बिहटा-औरंगाबाद रेल लाइन: 'वंदे भारत' का सपना दिखाने वाली सरकार कब देगी 'लोकल ट्रेन' का साथ?

43 वर्षों से लटकी हुई है परियोजना बिहटा-औरंगाबाद रेल परियोजना. वर्ष 1980 में पहली बार चंद्रदेव प्रसाद वर्मा ने इसे लोकसभा में उठाया था. इसके बाद साल 2007 में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने पालीगंज में इस रेल परियोजना का शिलान्यास किया था.

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बिहटा-औरंगाबाद रेल लाइन के लिए प्रदर्शन करते लोग

पिछले 43 सालों से रेल की आस देख रहे बिहटा-औरंगाबाद(Bihta Aurangabad Railway Line) के स्थानीय लोगों को इस वर्ष भी निराशा ही हाथ लगी है. सरकार और रेलवे प्रशासन के सुस्त रवैये के कारण यहां की जनता आज भी बस से सफ़र करने को मजबूर हैं. सीधी रेल कनेक्टिविटी नहीं होने के कारण क्षेत्र का विकास अबतक नहीं हो सका है. यह विडंबना ही है कि आजादी के 76 सालों बाद भी देश की जनता को रेल सुविधा की मांग के लिए लगातार प्रदर्शन हो रहे है और दिल्ली तक जाना पड़ता है.

vande bharat

वंदे भारत(vande-bharat) और बुलेट ट्रेन के सपनों वाले इस देश में अब भी कई क्षेत्र लोकल ट्रेन(local train) की पहुंच से कोसों दूर हैं. पिछले सात सालों से रेल कनेक्टिविटी के लिए आन्दोलन कर रहे बिहटा-औरंगाबाद रेल परियोजना समिति के लोगों ने 1 दिसंबर को पुनः पैदल मार्च करना शुरू किया. औरंगाबाद से पैदल मार्च करते हुए लोग 6 दिसंबर को बिहटा रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं. आन्दोलनकारी 12 बजे बिहटा रेलवे स्टेशन पहुंचते हैं और ट्रैक पर खड़े होकर प्रदर्शन करने लगते हैं. बड़े स्तर पर हो रहे इस प्रदर्शन की जानकारी रेलवे अधिकारीयों समेत जिला अधिकारीयों को भी दी जाती है. प्रदर्शन कर रहे कुछ लोग पटरियों पर सो जाते हैं. लेकिन इसी बीच प्रदर्शनकारियों से भरे ट्रैक पर सुविधा एक्सप्रेस ट्रेन आ जाती है. लोगों में भगदड़ का माहौल हो जाता है.

गिरते-पड़ते लोग ट्रैक से भागते हैं, लेकिन इन सबके बीच चंदन वर्मा नाम के प्रदर्शनकारी भागने में असमर्थ होने पर ट्रैक के बीच आखें बंद कर लेट जाते हैं. इस ट्रेन का बिहटा स्टेशन पर स्टॉपेज नहीं था. ट्रेन को ग्रीन सिग्नल मिली हुई थी इसलिए वह अपने रफ्तार में स्टेशन पर पहुंचती है. एक-एक करके ट्रेन की 10 बोगियां उनके ऊपर से गुजर गयीं. हालांकि सौभाग्वश उन्हें एक भी खरोंचें नहीं आयी. रेलवे प्रशासन की इस बड़ी गलती के कारण उस दिन कई लोग अपनी जान गवां सकते थे. 

chandan verma

लोगों के हल्ला करने के बाद ड्राईवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगाते हुए ट्रेन को रोका. ट्रेन रुकने के बाद लोगों ने चंदन वर्मा को नीचे से निकाला. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए चंदन वर्मा बताते हैं “जब ट्रेन की पटरियां मेरे ऊपर से गुजर रही थी मैं बस अपनी मौत का इंतजार कर रहा था. क्योंकि मुझे लगा था बोगियों के नीचे निकले हुए लोहे कभी भी मुझे आकर लग जायेंगे और मेरी मौत हो जाएगी. लेकिन क्षेत्र के लोगों के आशीर्वाद ने मुझे बचा लिया.” 

चंदन वर्मा कहते हैं “जिस समय यह घटना हुई उस समय लगभग 500 लोग मेरे साथ ट्रैक पर प्रदर्शन कर रहे थे. उनमें मेरी पांच साल की बेटी और पिताजी भी थे. ट्रेन दौराकर सरकार हमे डराना चाहती थी लेकिन हमने भी प्रण कर लिया है जबतक ट्रेन नहीं मिलेगी हमारा आंदोलन समाप्त नहीं होगा.”

चंदन पर प्रसिद्धी के लिए ट्रैक पर लेटने का आरोप लग रहा है. इसपर चंदन कहते हैं "भगत सिंह ने असेम्बली में बम टीआरपी के लिए फेंका, चंद्रशेखर आजाद ने खुद को गोली टीआरपी के लिए मारी. ऐसा आरोप लगाने वाले लोगों से मैं कहता हूं अगर इनसभी लोगों ने अपना बलिदान टीआरपी के लिए दिया तो आप भी आगे आयें और ऐसा कर अमर हो जाएं."

प्रशासन ने चंदन के खिलाफ़ एफआईआर भी दर्ज कराया  है.

2017 से लगातार हर साल हो रहा प्रदर्शन

पिछले सात सालों से रेल कनेक्टिविटी के लिए आंदोलन कर रहे हैं अजय कुमार बताते हैं “2016 में जब हमे लगा की, अब सरकार आम जनमानस की बात नहीं सुनेगी तब हमने लोगों को जोड़कर बिहटा-औरंगाबाद रेल परियोजना समिति का निर्माण किया. इसके कई साल बाद 2014 में आई हजारीबाग-कोडरमा परियोजन, छपरा-सुबौली परियोजना या सहरसा रेल लाइन हो सब उनके क्षेत्र के सांसदों के प्रयास से धरातल पर उतर गया. लेकिन 16 अक्टूबर 2007 को तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा पालीगंज में शिलान्यास करने के बाद भी यह धरातल पर नहीं उतर सकी.”

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लगातार हो रहे प्रदर्शन पर अजय बताते हैं “2017 में पहली बार अनुग्रह नारायण रेलवे स्टेशन से लेकर बिहटा स्टेशन तक हमलोगों ने पदयात्रा किया. उस समय इस परियोजना की लागत 2800 करोड़ थी. डीआराएम ने हमे लिखित आश्वासन दिया था कि राशि मिल जाएगी. लेकिन आश्वासन के बाद भी उस साल कोई काम नहीं हुआ. फिर हमने 2018 में डीआरएम का घेराव किया. 2019 में पहली बार 150 से ज़्यादा लोगों ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर तीन दिवसीय धरना दिया. इस धरने के बाद पहली बार इस परियोजना को 20 करोड़ की राशि दी गयी. लेकिन तबतक यह परियोजना 3600 करोड़ रूपए की हो गयी.”

आन्दोलनकारियों ने साल 2020 में पुनः जंतर-मंतर पर धरना दिया जिसके बाद 25 करोड़ की राशि दी गयी. 2021 में कोरोना के कारण जंतर-मंतर पर धरना देने की अनुमति नहीं मिली. वापस 2022 में जंतर-मंतर पर धरना देने के बाद 50 करोड़ की राशि दी गयी.

6 दिसंबर की घटना को याद करते हुए अजय कहते हैं “इस वर्ष भी हमने डीआरएम घेराव के साथ-साथ अरवल जिले का घेराव किया. एक फ़रवरी को हमलोगों ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया जिसके बाद मात्र 20 करोड़ की राशि दी गयी. वापस 25 सितम्बर को जंतर-मंतर पर जमा हुए, इसी दिन हमने घोषणा किया की अगर इसबार प्राकलन के अनुसार बजट नहीं दिया गया तो हमलोग 1 दिसंबर से पदयात्रा शुरू करेंगे और चक्का जाम करेंगे. पैदल यात्रा करते हुए जब हमलोग 6 दिसंबर को बिहटा पहुंचे उसी दिन हमारे साथी चंदन वर्मा के साथ वह हादसा हुआ. जब हम स्टेशन पर पहुंचे थे उस वक्त लगभग 12 बजा होगा लेकिन सुविधा एक्सप्रेस ट्रेन 1 बजकर 45 मीनट पर उसी ट्रैक पर आई जिसपर हमलोग प्रदर्शन कर रहे थे.”

1980 में पहली बार लोकसभा में रखी गयी थी परियोजना

संघर्ष मोर्चा के सदस्य अजय कुमार बताते हैं “वर्ष 1980 में पहली बार चंद्रदेव प्रसाद वर्मा ने इस मामले को लोकसभा में उठाया था. इसके बाद साल 2007 में तात्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने पालीगंज में इस रेल परियोजना का शिलान्यास किया था.”

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बीच में कई बार इसको लेकर सुगबुगाहट हुई परंतु राजनीतिक उदासीनता के कारण यह आज तक पूरी नहीं हो सकी. इसी वर्ष 13 सितम्बर को दानापुर डीआरएम कार्यालय में हुई मीटिंग में पाटलिपुत्र के सांसद व पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री रामकृपाल यादव ने बिहटा-औरंगाबाद परियोजना के शुरू होने का आश्वासन दिया है. तीन चरणों में इस परियोजना का काम होगा. पहले चरण में बिहटा से पालीगंज तक 30 किलोमीटर तक जमीन का अधिग्रहण होगा. 

यह नई रेललाइन बिहटा और कोईलवर (पाली हॉल्ट) के बीच से निकलेगी. बिहटा से अनुग्रह नारायण रोड स्टेशन होते हुए औरंगाबाद तक जाएगी. इस लाइन के शुरू होने के बाद औरंगाबाद भी रेलसेवा से जुड़ जाएगा. इस रेललाइन की कुल लंबाई 118.45 किलोमीटर है.

इस रेल परियोजना(railway project) के तहत ट्रेन बिहटा से 15 स्टेशन होते हुए औरंगाबाद पहुंचेगी. बिहटा, बिक्रम, दुल्हिन बाजार, पालीगंज, बारा, अरवल, खभैनी, जयपुर, शमशेर नगर, दाउदनगर, अरंडा, ओबरा, अनुग्रह नारायन रोड व भरथौली.

फ़िलहाल पटना से औरंगाबाद जाने में 4 घंटे का समय लगता है जो रेलवे लाइन आने से दो से डेढ़ घंटे का हो सकता है. अजय कुमार कहते हैं “रेलवे लाइन आने से चार वर्ग: किसान,मजदुर, छात्र और नौकरी पेशा लोगों को बहुत लाभ मिलेगा. अभी होनहार छात्र पैसे की कमी के कारण पटना पढने नहीं आ सकता है क्योंकि यहां उसे 5 हज़ार का रूम लेना पड़ेगा. अगर ट्रेन होगी तो वह रोज़ाना डेढ़ घंटे का सफर कर वापस अपने घर लौट सकता है. जहानाबाद, मकदूमपुर, परैया, बेलागंज, गया से लोग रोज़ाना पटना आते हैं अपना काम करते हैं और चले जाते हैं क्योंकि उनके पास साधन है. अभी औरंगाबाद से पटना का बस किराया 300 रुपए है यही अगर ट्रेन होगा तो लोग 50 रुपए में आ सकते हैं.”

फ़िलहाल राज्य में करोड़ो रूपए ख़र्च होने के बाद भी रेलवे के कई प्रोज़ेक्ट  बंद हैं. रेलवे के 52 प्रस्तावित प्रोज़ेक्ट में से 17 प्रोज़ेक्ट फ़िलहाल रोक दिए गये है. एक आरटीआई के जवाब में रेलवे बोर्ड ने बताया है कि बिहार में रेलवे के 32 में से 15 नई रेलवे लाइन बिछाने, एक लाइन दोहरीकरण और गेज परिवर्तन के प्रोज़ेक्ट बंद है.

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