केंद्र ने धान के दो प्रकार सामान्य और ग्रेड ‘ए’ के लिए अलग-अलग मूल्य निर्धारित किया गया है. इसमें सामान्य किस्म की धान का एमएसपी पिछले वर्ष के 2,040 रुपये से 143 रुपए (7%) बढ़ाकर 2,183 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है. वहीं धान की ‘ए’ ग्रेड किस्म का एमएसपी 2,060 रुपये प्रति क्विंटल से 143 रुपये (6.9%) बढ़ाकर 2,203 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया है.
नाबार्ड द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार बिहार में किसानों को एक हेक्टेयर धान की फसल उगाने में 29,791 रूपए खर्च करने पड़ते हैं. वहीं गेहूं में 29,056/हेक्टेयर, मक्का 30,253/हेक्टेयर और चने के फसल में 21,810/हेक्टेयर खर्च करने पड़ते हैं.
यह आंकड़े साल 2015-16 के डाटा पर आधारित हैं, इसलिए बीते आठ सालों में बढ़ती मंहगाई के कारण इसमें और ज्यादा बढ़ोतरी संभव है. ऐसे में धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में यह वृद्धि किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं है.
हर साल धान खरीद में लक्ष्य से पीछे रह जाता है राज्य
राज्य में इस साल 463 पैक्स (प्राथमिक कृषि ऋण समितियां) और करीब 500 व्यापार मंडल के माध्यम से धान की खरीददारी की जा रही है. हालांकि 30 दिसंबर तक किसानों से 843356.405 मीट्रिक टन धान की खरीद ही की जा सकी है.
धान खरीद में फर्जीवाड़ा रोकने के लिए सरकार ने इस बार किसानो के पंजीकरण से लेकर बायोमेट्रिक लिए जाने जैसे बदलाव किये हैं. किसानों को पैक्स या व्यापर मंडल को अनाज बेचने के लिए पहले अपना पंजीकरण कराना होगा. राज्य में अब तक 5लाख 47 हजार 437 किसानों ने धान बेचने के लिए पंजीकरण कराया है. जिसमें लगभग ढाई लाख रैयत और तीन लाख गैर रैयत किसान हैं.
वर्ष 2022-23 के दौरान राज्यवार खरीदे गये धान के अनुसार पूरे देश में 847.66 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया. जिसमें बिहार में 42.05 लाख मीट्रिक टन धान राज्य एजेंसियों द्वारा खरीदा गया. वहीं वर्ष 2021-22 में 44.90 लाख मीट्रिक, 2020-21में 35.58 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया था.
अगर कोविड महामारी के पहले पांच सालों के आंकड़ों को देखा जाए तो वहां भी लक्ष्य और खरीद में बड़ा अंतर देखा जा सकता है.
कोरोना दौर से पहले के आंकड़े
2019-20 में 20.01 लाख मीट्रिक टन, 2018-19 में 14.16 लाख मीट्रिक टन, 2017-18 में 11.84 लाख मीट्रिक टन और 2016-17 में 18.42 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद हुई थी, जबकि इन सालों में सरकार का लक्ष्य 30 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा का था.
वर्ष 2014-15 में धान खरीद का लक्ष्य 24 लाख मीट्रिक टन था जबकि खरीद हुई मात्र 19 लाख मीट्रिक टन की. 2015-16 में 27 लाख मीट्रिक टन का लक्ष्य था और खरीद हुई मात्र 18.23 लाख मीट्रिक टन की.
किसान नेता अशोक प्रसाद धान खरीद लक्ष्य से पीछे रहने का दोष सरकार को देते हैं. अशोक कहते हैं “सरकार की नियत ही नहीं होती है धान खरीदने की. धान खरीद की शुरुआत कागजों पर नवंबर में कर दी गयी. लेकिन मीलरों को एफआरके का आवंटन पूरे राज्य में 29 दिसंबर से किया जा रहा है. बिना इसे मिलाये मीलर चावल एसएफसी को नहीं दे सकते. अब जब तक मीलर पहले से पड़े चावल एसएफ़सी को नहीं दे देते तब तक नये धान की कुटाई शुरू नहीं करेंगे."
पैक्स में धान की खरीद(Paddy purchase in Bihar) तभी होगी जब मीलर पैक्स से धान खरीदना शुरू करेंगे. मीलर नया धान तभी खरीदेंगे जब उनके गोदाम से चावल एसएफसी (स्टेट फ़ूड कारपोरेशन) में पहुंच जाएगी. लेकिन सरकार ने पिछले वर्ष से मीलरों से लिए जाने वाले चावल में एफआरके मिलाया जाना तय किया है. एफआरके एक तरह का विटामिन होता है जो चावल में मिलाया जाता है.
पैक्स कहां पड़ रही मजबूर
अशोक प्रसाद कहते हैं “यह चेन का मामला है: मीलर, पैक्स और किसान. जब मीलर का गोदाम खाली होगा तब वह पैक्स से धान खरीदेगा और जब पैक्स के पास पैसा आएगा तब वह किसानों से धान खरीदेगा.”
किसान नेता यहां पैक्सों को मिलने वाली राशि में हो रही देरी का मामला भी उठाते हैं. उनका कहना है कि पैक्स को लक्ष्य तो दे दिया जाता है लेकिन लक्ष्य के अनुरूप अनाज खरीदने का पैसा नहीं दिया जाता है.
पैक्स ने अब तक जो धान खरीदा है वह मील में गया नहीं है. पैक्स की भी मजबूरी है. एक या दो स्लॉट धान खरीद के बाद पैक्स उसे मीलर को देता है. अब जब तक मीलर धान की कुटाई कर चावल एसएफसी को नहीं देगा तब तक उसका पैसा नहीं मिलेगा. जब तक पैसा मिलेगा नहीं तब तक पैक्स के लिए किसानों से दूसरी खरीद संभव नहीं है.
वहीं किसानों के पैक्स में धान बेचने में एक बड़ी बाधा नमी की भी होती है. नियम के अनुसार पैक्स को किसानों से 17% तक नमी वाला धान लेना है, लेकिन इस मौसम में जो धान किसानों के पास रहता है उसमें 22% से 30% तक नमी रहती है.
जीपीएस लगी गाड़ियों में उठेगा पैक्स से अनाज
धांधली रोकने के उद्देश्य से सरकार ने इस वर्ष सभी पैक्सों को अनाज के ट्रांसपोर्टेशन में जीपीएस लगे ट्रक का इस्तेमाल किये जाने का प्रावधान बनाया है. हालांकि सुदूर क्षेत्रों के पैक्स के लिए महीने में एक या दो बार अनाज ट्रांसपोर्टेशन के लिए जीपीएस लगे ट्रक का इंतजाम करना मुश्किल होता है.
किसान नेता अशोक कहते हैं “यह नियम अनाज की कालाबाजारी रोकने के लिए अच्छा है लेकिन इसमें एक समस्या है. आउटर इलाके में जो पैक्स बने है वहां जीपीएस वाले ट्रक कहां मिलेंगे. मैंने 28 नवंबर को उस समय खाद्य सचिव रहे विनय कुमार को यह सुझाव दिया कि ऐसा किया जाए की पैक्स के बजाय मीलर को जीपीएस वाली गाड़ी उपलब्ध करने को कहा जाए. क्योंकि पैक्स के मुकाबले मीलर को गाड़ी मिलना ज्यादा आसान है.”
खाद्य सचिव को यह सुझाव अच्छा लगा उन्होंने इसे लिखित में मांगा. सारी प्रक्रिया पूरी होने के बाद दो या तीन नवंबर को कागज उनके कार्यालय पहुंचा. लेकिन तब तक वो पटना से चले गए क्योंकि उनका तबादला पहले ही हो चुका था.
अशोक प्रसाद का कहना है कि वो मंत्री लेशी सिंह और खाद्य सचिव डॉ एन. सरवण कुमार से भी मिले लेकिन अब तक इस मामले में कुछ नहीं किया गया है.
पड़ोसी राज्य झारखंड में एमएसपी पर 117 रूपए बोनस दिए जाने के कारण धान की कीमत 2300 रूपए प्रति क्विंटल हो गयी है. व्यापारी इस बात का फायदा उठाते हुये बिहार में किसानों से दो हजार या 2100 रूपए प्रति क्विंटल धान खरीदकर उसे झारखंड में ले जाकर बेचते है.