बिहार सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75% किया, OBC का कोटा सबसे ज़्यादा

बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75% कर दिया गया है. पहले से चले आ रहे 60% आरक्षण के दायरे में 15% की बढ़ोतरी की गयी है. बिहार सरकार के गजट प्रकाशन के साथ ही मंगलवार 21 नवंबर से यह राज्य में लागू कर दिया गया है.

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बिहार सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75%

बिहार में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75%(75% reservation) कर दिया गया है. पहले से चले आ रहे 60% आरक्षण के दायरे में 15% की बढ़ोतरी की गयी है. आरक्षण के दायरे में आने वाली प्रत्येक सुविधाओं में अब इसका लाभ SC, ST, EBC और OBC quota को दिया जाएगा. बिहार सरकार के गजट प्रकाशन के साथ ही मंगलवार 21 नवंबर से यह राज्य में लागू कर दिया गया है.

गुरुवार 9 नवंबर को विधानसभा के शीतकालीन सत्र में आरक्षण संशोधन विधेयक पेश किया गया जिसे दोनों सदनों से पारित कर दिया गया. सीएम नीतीश कुमार ने 7 नवंबर को विधानसभा में इसकी घोषण की थी कि सरकार बिहार में आरक्षण के दायरे को बढ़ाने वाली है. पिछड़ी, अति पिछड़ी, SC और ST समुदायों को मिलने वाले 50% आरक्षण को बढ़ाकर 65% किया जाना है.

9 नवंबर को आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75% पास कराया गया

सीएम नीतीश कुमार ने 7 नवंबर को विधानसभा में इसकी घोषणा की थी कि सरकार बिहार में आरक्षण के दायरे को बढ़ाएगी. सीएम नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि “हम आरक्षण को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी या उससे ऊपर ले जाएंगे. कुल आरक्षण 60% से बढ़ाकर 75% करेंगे.

मुख्यमंत्री के घोषणा के तुरंत बाद कैबिनेट की मीटिंग बुलाई गयी जिसमें प्रस्ताव पर मुहर लगाया गया. इसके दो दिन बाद शीतकालीन सत्र के चौथे दिन यानि 9 नवंबर को विधानमंडल में हंगामें के बीच दोनों सदनों से पारित कर दिया गया.

नए प्रावधान के बाद अनुसूचित जाति (SC) को 16% से बढ़ाकर 20%, अनुसूचित जनजाति को 1% से बढ़ाकर 2%, ओबीसी का आरक्षण 18% से बढ़ाकर 25% तो ईबीसी का 12% से बढ़ाकर 18% किया गया है. जिसके साथ पीछड़ा-अति पिछड़ा वर्ग को मिल रहे 30% आरक्षण बढ़कर 43% हो गया है. इसमें OBC महिलाओं को मिलने वाला अतिरिक्त 3% भी शामिल हैं. वहीं, EWS वर्ग को पहले की तरह ही 10% आरक्षण देने का प्रावधान लागू रहेगा.

आरक्षण का दायरा बढ़ने के साथ ही विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने इसपर अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू कर दी है. जहां मुख्य विपक्षी दल भाजपा और चिराग पासवान ने आरक्षण संशोधन विधेयक पर सरकार को समर्थन दिया है. वहीं पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने सरकार पर निशाना साधा है.

पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि “जिसकी जितनी संख्या भारी मिलेगी उसको उतनी हिस्सेदारी, सभी जातियों को मिलेगी सरकार में जिम्मेदारी.”

एक्स (ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए मांझी ने लिखा कि “बिहार में आरक्षण बढ़ाने के बिल को राज्यपाल की मंजूरी मिल गई. उम्मीद है आज ही CM नीतीश कुमार वर्तमान राज्यमंत्रिमंडल को बर्खास्त कर जाति के आबादी के अनुरूप नए मंत्रिपरिषद का गठन करेंगें.”

एक्स (ट्विटर) पर जीतन राम मांझी का पोस्ट  

बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने ट्वीट करके कहा “बिहार सरकार(bihar-government) ने ऐतिहासिक जाति आधारित सर्वे की रिपोर्ट के बाद प्रदेश में आरक्षण का दायरा बढ़ाकर 75% कर दिया है. बिहार सरकार ने आरक्षण अधिनियमों को संविधान के नौवीं अनुसूची में डालने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा है. केंद्र सरकार से विशेष राज्य के दर्जे की अपनी पुरानी मांग को भी दोहराया है.”

हालांकि चिराग पासवान ने आरक्षण के मुद्दे पर सरकार को समर्थन दिया है. हाजीपुर में मीडिया में दिए बयान में चिराग ने कहा कि “हम सब भी उनके साथ हैं. “अगर मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाता है तो मैं सरकार के साथ खड़ा रहूंगा. आरक्षण का दायरा बढ़ाया गया है यह अच्छी बात है, लेकिन इसको इस तरीके से न बढ़ाया जाए ताकि यह सिर्फ राजनीतिक जुमला और राजनीतिक फायदे के लिए ना हो.”

अन्य राज्यों में भी बढ़ा है आरक्षण का दायरा

बिहार से पहले महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना, तमिलनाडु, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी आरक्षण का दायरा बढ़ाने के लिए विधेयक लाया गया है. विधेयक पर सदन और राज्यपाल की मंजूरी भी मिली है. लेकिन आरक्षण का दायरा बढ़ाने के साथ ही विवाद बढ़ने लगते है. 

महाराष्ट्र में फडणवीस सरकार ने साल 2018 में कानून बनाकर मराठा समाज को नौकरी और शिक्षण संस्थानों में 16% आरक्षण दिया था. बाद में मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में जाने के बाद आरक्षण को कम करके शिक्षा में 12% और नौकरी में 13% फिक्स कर दिया था. इसके बाद मराठा आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के फ़ैसले का जिक्र करते हुए कहा कि निर्धारित आरक्षण सीमा को 50% से अधिक करने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं है जिसके बाद मराठा आरक्षण पर रोक लग गयी.

साल 1993 में इंदिरा साहनी केस में सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की बेंच के फैसले के बाद यह तय किया गया था कि आरक्षण होना तो चाहिए, लेकिन इसकी सीमा 50% से ज्यादा न हो. इसी तरह से जाट और गुर्जर समुदाय को अलग से दिए गए आरक्षण पर भी सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दिया था. तमिलनाडु में भी 50% से ज्यादा आरक्षण संविधान में संशोधन के तहत दिया गया है.

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