बिहार सरकार ने लड़कियों के लिए प्राथमिक से लेकर पीजी तक की शिक्षा मुफ्त देने की घोषणा साल 2104 में की थी. हालांकि घोषणा के नौ साल बीत जाने के बाद भी यह आज तक कॉलेज में लागू नहीं हो पाई है. नीतीश कुमार की ‘मुख्यमंत्री कन्या उत्थान’ योजना का लाभ तो छात्राओं को देर-सवेर मिल जा रहा है लेकिन निःशुल्क शिक्षा की बात आज भी फाइलों में बंद हैं.
जीतन राम मांझी ने अपने कार्यकाल के दौरान एससी-एसटी छात्रों (SC-ST students) और सभी वर्गो की छात्राओं के लिए मुफ्त शिक्षा की घोषणा की थी. 25 जुलाई 2015 को सरकार के इस फैसले पर कैबिनेट की मुहर लगी थी. घोषणा में कहा गया था कि कॉलेज छात्राओं की सूची विश्वविद्यालयों को भेजेंगे और विश्वविद्यालय इसे शिक्षा विभाग को भेजेंगे. फिर शिक्षा विभाग अगले वित्तीय वर्ष में फंड जारी करेगा.
लेकिन विश्वविद्यालयों का कहना है कि सरकार के तरफ से पैसा नहीं दिया जा रहा है. जिसके कारण उन्हें मजबूरी में छात्राओं से फ़ीस लेनी पड़ती है.
छात्राओं से नामांकन और रजिस्ट्रेशन का लिया जा रहा है शुल्क
राज्य सरकार छात्राओं को प्राथमिक से लेकर पीजी तक की शिक्षा मुफ्त में देने की बात करती है. इसके बावजूद छात्राओं से 10वीं से पीजी तक की कक्षाओं में पंजीकरण और नामांकन के लिए शुल्क लिया जाता है. छात्राओं के विरोध के बाद कॉलेज अपनी मजबूरी बताने लगते हैं.
आर ब्लॉक की रहने वाली मधु कुमारी, गंगा देवी महिला कॉलेज की छात्रा है. मधु यहां पॉलिटिकल साइंस से ग्रेजुएशन कर रही हैं. मधु अपने परिवार से स्नातक में नामांकन लेने वाली पहली लड़की हैं. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए मधु बताती हैं “मैं पांच बहन और तीन भाई हूं. मुझसे बड़ी दो बहनों ने पढ़ाई नहीं की और उनकी शादी हो गई है लेकिन मैं पढ़ना चाहती हूं. मेरे पापा दुकान में साफ़-सफ़ाई करके दस लोगों का परिवार चलाते हैं. जब मैंने आगे पढ़ाई करने की बात कही तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया. बहुत समझाने और 12वीं का स्कॉलरशिप आने के बाद वो आगे की पढ़ाई के लिए माने.”
छात्राओं का कहना है कि, बिहार सरकार लड़कियों की मुफ्त शिक्षा की बात करती है लेकिन उनसे नामांकन और रजिस्ट्रेशन के लिए पैसे लिए जाते हैं. स्कॉलरशिप में मिले पैसे कॉपी- किताबें खरीदने, कोचिंग में एडमिशन लेने या अन्य शैक्षणिक गतिविधियों में ख़र्च करने के अलावा उन्हें कॉलेज में फ़ीस लिया जाता है.
मधु बताती हैं मैंने इसी साल पॉलिटिकल साइंस में एडमिशन लिया है. एडमिशन के वक्त हमलोगों से 600 रूपया लिया गया था. अभी जब फर्स्ट ईयर का फॉर्म भरा गया तो उस वक्त भी 700 रुपया लिया गया.”
इस साल कई कॉलेजों में पीजी रेगुलर कोर्स की फ़ीस छह से सात गुना बढ़ाई गयी है. पहले जहां एक हज़ार से 1500 रूपए तक नामांकन फ़ीस ली जाती थी उसे बढ़ाकर अब सात हज़ार कर दिया गया है. वहीं छात्राओं से भी छात्रों के लिए तय किये गये कोर्स फ़ीस लिए गये हैं.
फ़ीस वापसी के लिए छात्राओं ने किया प्रदर्शन
छात्राओं ने एडमिशन शुल्क लेने के विरोध में कई बार प्रदर्शन किया है लेकिन कॉलेज प्रशासन फिर भी छात्राओं से शुल्क लेता रहा है. राज्य सरकार ने 24 जुलाई, 2015 को सभी वर्गों की स्नातकोत्तर तक की छात्राओं से शुल्क नहीं लेने का निर्णय लिया था. लेकिन, सरकार के इस निर्देश के बावजूद छात्राओं से कॉलेजों में फ़ीस ली गई.
अरविंद महिला कॉलेज के जूलॉजी विभाग में पढ़ने वाली हेबा शाहीन बताती हैं “हमसे फर्स्ट और सेकंड दोनों ईयर में पैसे लिए गये थे. फर्स्ट ईयर में 500 और सेकंड ईयर में 900 रूपए लिए गये थे. लेकिन सेकंड ईयर में छात्राओं ने विरोध किया जिसके बाद पैसे लौटाए गये. कॉलेज की तरफ से कहा गया कि सबलोग एप्लीकेशन लिखकर दो जिसमें अपने बैंक अकाउंट की जानकारी देनी थी. हालांकि इसके बाद भी कई लड़कियों की फ़ीस नहीं लौटाई गयी लेकिन इस बार थर्ड ईयर में कोई फ़ीस नहीं लगी है.”
छात्राओं को मुफ्त शिक्षा दिए जाने के सरकारी प्रावधान के बाद भी आखिर छात्राओं से शुल्क क्यों लिया जा रहा है? हेबा बताती हैं कि “जिस समय लड़कियों ने विरोध प्रदर्शन किया था तो कॉलेज प्रशासन ने एक्सक्यूज़ (बहाना बनाते हुए) देते हुए कहा था, मैनेजमेंट हमें पैसा नहीं देती है. किसी भी तरह के डेवलपमेंट और बाकी ख़र्च के लिए हमारे पास फंड नहीं है इसलिए हम छोटा अमाउंट लेते हैं.”
छात्राएं बताती हैं उनसे बोनाफाइड फॉर्म के लिए भी कॉलेज प्रशासन फ़ीस लेता है.
आखिर, क्या कारण है कि कॉलेज और विश्वविद्यालय सरकार के बनाये नियमों का पालन नहीं कर पा रहे हैं, इस पर हम कॉलेज खुलने के बाद जानकारी लेंगे. फ़िलहाल क्रिसमस और नए साल की छुट्टी के कारण कॉलेज और विश्वविद्यालय बंद हैं.
माध्यमिक कक्षाओं में गिरा है छात्राओं का नामांकन दर
राज्य में लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार साईकिल योजना से लेकर स्नातक तक स्कॉलरशिप योजना का संचालन कर रही है. लेकिन इसके बाद भी लाखों की संख्या में छात्राएं आगे की कक्षाओं में नामांकन नहीं ले रही हैं.
पिछले वर्ष विधानसभा सत्र के दौरान विधायक शकील अहमद खान ने शिक्षा मंत्री से प्रश्न उठाते हुए कहा, “माध्यमिक स्तर की शिक्षा के दौरान पढ़ाई छोड़ने वाली लड़कियों के मामले में बिहार दूसरे स्थान पर है. वर्ष 2018-19 के दौरान बिहार में माध्यमिक स्तर पर 32.1% छात्राओं ने पढ़ाई छोड़ दी जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 18.39% था.”
शिक्षा मंत्री ने उस दौरान सदन में बताया था कि वर्ष 2017-18 में आठवीं कक्षा में 11,29,561 छात्राएं नामांकित थी. वहीं वर्ष 2018-19 में नौवीं कक्षा में 8,37,770 छात्राओं ने नामांकन लिया था. आंकड़े बताते हैं आठवीं से नौवीं कक्षा के बीच लगभग तीन लाख छात्राओं ने पढ़ाई छोड़ दी थी. वहीं वर्ष 2018-19 में 10,80,404 छात्राओं ने नामांकन लिया जो पिछले वर्ष से लगभग एक लाख कम हो गयी थी.
आंकड़े साफ़ बताते हैं कि सरकार की मुफ्त शिक्षा योजना भी लड़कियों को आगे की कक्षा में नामांकन लेने के लिए प्रेरित नहीं कर पा रही है. परिजन मुफ्त शिक्षा योजना के बावजूद अपनी बच्चियों को पढ़ाने से कतरा रहे हैं. ऐसे में यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह योजना के क्रियान्वयन में आने वाली बाधाओं का विश्लेषण कर उसमें सुधार लाए.