 2023 के लिए पुनपुन प्रखंड के एकौना पंचायत से 30 किसानों आवेदन दिया, जिसमें धान की फसल के लिए 30 और मक्का के लिए 12 लोगों ने आवेदन दिया. वहीं एकौना पंचायत से रबी फसल 2023-24 के लिए भी 30 किसानों ने आवेदन दिया है.
इनमें से कितने किसानों को राशी का भुगतान किया गया इसकी जानकारी नहीं मिल सकी है. हमने पटना जिले के कृषि अधिकारी विभू विद्यार्थी से संपर्क करना चाहा लेकिन उनसे बात नहीं हो सकी है.